admin Posted August 30 Share Posted August 30 प्रतियोगिता परिणाम निम्न लिंक पर देखें - आप इस चर्चा मे अभी भी भाग ले सकते हैं https://jainsamaj.vidyasagar.guru/forums/topic/1577-das-lakshan-parv-why-do-we-celebrate-प्रतियोगिता-परिणाम/ "दसलक्षण पर्व: क्यों मनाते हैं? इसके वास्तविक महत्व और प्रभाव पर विचार साझा करें!" Dear Members, From September 8th, we will be celebrating Das Lakshan Parv in our community. This festival is a time for self-reflection, penance, and cultivating virtues in our lives. Each day is dedicated to one of the ten virtues, and we strive to embody these qualities in our actions. Have you ever wondered why Das Lakshan Parv is so important in our lives? What does celebrating this festival mean to you? What are your experiences with incorporating these ten virtues into your daily routine? Let's discuss the significance of this festival and the deeper meaning behind it. "We invite your thoughts, experiences, and stories about the virtues of Das Lakshan Parv. Whether you share personal reflections, inspirational quotes, or images—every contribution is valuable." Share your experiences and explore how Das Lakshan Parv can bring transformation within us. Like this post, comment with your thoughts, and invite your friends to join so that we can all better understand the true essence of this festival together. We hope you will actively participate in this discussion and enrich us with your valuable insights. Thank you, प्रिय सदस्यों, 8 सितंबर से जैन समाज में दसलक्षण पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व आत्मचिंतन, तपस्या और हमारे जीवन में सद्गुणों को विकसित करने का समय है। हर दिन एक विशेष गुण को समर्पित होता है, और हम इन गुणों को अपने आचरण में उतारने का प्रयास करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि दसलक्षण पर्व हमारे जीवन में इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इस पर्व को मनाना आपके लिए क्या मायने रखता है? इन दस गुणों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने के आपके अनुभव क्या रहे हैं? आइए, इस पर्व के महत्व और इसके पीछे की गहरी सोच पर चर्चा करें। "हम आपको दसलक्षण पर्व के गुणों पर अपने विचार, अनुभव और कहानियाँ साझा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। चाहे आप व्यक्तिगत अनुभव, प्रेरणादायक उद्धरण, या चित्र साझा करें—हर योगदान महत्वपूर्ण है।" अपने अनुभव साझा करें और जानें कि दसलक्षण पर्व हमारे भीतर कैसे परिवर्तन ला सकता है। इस पोस्ट को लाइक करें, अपने विचार कमेंट करें और अपने दोस्तों को भी आमंत्रित करें ताकि हम सब मिलकर इस पर्व का सच्चा सार समझ सकें। आशा है कि आप सब इस चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लेंगे और हमें अपने अनमोल विचारों से समृद्ध करेंगे। धन्यवाद ! 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
admin Posted August 30 Author Share Posted August 30 पांच मिनट का समय निकालें और इस चर्चा में अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कराएं!" इस चर्चा को और भी रोचक बनाने के लिए, पहली 50 प्रविष्टियों में से दो भाग्यशाली लोगों को हथकरघा की साड़ी या धोती-दुपट्टा प्रदान किया जाएगा। अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को इस चर्चा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। कृपया सुनिश्चित करें कि आपकी पोस्ट में मूल्यवर्धन हो और गुणवत्तापूर्ण विचार प्रस्तुत करें—सिर्फ कुछ भी पोस्ट न करें। आप अपने विचार अपने शब्दों में लिख सकते हैं या वीडियो बनाकर उसका लिंक भी पोस्ट कर सकते हैं। इस चर्चा का हिस्सा बनें और अपने अनुभव, विचार और कहानियाँ साझा करें। सभी प्रतिक्रियाएं पहले 50 प्रविष्टियों तक छिपी रहेंगी, जिससे निष्पक्षता बनी रहेगी। धन्यवाद, Take Five Minutes to Participate in This Discussion!" To make this discussion more engaging, the first 50 entries will have a chance to win a handloom saree or dhoti-dupatta. Encourage every member of your family to participate in this conversation. Please ensure that your post adds value and maintains quality—avoid posting just anything. You can share your thoughts in writing or create a video and post the link. Be a part of