Archana goyal Posted August 30 Share Posted August 30 जैन धर्म मे 10 लक्षण पर्वका बहुत महत्व है इस पर्व मैं जिनालयों में धर्म की प्रभावना की जाती है यह पर्व आध्यात्मिक पर्व है इस पर्व में उत्तम क्षमा , मार्दव ,आर्जव,शौच, सत्य , संयम , तप , त्याग , आकिंचन, ब्रह्मचर्य आदि जीवन मूल्य की आराधना कीजाती है यह पर्व तीर्थंकरों की पूजा का नहीं या अन्य आराध्य की पूजा का नहीं बल्कि गुणो की आराधना उपासना का पर्व है इस पर्व मैं व्यक्ति शक्ति अनुसार व्रत व उपवास करते हैं यह पर्व जीवन मैं सुख एवं शांति के लिए मनायाजाता है इस समय ज्यादा से ज्यादा समय धर्म में लगाया जाता यह पर्व भादो की शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है 10 लक्षण धर्म उत्तमक्षमा - क्रोध छोड़कर सबको क्षमा कर सकूं तथा सबसे क्षमा मांग सकूं उत्तम मार्दव - मान नहीं करना घमंड छोड़ना उत्तम आर्जव - कपट नहीं करना सरलता लाना उत्तम शौच - लोभ का त्याग करना उत्तम सत्य - सत्य वचन बोलना उत्तम संयम - इंद्रिय व मन को बश मे करना उत्तम तप - इच्छाओं को रोकना तथा तप धारण करना उत्तम त्याग - चार प्रकार का दान आदि देना उत्तम आकिंचन - ममत्त्व का त्याग करना उत्तम ब्रह्मचर्य - विषय सेवन को छोड़ कर अपनी आत्मा मे लीन हना इन दिनों में तत्वार्थ सूत्र के अध्याय का व्याख्यान किया जाता है तिथि दसवीं के दिन सुगंध दशमी य धूप दशमी के रूप में मनाया जाता है तथा अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी के रूप मे मनाया जाता है 3 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rasshhmi Posted August 30 Share Posted August 30 जैन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पर्युषण यानी दसलक्षण पर्व विभिन्न धार्मिक क्रियाओं द्वारा आत्मशुद्धि करने और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने का एक प्रयास है क्योंकि माना जाता है कि जब तक अशुभ कर्मों के बंधन से मनष्य नहीं छूटेगा तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं की जा सकती है। 3 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
रोहित जैन Posted August 30 Share Posted August 30 दस लक्षण पर्व दस धर्मों को अपने मन वचन काय में परिलक्षित करने के लिए मनाये जाते है| ये पर्व जीवन जीने की कला सिखाते है, इनको गहराई से समझा जाए व आत्म साध किया जाये तो जीवन की कोई समस्या का समाधान असंभव नहीं| ये पर्व सकारात्मक ऊर्जा के स्त्रोत है| 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Preshita Jain Posted August 30 Share Posted August 30 Das lashlasn parv hota kya hai hme ise kyu manana chahiye iske bare me bahut hi km log jante honge jo aj ki pidhi hai unhe to jada kuch pta hi nhi hoga .. das lashlasn parv ka mtlb Atam ki shuddi.. isme man se Kaya se vachan se jo bhi hani huyi ho usse hath jodakr kshama yachna karte hai har jeevo se kshama mangte hai .. das lashlasn parv me jitna ho ske adhik se adhik pudhay kamana chahiye.. kyu ki aj ki jeevan shaili itni busy ho gyi hai koi jada dharam nhi kar pta hai magar das lashlasn parv me hme Kam se kam 10 din tk dharam dhayan karna chahiye. Pratikmran padna chahiye. Or dono samay mandir jna chahiye.jitna ho ske 2 time samay se bhojan karna chahiye ek hi sathan pr baithkar bhojan krna chahiye. Guruo ki vani sunna chahiye.or das lashlasn parv me kisi prakar ki jeev hinsa nhi krna chahiye. Hme aisa koi bhi aisa km nhi krna chahiye jisse kisi ko koi pareshani ho sb se vinamrata se bat krna chahiye..jai jinendra.🙏 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Maina Jain Chhabra Mumbai Posted August 30 Share Posted August 30 Maina Jain Chhabra (Mira Road, Mumbai) जिन चरणों में जीवन जीने का नया प्रकाश मिलता है परमात्मा के प्रति प्रेम प्रीति का भाव जनमता है। नया आनंद उत्सव का वातावरण बनता है ।