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आज का प्रश्न 16 सितंबर 2024


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नवधा भक्ति के नाम बताइए

 

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१ पडगाहन, (प्रदक्षिणा सहित)

२ उच्चासन

३ पाद प्रक्षालन

४ पूजन 

नमस्कार

६ मन शुद्धि 

७ वचन शुद्धि 

८ काय शुद्धि 

९ आहार जल शुद्धि 

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1 ..पड्गाहन करना ।

2 उच्चासन देना।

3 पाद प्रक्षालन करना।

4 पूजन ।

5 नमोस्तु।

6 मन शुद्धि 

7 वचन शुद्धि 

8 काय शुद्धि 

9 आहार जल शुद्ध है। 

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पडगाहन,उच्चासन,पाद प्रक्षालन,पूजन,नमोस्तु,मन शुद्धि,वचन शुद्धि,काय शुद्धि, आहार जल शुद्धि 

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  1. पड़गाहन (प्रतिग्रहण) प्रदक्षिणा सहित
  2. उच्चासन
  3. पादप्रक्षालन
  4. पूजन
  5. नमस्कार
  6. मन शुद्धि
  7. वचन शुद्धि
  8. काय शुद्धि
  9. आहार जल शुद्धि 

रतन लाल जैन 

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40 minutes ago, admin said:

 

  1. पड़गाहन 
  2. उच्चासन
  3. पादप्रक्षालन
  4. पूजन
  5. नमस्कार
  6. मन शुद्धि
  7. वचन शुद्धि
  8. काय शुद्धि
  9. आहार जल शुद्धि
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पड़गाहन, प्रदीक्षणा, मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्ध, आहार जलशुद्ध, उच्चासन पादपक्षालन अष्ट द्रव्य पूजा

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 पडगाहन , प्रदक्षिणा, मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, आहार जल शुद्ध , उच्चासन , पाद प्रक्षालन,  अष्ठ द्रव्य से पूजा।

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1- पड़गाहन

2- उच्चासन 

3- पाद प्रक्षालन

4- पूजन 

5- नमस्कार

6- मन शुद्धि

7- वचन शुद्धि

8- काय शुद्धि

9- आहार जल शुद्धि 

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जैन धर्म में नवधा भक्ति के नाम निम्नलिखित हैं:

1. प्रथमभक्ति (First devotion): प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी की भक्ति।
2. अचिंत्यभक्ति (Incomprehensible devotion): भगवान की महिमा का वर्णन।
3. अचिन्त्यप्रतिमा भक्ति (Devotion to the incomprehensible idol): भगवान की प्रतिमा का ध्यान।
4. निर्वाणभक्ति (Devotion to liberation): भगवान के निर्वाण के प्रति श्रद्धा।
5. निर्मलभक्ति (Pure devotion): भगवान के प्रति निर्मल और शुद्ध भावना।
6. धर्मभक्ति (Devotion to Dharma): धर्म की पालन में श्रद्धा।
7. सम्यक्त्वभक्ति (Devotion to Right Knowledge): सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र में विश्वास।
8. संवरणभक्ति (Devotion to Refrain from Sin): पाप से दूर रहने की भक्ति।
9. वैराग्यभक्ति (Devotion to Detachment): संसारिक वस्तुओं से वैराग्य।

यह नवधा भक्ति जैन धर्म के सिद्धांतों और भगवान के प्रति आस्था और भक्ति को प्रकट करती हैं।

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जैन धर्म में नवधा भक्ति के नाम निम्नलिखित हैं:

1. प्रथमभक्ति (First devotion): प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी की भक्ति।
2. अचिंत्यभक्ति (Incomprehensible devotion): भगवान की महिमा का वर्णन।
3. अचिन्त्यप्रतिमा भक्ति (Devotion to the incomprehensible idol): भगवान की प्रतिमा का ध्यान।
4. निर्वाणभक्ति (Devotion to liberation): भगवान के निर्वाण के प्रति श्रद्धा।
5. निर्मलभक्ति (Pure devotion): भगवान के प्रति निर्मल और शुद्ध भावना।
6. धर्मभक्ति (Devotion to Dharma): धर्म की पालन में श्रद्धा।
7. सम्यक्त्वभक्ति (Devotion to Right Knowledge): सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र में विश्वास।
8. संवरणभक्ति (Devotion to Refrain from Sin): पाप से दूर रहने की भक्ति।
9. वैराग्यभक्ति (Devotion to Detachment): संसारिक वस्तुओं से वैराग्य।

यह नवधा भक्ति जैन धर्म के सिद्धांतों और भगवान के प्रति आस्था और भक्ति को प्रकट करती हैं।

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1.पडगाहन , 2. उच्चासन ,3. पादप्रक्षालन, 4 .पूजन, 

5.नमस्कार, 6.मन शुद्धी 7.,वचन शुद्धी  8.काय शुद्धी

9.आहार जल की शुध्दी बोलना  

 

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1 प्रतिग्रहण (पड़गाहन)

 

2 - उच्चासन

 

3 - पाद प्रक्षालन

 

4 - पूजन

 

5 - नमस्कार

 

6 - तथा मनश्ुद्धि

 

7 - काय शुद्धि

 

8 - और आहार जल की शुद्धि बोलना।

Edited by Rajkumaar jain
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नवधा भक्ति से आहार कराना हमारे गुरुदेव को महाराज जी को यानी कि नवधा भक्ति १ मन शुद्धि,२वचन शुद्धि,३कायशुद्वि। आहार जल शुद्ध है महाराज जी को उच्च आसन ग्रहण करना।शोधन करके आहार देना, ताकि कोई अंतराम न आए।बोले के वस्त्रों में आहार देना। आहार देते समय अपने मन के भाव अच्छे रखना। अपने शुद्ध शरीर से आहार देना। बड़े ही भक्तिभाव से आहार देने के बाद महाराज जी को वैयावृत्ति  करना ।अंत में पिच्छिका प्रदान करना और गुरुदेव के चरण प्रक्षालन करना  और गुरुदेव श्री की आरती करना। और उनसे प्रवचन  आशी वचन सुनना।

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  1. पड़गाहन (प्रतिग्रहण) प्रदक्षिणा सहित
  2. उच्चासन
  3. पादप्रक्षालन
  4. पूजन
  5. नमस्कार
  6. मन शुद्धि
  7. वचन शुद्धि
  8. काय शुद्धि
  9. आहार जल शुद्धि 
  10.  
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  1. पड़गाहन (प्रतिग्रहण) प्रदक्षिणा सहित
  2. उच्चासन
  3. पादप्रक्षालन
  4. पूजन
  5. नमस्कार
  6. मन शुद्धि
  7. वचन शुद्धि
  8. काय शुद्धि
  9. आहार जल शुद्धि 
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