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Sadhana.jain

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  1. एक स्‍वाभिमान और दूसरा सामान्‍य अभिमान अर्थात् परा‍भिमान । ‘मैं उत्‍तम कुल का हूँ क्‍योंकि मेरा पिता बड़ा आदमी है इत्‍यादि’ तो पराभिमान है, क्‍योंकि पिता आदि पर की महिमा में झूठा अपनत्‍व किया जा रहा है । परन्‍तु ‘मेरा यह कर्तव्‍य नहीं, क्‍योंकि मेरा कुल ऊँचा है’ यह है स्‍वाभिमान क्‍योंकि अपने कर्तव्‍य की महिमा का मूल्‍यांकन करने में आ रहा है । पराभिमान निन्‍दनीय और स्‍वाभिमान प्रशंसनीय गिनने में आता है । इसलिए वास्‍तविक अभिमान करना है, तो स्‍वाभिमान उत्‍पन्‍न कर अर्थात् निज चेतन्‍य विलास के प्रति महिमा उत्‍पन्‍न कर, जितनी चाहे कर ।
  2. Dashlakshn mahaperv ki jay ho

    Sbhi se Uttam kshma

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