पुरानी दिनचर्या बदलती है ।खान-पान और विचारों में परिवर्तन आकर मन सद्भावनाओं से भर जाता है वह है दशलक्षण पर्व। सच बात तो यह है कि पर्व वह हमारी उदास टूटी हुई जिंदगी को उत्सव से जोड़कर चले जाते हैं । 1-अपनी कोई बात नही सुने, क्रोध आ गया, मनचाहा नही होना,थोडी सी इच्छा पूर्ण नही हुई की भड़क गए।क्रोध करना सरल है, पर क्षमा करना कठिन हो जाता है। सारी कह गए दर कीनार हो जाए, यह क्षमा नही हुई। अनुपम क्षमा को याद रखे। जीवन मे क्षमाभाव रखने का प्रयास करे। 2-मान मे रावण ने अपना विनाश कर लिया।अहंकार मे हमसब फूल जाए, पर फैल नही सकते। मारदवधर्म मे महक है। 3-मायाचारी करने से तिर्यंच गती मिलती है, हमसब जानते हुए भी मायाचारी करते है। ऐसे आर्जव,ऐसे सरलता से इस धर्म को हमे अपनाना चाहिए। 4- शौच धर्म यदी हमारे अंदर आ गई तो सभी हमारे मित्र है, सारे हितैषी है, पर बहुत कठिन है। अपनी इच्छा को कन्ट्रोल करना होगा, तब कही हम शौच धर्म के अनुसार अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो सकते है। 5- चारो धर्मों के पाने से सत्य धर्म की उपलब्धी होती है।6-अब संयम धर्म हमे अपने जीवन मे अंगीकार करने की कोशिश कर सकते है। छोटे छोटे नियम लेकर जीवन मे आगे बढ सकते है। 7-जो तपा जाए वह तप है। साधु संत की तपस्या को नमन है, उन्हे देखकर हमे भी अपने आप को कुछ तप जो हम कर सकते है, वह जरूर करना चाहिए। 8-त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ ओर सुन्दर बनाता है। त्याग का संस्कार हमे प्रकृति से ही मिली है वृक्षो मे पते आते है और झर जाते है, फल लगते है ओर गिर जाते है ।त्याग के बिना हमारा जीवन कष्ट प्रद हो जाता है। 9-आकिंचन धर्म खाली होने का धर्म है। आकिंचन धर्म हमे यह मेसेज देता है, कोई कीसी का नही, सारी यात्रा अकेली ही करनी पडती है। 10- आत्मा ही बह्म है, उसमे रमण करना ही बह्मचयॆ है। हमे भी अपनी शक्ती के अनुसार वर्त के दिनो मे नीयम रखना चाहिए। आचार्य भगवन के चरणो मे त्रिवार नमोस्तु 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 मेरा दशलक्षण पर्व का हर साल का अनुभव हुआ की वह दश दिन नियम, संयम धर्म ध्यान करते हुए बडा आनंद उत्सव से समाप्त होता है, और आने वाले साल का इन्तजार रहता है, हर साल कुछ न कुछ अपनी शक्ती के अनुसार नीयम लेती हुॅ। टाईप करके इतना ही लीख पाई। दश धर्म ध्यान केंद्रित कर अपना जीवन को स्वस्थ नीरोग रख रही हुॅ। दश धर्म से संबंधित कई घटनाक्रम मेरे जीवन मे भी घटित हुई। विस्तृत वर्णन होने से यही विराम देती हुॅ। उत्तम क्षमा सबसे क्षमाभाव। जय जिनेंद्र 🙏 दशलक्षण महापर्व की जय जय जय। 4 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Lata Mahendra Jain Posted August 30 Share Posted August 30 जय जिनेंद्र दस लक्षण पव को जैन धर्म में सभी पर्व पर्वो का राजा माना जाता है इस पर्व की विशेष महत्व के कारण है इस पर्व कोराजा कहां जाता है इसीलिए यह पर्व बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह पर्व समाज को जियो औरजीने दो का संदेश देता है 10 लक्षण पव विभिन्न धार्मिकक्रियो ओ द्वारा आत्मा शुद्ध करने और जन्म मरणके चक्र से मुक्ति पानेका एक प्रयास है क्योंकि माना जाताहै कि जब तक अशुभकर्मों के बंधन से मनुष्य नहीं छूटेगा तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहींकीजा सकती है यह जीवन में नया बदलाव लाने का पर्व है 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
