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उत्तम मार्दव धर्म विलक्षण स्वाध्याय प्रश्न 23


admin

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आप कैसे पहचान सकते हैं कि आपका अभिमान स्वाभिमान है या पराभिमान?

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Our self-respect will be when we consider ourselves good but do not consider others as worthless and it will be supreme self-respect when we consider ourselves the best and consider others as inferior to us.

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यदि स्वयं के ज्ञाता दृष्टा भगवान रूप का अभी हो तो स्वाभिमान है, यदि पर पदार्थों को अपना मान उससे अभिमान आये तो पराभिमान है। 

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यह इस बिषय पर मुझे  1008 श्री भगवान नेमीनाथ जीवन का से बात करने की कोशिश करता हूँ गलती हो जाए तो छोटा समझकर माफ़ कर देना बात जब की है 

श्री कृष्णजी द्वारकाधीश थे तथा नाग शैय्या बिराजमान होकर  अंहकार ने  अपनी जगह बना ली एक दिन सभा के अंदर हुआ है चर्चा चली कि कौन सब बड़ा बलवान है सबने अपनी बात की श्री कृष्ण सबसे बलवान है बलदेव जी कहा कि यहाँ बिराजमान भगवान नेमीनाथ जी से बड़ा बलवान हो सकता है श्री कृष्ण को  यह बात जुब गई श्री कृष्ण ने भगवान नेमीनाथ जी को युद्ध के लिए ललकारा पर भगवान नेमीनाथ मना किया ओर कहा कि यदि किसी में सामथ्र्य होतो मेरे  हाथ से अगुठी निकाल दिखा दे  पर कोई भी उंगली को सीघा नहीं कर पाया  तब जाकर उनके अंहकार का  हट सबको पता चला कि बलदेव जी भगवान नेमीनाथ के बारे में सच कहा था 🙏

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जहां पर की महिमा में झूठा अपनतव  दिखाना पराभिमान है और जहां कर्तव्य का मूल्यांकन है स्वाभिमान है। ये कहना कि मेरी मां विदुषी है यह पराभिमान है और यह कहना कि मैं कुलीन परिवार से हूं मुझे यह काम करना शोभा नहीं देता यह स्वाभिमान है। 

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कुल के हिसाब से होगा तो स्वाभिमान और दुसरोकि वस्तु को अपना बताकर परभिमान नही बननआ चाहिये

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एक स्‍वाभिमान और दूसरा सामान्‍य अभिमान अर्थात् परा‍भिमान । ‘मैं उत्‍तम कुल का हूँ क्‍योंकि मेरा पिता बड़ा आदमी है इत्‍यादि’ तो पराभिमान है, क्‍योंकि पिता आदि पर की महिमा में झूठा अपनत्‍व किया जा रहा है । परन्‍तु ‘मेरा यह कर्तव्‍य नहीं, क्‍योंकि मेरा कुल ऊँचा है’ यह है स्‍वाभिमान क्‍योंकि अपने कर्तव्‍य की महिमा का मूल्‍यांकन करने में आ रहा है । पराभिमान निन्‍दनीय और स्‍वाभिमान प्रशंसनीय गिनने में आता है । इसलिए वास्‍तविक अभिमान करना है, तो स्‍वाभिमान उत्‍पन्‍न कर अर्थात् निज चेतन्‍य विलास के प्रति महिमा उत्‍पन्‍न कर, जितनी चाहे कर ।

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अपने परिवार, कुल, जाति आदि पर पदार्थों पर और सब कार्य मेरी वजह से हो रहे है ऐसा मानना पराभिमान तथा अपना कर्तव्य समझकर किसी कार्य को करना स्वाभिमान है

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