दशलक्षण पर्व जैनों का सबसे महत्वपूर्ण एवं महान पर्व है। दशलक्षण पर्व हम लोक युगारंभ के उद्देश्य से मनाते है
यह वह पर्व है जिसके माध्यम से विचार, वाणी और कर्म से सभी दोषों, वासनाओं को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है। यह वह त्योहार है जिसमें क्षमा, संतोष और आत्म-संयम जैसे दस सार्वभौमिक गुणों की पूजा और आत्म-शुद्धि के लिए पूजा की जाती है।
हम कह सकते हैं कि ' सत्यम, शिवम्, सुंदरम ' त्रिदेवों का स्वाभाविक बोध केवल दस लक्षणपर्व के माध्यम से ही पूरी तरह से संभव है। यह पर्व सभी बुराइयों को समाप्त कर हमें शाश्वत आनंद की अनुभूति कराता है
भाद्रपद शुक्ल पंचमी से अनंत चतुर्दशी तक इन दस दिनों के दौरान, जैन विभिन्न रूपों में उपवास रखते हैं और दान देते हैं। वे कुछ चीजों का त्याग करते हैं और पर्व के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हैं। पर्व के प्रत्येक दिन का अपना महत्व है।
दशलक्षण पर्व के दस धर्म
उत्तम क्षमा धर्म - क्रोध का त्याग करते हुए पूरे दिल से सहनशीलता का पालन करना।
उत्तम मार्दव धर्म - घमंड और जुनून को वश में करके विनम्रता के गुण का पालन करना।
उत्तम आर्जव धर्म - छल-कपट की भावना को परास्त कर जीवन में छल-कपट रहित आचरण करना।
उत्तम शौच धर्म - लोभ का त्याग कर शरीर, मन और वाणी को शुद्ध रखना।
उत्तम सत्य धर्म - पवित्र भाव से, किसी भी प्राणी को हानि न पहुँचाते हुए, स्नेहपूर्ण तथा न्यायपूर्ण वचन बोलना।
उत्तम संयम धर्म - पांच इंद्रियों - स्पर्श, स्वाद, गंध, दृष्टि और श्रवण; और छठी - मन द्वारा प्रदान किए गए सभी सुखों से परहेज करते हुए, विश्वव्यापी भावना से सभी जीवित प्राणियों की अत्यधिक शक्ति के साथ रक्षा करना।
उत्तम तप धर्म - सभी सांसारिक प्रलोभनों पर रोक लगाते हुए तपस्या करना।
उत्तम त्याग धर्म - चार गुना दान देना - आहार (भोजन), अभय (निर्भयता), औषधि (दवा), और शस्त्र दान (पवित्र ग्रंथों का वितरण), और स्वयं और अन्य उत्थान के लिए सामाजिक और धार्मिक संस्थानों को संरक्षण देना।
उत्तम अकिंचन धर्म - अनासक्ति - अनासक्ति अर्थात भौतिक वस्तुओं के विपरीत वास्तविक आत्मा में विश्वास बढ़ाना, क्रोध और अहंकार जैसे आंतरिक परिग्रहों का तथा सोना, हीरे और राजसी खजाने के संग्रह जैसे बाह्य परिग्रहों का त्याग करना।
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म - ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, अंतरात्मा और सर्वज्ञ भगवान के प्रति भक्ति रखना, भोग-विलास, अश्लील फैशन, बाल-वृद्ध विवाह, दहेज-प्रधान विवाह का त्याग करना।
दस धर्म के उदात्त जीवन मूल्य हैं, जो हर व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए जरूरी है।इसलिए 10 दिनों में विशेष रूप से दस धर्मों की आराधना करके हम अपने अंदर इन गुणों के संस्कारों को भरते हैं। इन 10 दिनों में हम अपने आपको रिचार्ज करते है ताकि आने वाले 355 दिनों तक उसका असर हम पर रह सके ।
पर्युषण को केवल त्यौहार की तरह न मनाकर अपने जीवन व्यवहार का आधार बना करके मनाए, तो हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा और हमारे मन के प्रदूषण को दूर करेगा तथा हमारे अंदर शांति एवं सद्भावना भरेगा।अपने बच्चों को पर्युषण का महत्व जरूर समझाये ताकि वे भी भविष्य मैं इसी उत्साह से पर्युषण पर्व को मनाए।