smrati jain Posted August 30 Share Posted August 30 🙏जय जिनेन्द्र🙏 10 लक्षण पर्व जिसे पर्यूषण भी कहते है जो हमारे मन के प्रदूषण को दूर करने वाला है ... पूरे विश्व में एकमात्र ही ऐसा पर्व है जिसमें जीवन मूल्यों की आराधना की जाती हैं इसलिए दसलक्षण पर्व को पर्वराज भी कहते है इस पर्व में हम क्षमा, मृदूता,ऋजुता, शुचिता,सत्य,संयम,तप,त्याग, आकिंचन,ब्रम्हचर्य जैसे जीवन मूल्यों की आराधना करते है यह पर्व गुणों की आराधना करने का है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को परिवर्तित कर सके... 10 लक्षण धर्म अपने आप में 10 धर्म का प्रतीक है जिसके द्वारा हम शीघ्र मुक्ति प्राप्त कर सके दसलक्षण से गृह्स्थो को मुनि बनने की शिक्षा मिलती है साधना करने की शिक्षा मिलती है ।आरंभ परिग्रह का त्याग करके धर्म-ध्यान का वातावरण बनता है । संसार व परिवार के समस्त कार्यो से निवृत्त हो कर व्यक्ति एकान्त धर्म स्थान मे जा कर अपने भविष्य व स्वयं के कल्याण के बारे मे सोचता है... इस पर्व में आराधना करते है यह पर्व गुणों की आराधना करने का है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन का परिवर्तन कर सके 10 लक्षण धर्म अपने आप में 10 धर्म का प्रतीक है सांसारिक पर्व व सांसारिक त्यौहार मे व्यक्ति विषयों व भोग की ओर बढ़ता है ओर पतन की ओर जाता है किन्तु दसलक्षण पर्व मे व्यक्ति त्याग ओर योग की ओर बढ़ता है ओर उसकी यात्रा मोक्ष की ओर बढ़ती है ओर व्यक्ति का उत्थान होने लगता है 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Shalaka Kasliwal Posted August 31 Share Posted August 31 भाद्रपद मास अत्यंत्त पवित्र है। इस माह में सबसे अधिक व्रत आते है, जैसे - दशलक्षण, षोडशकारण, रत्नत्रय धर्माचरण के माध्यम से शांतिप्रदायक पर्वों में पूर्यंषण का शीर्ष स्थान है। इसीलिए इसे पर्वाधिराज की उपाधि से विभूषित किया जाता हे। दशलक्षण पर्व के दिनों में क्रमशः उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन तथा उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना की जाती है। ये सभी आत्मा के धर्म हैं, क्योंकि इनका सीधा सम्बंध आत्मा के कोमल परिणामों से हैं। इस पर्व का एक वैशिष्ट्य है कि इसका सम्बंध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर आत्मा के गुणों से है। इसप्रकार यह गुणों की आराधना का पर्व है। इन गुणों से एक भी गुण की परिपूर्णता हो जाय तो मोक्ष तत्व की उपलब्धि होने में किंचित भी संदेह नहीं रह जाता है। 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Shweta Jain Damoh Posted August 31 Share Posted August 31 10 लक्षण पर्व हमारे अनादि निधन पर्वहै यह वर्ष यह वर्ष मैं तीन बार आते है । भाद्रपद, माघ ,चैत्र यह 10 धर्म का महत्व बताता है । यह धर्म हमारी आत्मा के पर्याय हैं । यह आचार्य परमेष्ठी के 36 मूल गुनो में भी आते हैं । इनको धारण करने से आत्मा शुद्ध और पवित्र होता है ।स्थूल रूप से श्रावक इनका 10 दिनों में पालन करते हैं ।इन्हीं तीन महीना में 16 कारण, रत्नत्रय, पुष्पांजलि व्रत भी आते है अतः यह 10 लक्षण पर्व आत्म शुद्धि का पर्व है। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Anjula Jain Posted August 31 Share Posted August 31 उत्त्तम क्षमा मार्दव आर्जव भाव है, सत्य शौच संयम तप त्याग उपाव है, आकिंचन ब्रह्मचर्य धरम दश सार है , चहुंगति दुखते काड़ी मुक्ति करतार है । यह 10 लक्षण पर्व हमारे आत्म शुद्धि का पर्व है । यह पर्व इच्छाओं का दमन और कशायों का शमन करताहै। इसमें प्रारंभ के चार धर्म चार कशायो।से विपरीत है । इन 10 धर्म का आचार्य परमेष्ठी 36 मूल गुनो में सूक्ष्म रूप से पालन करते हैं । श्रावक भी स्थूल रूप से 10 दिनों में इनका पालन करते हैं। यह धर्म हमें चारों गतियां के दुखों से मुक्ति दिलानेमें सहायक है। Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rashi harsora Posted August 31 Share Posted August 31 (edited) दस लक्षण पर्व जैन धर्म में अति महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसमें सम्पूर्ण जैन धर्म का सार समाया हुआ है10 लक्षण महापर्व की जय जय जय।🙏जय जिनेन्द Edited August 31 by Rashi harsora Galat likhane mein a gaya tha Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
deepajain1811 Posted August 31 Share Posted August 31 दसलक्षण पर्व आत्म शुद्धि का पर्व होते है इसलिए आत्मा की शुद्धि के लिए संयम से विभिन्न धार्मिक क्रिया की जाती हैं। इस संसार के जन्म मरण से मुक्त होने का प्रयास किया जाता है।अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखा जाता है।यह पर्व संदेश देता है की हर जीव में भगवान बनने की शक्ति है इसलिए इन दस दिन आत्मा के दस गुण परम क्षमा, शील,सरलता,संतोष, सत्य, संयम, तप,त्याग, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दसलक्षण धर्म का पर्व मनाया जाता है 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
jaya pandeya Posted August 31 Share Posted August 31 (edited) जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏 जैन धर्म के अनुसार 10 दिनों के दसलक्षण पर्व के दौरान दस धर्मों जैसे उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन एवं उत्तम ब्रह्मचर्य को धारण करने की प्रथा है। जैन धर्म में आत्मशुद्धि करने और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने के लिए मनाया जाता है. यह जीवन में नया बदलाव लाने का पर्व है इसे खुब धूमधाम से मनाया जाता है अभिषेक पूजा पाठ भक्ति करते है उपवास ताप एकाशन करते है लास्ट मै क्षमावर्णि पर्व मनाते जो भी गलती करते य किसका दिल दुखाते उसे क्षमा याचना करते छोटे य बढे सभी से क्षमा याचना करते है इस पर्व मै हम क्रोध माया मोह लालच सभी पे कंट्रोल करते सिर्फ भगवान की भक्ति मै मगन हो जाते धन्यवाद जय जिनेन्द्र 🙏 Edited September 1 by jaya pandeya Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Kunjlata Jain Posted August 31 Share Posted August 31 Das lakshan parv jain log ek parv ke roop me bade utsav ke roop me manate hai. In dino me hum logo ko bahri dikhave se door, apne andar leen rahne ki koshish karte huye apne paridham ko shant rakhne ki koshish karna chahiye Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Mehakan Jain Posted August 31 Share Posted August 31 दसलक्षण पर्व आत्म-चिंतन, आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक विकास का काल है। यह त्योहार सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा और करुणा के महत्व पर जोर देता है। यह पर्व आध्यात्मिक शुद्धि और नवीनीकरण का समय है। यह त्योहार जैनियों को दूसरों और स्वयं से क्षमा मांगने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे समुदाय के भीतर सद्भाव और मेल-मिलाप को बढ़ावा मिलता है। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sushila Gangwal Posted August 31 Share Posted August 31 दन धर्म में दशलक्षण पर्व का बहुत महत्व है। दशलक्षण पर्व के दौरान जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाती है। दिगंबर जैन समाज में पयुर्षण पर्व/ दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा, दूसरे दिन उत्तम मार्दव, तीसरे दिन उत्तम आर्जव, चौथे दिन उत्तम शौच, पांचवें दिन उत्तम सत्य, छठे दिन उत्तम संयम, सातवें दिन उत्तम तप, आठवें दिन उत्तम त्याग, नौवें दिन उत्तम आकिंचन तथा दसवें दिन ब्रह्मचर्य तथा अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं दशलक्षण के दस पर्व का महत्व :- 1. उत्तम क्षमा- सहनशीलता। क्रोध को पैदा न होने देना। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर क्रोध का कारण ढूंढना, क्रोध से होने वाले अनर्थों को सोचना, दूसरों की बेसमझी का ख्याल न करना। क्षमा के गुणों का चिंतन करना। 2. उत्तम मार्दव- चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना। 3. उत्तम आर्जव- भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना सो करना। 4. उत्तम शौच- मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं। 5. उत्तम सत्य- यथार्थ बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना। 6. उत्तम संयम- मन, वचन और शरीर को काबू में रखना। 7. उत्तम तप- मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना। 8. उत्तम त्याग- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना। 9. उत्तम अकिंचन्य- किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना। 10. उत्तम ब्रह्मचर्य- सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना। धर्म के यह दशलक्षण ऐसे हैं जो संप्रदायवाद, जातिवाद से कोसों दूर हैं और आत्म-कल्याण चाहने वाले सभी लोगों के लिए ग्राह्य हैं। लगभग सभी धर्म में इन्हें किसी ना किसी नाम से स्वीकार किया गया है। इनको जीवन में उतारने से मानव का वह स्वरूप सामने आता है, जिसमें विश्वबंधुत्व की भावना भरी है। समस्त मानव जाति अगर धर्मक्षेत्र की रेखाओं से परे होकर इन दशलक्षणों का पालन करे, तो यह दुनिया जितनी कुरीतियों, विकृतियों का सामना कर रही है, वे सब तिरोहित हो सकती हैं। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
AAA Posted August 31 Share Posted August 31 दस लक्षण पर्व का मतलब दस धर्म से है।इन धर्मों के द्वारा हम अपनी आत्मा से कषाय को दूर कर के सिद्ध बनने के रास्ते पर चल सकते हैं। दस लक्षण पर्व में अपनी आत्मा से सब कषाय को दूर कर भगवान की भक्ति तथा यथा संभव नियम का पालन करते हुए अपने पूर्व संचित पाप कर्मों का क्षय करते हुए पुण्य कर्मों का बंध करना चाहिए। हमे प्रभू कि भक्ति निष्काम भाव से करनी चाहिए। क्योंकि निष्काम भाव से की हुई भक्ति से मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। सकाम भक्ति से हमें फलस्वरूप हमें स्वर्ग धन संपदा इत्यादि मिलती है, जो कि संसार बंध का कारण है। हमें ऐसी भक्ति करनी चाहिए कि हम संसार बंधनों से मुक्त हो, अपनी आत्मा का कल्याण करते हुए सिद्धो कि श्रेणी में विराजमान हो जाए। Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rita Posted August 31 Share Posted August 31 दशलक्षण पर्व को पर्यूषण पर्व भी कहते हैं। जिनालय में धर्म की प्रभावना कर क्रोध को छोड़कर, शांत तथा समता को अपना कर, घमंड नहीं करना, अहम को छोड़कर, माया कपट लोभ नहीं करना, सत्य वचन बोलना, इंद्रियों और मन को वश में कर संयम रखना, इच्छाओं को छोड़कर तप व त्याग करना, मन को संतुष्ट करना, परिग्रह का त्याग कर अपने जीवन के मूल्यों को समझना और धर्म ध्यान कर व अपने द्वारा किए गए दोषों को दूर करने के लिए हम इस पर्व पर आराधना करते हैं व अपने जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं जिससे वातावरण धर्म ध्यान का बनता है व भावों में परिवर्तन होता हैं। इस उत्तर में मेरे द्वारा कोई ग़लती हुई हो तो उत्तम क्षमा......... जय जिनेन्द्र 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Pramilajain Posted August 31 Share Posted August 31 जय जिनेन्द्र आचार्य श्री को बारंबार नमन में पिछले बीस _ पच्चीस सालों से केरला में हू लेकिन जब भी पर्युषण पर्व आते है मैं अपने बचपन के दिनों में पहुंच जाती हूं जहां से दस दिनों का महत्व समझा जाना और मानने की कोशिश की। में अपने मन की बात आप लोगो से साझा कर रही हू,ये दस दिन दस जन्मों का सार है।हर दिन हमे जीवन जीने की कला सिखाता है।क्षमा मारदाव आर्जव आदि दस धर्म हमे अपने आप से जुड़ने की राह दिखाते है।दस धर्म हमे दस दिन ही नही बल्कि जब तक जीवन है पालना चाइए और जो संत लोग इन धर्मो का पालन करते है उनका समागम करना चाइए। यदि हमे साधु संतो का समागम न मिले तो कम से कम अनुमोदन तो करना ही चाइए दस दिनों के दस धर्म ही जीवन का सार है । अपने आत्मा के निकट पहुंचने का मार्ग है।। है प्रभु मुझे इतना विश्वास de ki मैं पूरा न सही पर कुछ तो अपना कर अपना कल्याण कर सकू जो भाव मन में आया आप लोगो के साथ साझा कर दिया।।।।।।।।।।।। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Aayushijain170993 Posted August 31 Share Posted August 31 दशलक्षण पर्व (Daslakshan Parva) जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है, जो विशेष रूप से दस प्रमुख गुणों की पूजा और अभ्यास पर केंद्रित होता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इसका उद्देश्य जैन धर्म के अनुयायियों को नैतिक और आध्यात्मिक जीवन की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करना है। इस पर्व के दौरान, जैन अनुयायी निम्नलिखित दस गुणों का पालन करते हैं: 1. अहिंसा (Ahimsa)- सभी जीवों के प्रति हिंसा से बचना। 2. सत्य (Satya)- सत्य बोलना और सत्य का पालन करना। 3. अस्तेय (Asteya)- चोरी और अन्यायपूर्ण संपत्ति से दूर रहना। 4. ब्रह्मचर्य (Brahmacharya)- संयमित और शुद्ध जीवन जीना। 5. अपरिग्रह (Aparigraha) - अत्यधिक संग्रहण और भौतिक वस्तुओं से परहेज करना। 6. क्षमा (Kshama) - क्षमाशील और दयालु होना। 7. मैत्री (Maitri)- मित्रवत और सहयोगी व्यवहार करना। 8. मितभोजन (Mitabhakshan)- संयमित और सीमित भोजन करना। 9. संतोष (Santosh)- संतोष और आत्म-स्वीकृति की भावना रखना। 10. दया (Dayā)- दया और करुणा का भाव रखना। दशलक्षण पर्व जैन धर्म के अनुयायियों को इन गुणों का पालन करके आत्म-संयम और धार्मिक अनुशासन को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और सामुदायिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है। तीर्थंकरों के जीवन और उपदेशों से प्रेरित होकर, यह पर्व धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए एक प्रेरणादायक अवसर है। 1. शुद्धिकरण : आत्मा को शुद्ध करने के लिए आत्म-चिंतन और तपस्या पर ध्यान केंद्रित करता है। 2. तप और उपवास: आत्म-शुद्धि के लिए उपवास और अन्य तपस्याओं का पालन। 3. नैतिक और सांस्कृतिक चिंतन: नैतिक और सांस्कृतिक आचरण पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। 4. मोक्ष का मार्ग: कर्म बंधन को कम करके आत्मा को मोक्ष (मुक्ति) के करीब लाने का प्रयास। दसलक्षण पर्व के महत्व को समझाने के लिए छोटी-छोटी कहानियाँ - 1) कहानी: क्षमा और आत्म-शुद्धि प्राचीन समय की बात है, एक गाँव में महावीर नामक एक जैन साधक रहते थे। वे अत्यंत सरल, सत्यवादी और दयालु थे। एक दिन, गाँव के कुछ लोगों ने महावीर पर झूठा आरोप लगाया और उन्हें अपमानित किया। महावीर ने शांतिपूर्वक सब कुछ सुना और बिना किसी क्रोध के मुस्कुरा दिए। जब गाँव वालों ने देखा कि महावीर ने उनके अपमान का बदला नहीं लिया, तो वे चकित रह गए। महावीर ने उनसे कहा, "क्षमा सबसे बड़ी शक्ति है। क्रोध हमें कर्मों में बांधता है, जबकि क्षमा हमें मुक्त करती है।" गाँव वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे महावीर के चरणों में गिर पड़े। महावीर ने उन्हें क्षमा कर दिया और समझाया कि दसलक्षण पर्व के दस गुण—क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अपरिग्रह, और ब्रह्मचर्य—जीवन को शुद्ध करने और आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाने का मार्ग हैं। इस घटना के बाद, गाँव के लोग महावीर से प्रेरणा लेकर दसलक्षण पर्व का पालन करने लगे, और उनके जीवन में शांति और सद्भावना का विस्तार हुआ। सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दसलक्षण पर्व के गुणों का पालन न केवल आत्मशुद्धि के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज में भी सद्भावना और शांति का प्रसार करता है। 2) कहानी: संयम की शक्ति राजपुर नामक एक छोटे से राज्य में राजा विमलदेव राज्य करते थे। वे एक पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा थे, लेकिन उन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं था। उनके गुस्से के कारण राज्य के लोग उनसे डरते थे, और कई बार उनके गुस्से का शिकार हो जाते थे। एक दिन, दसलक्षण पर्व के दौरान एक जैन मुनि उस राज्य में आए। मुनि ने राजा विमलदेव को संयम के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "राजन, क्रोध आत्मा को बांधता है और हमें पाप की ओर ले जाता है। संयम ही वह शक्ति है जो हमें मोक्ष की ओर ले जा सकती है।" राजा ने मुनि की बातें सुनीं और सोचा, "मैं अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर पाता, इसलिए लोग मुझसे दूर हो रहे हैं। मुझे संयम का पालन करना चाहिए।" राजा ने दसलक्षण पर्व के दौरान मुनि के निर्देशानुसार संयम का अभ्यास शुरू किया। जब भी उन्हें गुस्सा आता, वे ध्यान लगाते और अपने मन को शांत करते। धीरे-धीरे, राजा का गुस्सा कम होने लगा और उनका राज्य शांति और समृद्धि की ओर बढ़ने लगा। सीख: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संयम, जो दसलक्षण पर्व का एक महत्वपूर्ण गुण है, जीवन में शांति और सफलता का मार्ग दिखाता है। क्रोध पर नियंत्रण पाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं। 3) कहानी: त्याग का महत्व वृत्तनगर में एक जैन साध्वी रहती थीं, जिनका नाम साध्वी शांतिबाई था। उन्होंने अपने सारे सांसारिक सुखों का त्याग करके साध्वी जीवन अपनाया था। वे रोज़ उपवास करतीं, ध्यान लगातीं और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करतीं। एक बार, दसलक्षण पर्व के समय, एक युवा लड़की सुमन उनके पास आई और बोली, "मां, मैंने सुना है कि आपने अपना सब कुछ त्याग दिया है। क्या आप मुझसे भी कुछ सिखा सकती हैं?" साध्वी शांतिबाई ने सुमन को एक कटोरी दी और कहा, "इसे पानी से भरकर लाओ, लेकिन ध्यान रखना कि एक भी बूंद गिरने न पाए।" सुमन ने बहुत सावधानी से कटोरी में पानी भरा और साध्वी के पास ले आई। साध्वी ने मुस्कुराते हुए कहा, "जैसे तुमने पानी की एक भी बूंद गिरने नहीं दी, वैसे ही हमें त्याग का पालन करना चाहिए। सांसारिक इच्छाओं और भोगों का त्याग करके हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।" सुमन ने साध्वी की बात समझ ली और उसने भी धीरे-धीरे अपनी अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करना शुरू किया। उसके जीवन में शांति और संतोष का संचार होने लगा। सीख: त्याग, जो दसलक्षण पर्व का एक महत्वपूर्ण गुण है, हमें आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाता है। जब हम अनावश्यक इच्छाओं और भोगों का त्याग करते हैं, तो हमारा जीवन सरल और शुद्ध हो जाता है। दसलक्षण पर्व के कुछ और महत्वपूर्ण बिंदु: 1. एकता और समुदाय : यह पर्व जैन समाज में एकता का भाव बढ़ाता है, क्योंकि सभी मिलकर उपवास, पूजा और सामूहिक प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं। 2. धार्मिक ग्रंथों का पाठ : पर्व के दौरान "तत्वार्थ सूत्र" और अन्य जैन धर्मग्रंथों का अध्ययन और पाठ किया जाता है, जिससे जैन दर्शन की समझ गहरी होती है। 3. क्षमावाणी दिवस : दसलक्षण पर्व का समापन क्षमावाणी दिवस पर होता है, जो क्षमा मांगने और देने के लिए समर्पित होता है। इस दिन जैन लोग परिवार, मित्रों, और यहां तक कि शत्रुओं से भी क्षमा मांगते हैं। दशलक्षण पर्व का निष्कर्ष जैन धर्म में इस प्रकार है: दशलक्षण पर्व दस महत्वपूर्ण गुणों की पूजा और अभ्यास पर केंद्रित होता है, जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे नैतिक सिद्धांतों को समाहित करते हैं। यह पर्व जैन अनुयायियों को आत्मसुधार, धार्मिक अनुशासन, और सामाजिक समर्पण की दिशा में मार्गदर्शन करता है। तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षाएँ इन गुणों के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। दशलक्षण पर्व व्यक्ति को नैतिकता, आध्यात्मिक उन्नति, और समाज में शांति स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rama J Posted August 31 Share Posted August 31 तत्वार्थ सूत्र Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Hiral Jain Posted August 31 Share Posted August 31 Daslakshan ka mehatva in image attached. Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Deepali Rajiv Posted August 31 Share Posted August 31 दसलक्षण पर्व जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो आत्म-शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार के लिए मनाया जाता है। इसका वास्तविक महत्व और प्रभाव: - आत्म-शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार - क्षमा और करुणा की महत्ता - स्वयं के बारे में जागरूकता और सुधार - जैन मूल्यों और सिद्धांतों को अपनाना - आध्यात्मिक विकास और मोक्ष की दिशा में कदम यह पर्व जैन समुदाय को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने और आत्म-मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जय जिनेन्द्र 🙏 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Arpana Jain Posted August 31 Share Posted August 31 मानवी एवं नविका जैन 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Hiral Jain Posted September 1 Share Posted September 1 जय जिनेन्द्र🙏🏻 दश लक्षण पर्व का महत्व पर्युषण पर्व जैन धर्म में पर्वों का राजा है। साधारणतः लौकिक त्यौहारो पर जहाँ परिग्रह अधिक खानपान,परिग्रह आदि की होड़ लगी रहती है,वहीं दशलक्षण महापर्व पर जैन साधर्मी,श्रावको मे कठिन तपस्या, त्याग की होड़ लग जाती है। सभी जैन बन्धुओं में इन दस दिनों में धर्म के प्रति सारे वर्ष की अपेक्षाकृत अधिक उत्साह रहता है। इन दिनों छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े तक उपवास, संयम तथा स्वाध्याय आदि में लगे रहते है। कितने ही श्रावक दसो दिनों तक निर्जल उपवास रखते है। अपने कर्मों की निर्जरा करते है। अब प्रश्न यह है कि इतना सब त्याग इन्हीं दिनों में क्यों करते है? क्या महत्व है इन दिनों का? दशलक्षण पर्युषण महापर्व पर धर्मात्मा बन्धु आत्मा के दश धर्मों की विशेष आराधना करते है।उत्तम क्षमादि दस धर्म आत्मा के स्वभाविक धर्म है।किंतु आत्मा से अशुभ कर्म जुड़े रहते है,जिससे अनंत दुःखों की प्राप्ति होती है। हमें इन दस दिनों में अपने असाता कर्मों की निर्जरा करने का महान अवसर मिलता है। सबसे महत्वपूर्ण बात उत्तम क्षमादि धर्मों की आराधना भले ही जैन श्रावक ही करते है, लेकिन इन स्वाभाविक धर्मों का अनुसरण वे सभी कर सकते है जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारते है।विशेषतः भाद्रपद माह के पर्युषण पर्व विशेष महत्व रखते है।दस दिनों में हम प्रतिदिन अलग-अलग धर्मों की पूजा करते है।वैसे तो जीवनभर इन धर्मों को हृदय में धारणा चाहिए लेकिन आम इंसान जीवन की भागदौड़ में सब भूल जाता है।जो भाद्रपद के पर्युषण पर्व हमें बुरें कर्मों की निर्जरा कर कुछ पुण्य कमाने का विशेष अवसर देता है।साथ ही व्यवहारिक पक्ष देखा जाए तो इन दिनों जिनमंदिरों में साधर्मी बंधुओं की भारी भीड़ लगी रहती है।जो लोग पूरे साल मंदिर नहीं आते, इन दिनों आवश्यक रूप से आते है जिसका लाभ यह भी है कि जैन बंधुओं में भाई चारा बढ़ता है। पर्व के दिनों में की जाने वाली पूजा भक्ति विशेष फल प्रदान करती है। ये दस धर्म भव से पार ले जाने में सक्षम है।इन धर्मों को हृदय में धारण करके जन्म मरण के दुःख से छुटकारा पा सकते है। ये धर्म आत्मा से परमात्मा बनने के लिए आवश्यक है। हृदय में सहनशीलता लाकर,चित्त में कोमलता धारकर भावों को शुद्ध कर , कोई लोभ न कर, सदा हितकारी यथार्थ बोलना।किसी वस्तु-व्यक्ति मात्र में ममत्व भाव न रखकर व अच्छे गुणों को धारकर अपने को पवित्र रखने का नाम ही दसलक्षण पर्व है। पर्व आने वाले है। नीति जैन रोहिणी दिल्ली। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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