this discussion by sharing your experiences, thoughts, and stories. All replies will remain hidden until the first 50 entries, ensuring fairness. Thank you, Purpose of the Activity: Encouraging Thought Process and Development of presentation skills The aim of this activity is to foster critical thinking and enhance writing and presentation skills among participants. We encourage unique and thoughtful contributions. If we receive identical or very similar entries, we reserve the right to reject them to maintain the integrity of the discussion. Please note that all decisions regarding entries will be final and made at our discretion. Let’s use this opportunity to share valuable insights and learn from each other! Thank you, गतिविधि का उद्देश्य: विचार प्रक्रिया और लेखन/प्रस्तुतीकरण कौशल को प्रोत्साहित करना इस गतिविधि का उद्देश्य प्रतिभागियों में सोचने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना और लेखन व प्रस्तुतीकरण कौशल को विकसित करना है। हम अद्वितीय और सार्थक योगदान को बढ़ावा देते हैं। यदि हमें एक जैसी या बहुत समान प्रविष्टियां मिलती हैं, तो हम उन्हें अस्वीकार करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं, ताकि चर्चा की गुणवत्ता बनी रहे। कृपया ध्यान दें कि प्रविष्टियों से संबंधित सभी निर्णय हमारे द्वारा लिए जाएंगे और वे अंतिम होंगे। आइए, इस अवसर का उपयोग करें और एक-दूसरे से मूल्यवान विचार साझा करें! धन्यवाद, Spoiler Important Guidelines: Please do not share your personal details, such as your mobile number, in your posts. Keep your profile updated—there is an option to update your mobile number, which will only be visible to the management team. Make sure to follow our WhatsApp channel, as all important updates and information will be shared there. https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R Thank you for your cooperation, महत्वपूर्ण दिशानिर्देश: कृपया अपनी व्यक्तिगत जानकारी जैसे मोबाइल नंबर को पोस्ट में साझा न करें। अपनी प्रोफ़ाइल को अपडेट रखें—आपके पास अपना मोबाइल नंबर अपडेट करने का विकल्प है, जो केवल प्रबंधन टीम को दिखाई देगा। कृपया हमारे व्हाट्सएप चैनल को जरूर फॉलो करें, क्योंकि सभी महत्वपूर्ण जानकारी और अपडेट वहीं साझा की जाएंगी। https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R आपके सहयोग के लिए धन्यवाद, 3 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Ratan Lal Jain Posted August 30 Share Posted August 30 (edited) दश लक्षण पर्व क्यों मनाते हैं? दशलक्षण महापर्व वर्ष में तीन बार आता है - 1. भादों सुदी 5 से 14 तक 2. माघ सुदी 5 से 14 तक व 3. चैत्र सुदी 5 से 14 तक; तथापि सारे देश में विशालरूप में बड़े उत्साह के साथ मात्र भादों सुदी 5 से 14 तक, ही मनाया जाता है। बाकी दो को तो बहुत से जैन लोग भी जानते तक नहीं है। प्राचीन काल में बरसात के दिनों में आवागमन की सुविधाओं के पर्याप्त न होने से व्यापारादि कार्य सहज ही कम हो जाते थे। तथा जीवों की उत्पत्ति भी बरसात में बहुत होती है। अहिंसक समाज होने से जैनियों के साधुगण तो चार माह तक गांव से गांव भ्रमण बंद कर एक स्थान पर ही रहते हैं, श्रावक भी बहुत कम भ्रमण करते थे। अतः सहज ही सत्समागम एवं समय की सहज उपलब्धि ही विशेष कारण प्रतीत होते हैं - भादों में ही इसके विशाल पैमाने पर मनाये जाने के। उत्तमक्षमादि धर्मों की सार्वभौमिक त्रैकालिक उपयोगिता एवं सुखकरता के कारण ही दशलक्षण महापर्व शाश्वत पर्वों में गिना जाता है और इसी कारण यह महापर्व है। वैसे तो प्रत्येक धार्मिक पर्व का प्रयोजन आत्मा में वीतरागभाव की वृद्धि करने का ही होता है, किंतु इस पर्व का संबंध विशेष रूप से आत्म-गुणों की आराधना से है। अतः यह वीतरागी पर्व संयम ओर साधना का पर्व है। यहां एक प्रश्न संभव है कि यह महापर्व त्रैकालिक है, अनादि-अनन्त है, इनके आरंभ होने की कथा इस तरह कहीं जाती है? कहा जाता है कि कालचक्र के परिवर्तन में कुछ स्वाभावितक उतार-चढ़ाव आते हैं जिन्हें जैन परिभाषा में अवसर्पिणी में कुछ उत्सर्पिणी के नाम से जाना जाता है। अवसर्पिणी में क्रमशः ह्रास और उत्सर्पिणी में क्रमशः विकास होता है। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में छह-छह काल होते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी काल के अंत में जब पंचम काल समाप्त और छठा काल आरंभ होता है, तब लोग अनार्यवृत्ति कर हिंसक हो जाते हैं। उसके बाद जब उत्सर्पिणी आरंभ होती है और धर्मोत्थान का काल पकता है, तब श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से सात सप्ताह (49 दिन) तक विभिन्न प्रकार की बरसात होती है, जिसके माध्यम से सुकाल पकता है और लोगों में पुनः अहिंसक आर्यवृत्ति का उदय होता है; एकप्रकार से धर्म का उदय होता है, आरंभ होता है और उसी वातावरण में दश दिन तक उत्तमक्षमादि दशधर्मों की विशेष आराधना की जाी है तथा इसी आधार पर हर उत्सर्पिणी में यह महापर्व चल पड़ता है। यह कथा तो मात्र यह बताती है कि प्रत्येक उत्सर्पिणी काल में इस पर्व का पुनरारम्भ कैसे होता है। इस कथा से दशलक्षण महापर्व की अनादि-अनन्तता पर कोई आंच नहीं आती । दशलक्षण पर्व जैनों का सबसे महत्वपूर्ण एवं महान पर्व है। दशलक्षण पर्व हम लोक युगारंभ के उद्देश्य से मनाते है। जब पंचमकाल के बाद इस सृष्टि का प्रलय काल आएगा, सृष्टि विनष्ट होगी उसके बाद सुकाल के समय में 7 -7 दिन की 7 सुवृष्टियाँ होती हैं यानी 49 दिन होते हैं, वो 49 दिन आवण बढ़ी एकम से लेकर भादो चौध तक होते हैं और 50वें दिन से जब सृष्टि की शुरुआत हुई तो हमने उसे युगारंभ माना और उसकी शुरुआत हमने धर्म की सारी दुनिया में लोग अलग-अलग तरीके से धर्म करते है, पूजा-पाठ, उत्सव, आराधना आदि। जैन धर्म में भी बहुत सारे ऐसे पर्व त्यौहार है जिसमें पूजा-पाठ, आराधना आदि की महत्ता है। दशलक्षण महापर्व में भी हम पूजा तो करते हैं पर भगवान की नहीं, अपितु 10 दिन दस महत्वपूर्ण गुणों की जिन्हें हम दस धर्म कहते हैं। जैन धर्म की विशेषता है कि व्यक्ति की अपेक्षा गुणों की पूजा को स्थान दिया गया है। इसका प्रमाण है हमारा मूलमंत्र णमोकार मंत्र जिसमें किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि अरिहंतों को, सिद्धों को आचायों को, उपाध्याय को लोक के सर्व साधुओं को नमस्कार किया गया है। तीर्थंकरों की पूजा को महापर्व नहीं कहा गया और न ही अन्य पूजा को परन्तु दशलक्षण पर्व को महापर्व की संज्ञा दी गयी है। दस धर्म के उदात्त जीवन मूल्य हैं, जो हर व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए जरूरी है। इसलिए 10 दिनों में विशेष रूप से दस धर्मों की आराधना करके हम अपने अंदर इन गुणों के संस्कारों को भरते हैं। इन 10 दिनों में हम अपने आपको रिचार्ज करते है ताकि आने वाले 355 दिनों तक उसका असर हम पर रह सके गुणों का आराधन के साथ त्याग तपस्या करते हैं। लोग उपवास करते हैं. एकासन करते हैं और अपने जीवन में संयम का पाठ पढ़ते हैं। इस तरह दशलक्षण उदात्त जीवन मूल्यों की आराधना का पर्व है। जिसमें हम जीवन मूल्यों की आराधना करते हैं प्रस्तुतकर्ता रतन लाल जैन, जोधपुर (राजस्थान) Edited August 30 by Ratan Lal Jain मोबाइल नम्बर गलत टाइप हो गये थे, अब मोबाइल नम्बर हटा दिया है 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Archana Lohade Posted August 30 Share Posted August 30 आत्म शुद्धि का महान पर्व है। दशलक्षण-शाश्वत, सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक -सभी पर्वों का सम्राट है । दुनिया में जितने भी पर्व हैं, उन सभी का किसी न किसी घटना अथवा महापुरुष से संबंध है। लेकिन दसलक्षण पर्व का संबंध किसी घटना अथवा महापुरुष से नही है। देश-काल, क्षेत्र विशेष, जाति-धर्म से भी इसका कोई संबंध नही है। यह पर्व तो शाश्वत है, सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक है। क्योंकि यह पर्व आत्मा की शुद्धि का पर्व है, इसलिए इसे महापर्व कहते हैं। यह पर्व तो सभी पर्वों का सम्राट माना जाता है। सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। मनुस्मृति तथा गीता में भी इसका उल्लेख है, क्रम थोडा भिन्न हो सकता है। जैन धर्म में धर्म की परिभाषा बडी व्यापक है, यहां धर्म तो एक ही है, जो धारण किया जाता है, परंतु उसके लक्षण दस बताए गए हैं। चातुर्मास के दिनों में भादो मास में दसलक्षण पर्व की आराधना विशेष रूप से की जाती है। धर्म के दस लक्षणों में क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन तथा ब्रह्मचर्य आते हैं। हां, एक बात और खास है कि इस सभी के साथ उत्तम शब्द जरूर जुडा होता है। यानि ये सब लक्षण उत्तम ही होने चाहिए। उत्तम क्षमाः- क्रोध प्रत्येक जीव का सबसे बडा शत्रु है, उसे जीतना ही उत्तम क्षमा है। उत्तम मार्दवः- किसी भी प्रकार के मान यानि अभिमान को समाप्त करने को उत्तम मार्दव धर्म की आराधना कहते हैं। उत्तम आर्जवः- अपने हृदय को मायाचारी से बचाकर सरल बनाने को ही उत्तम आर्जव धर्म की आराधना कहते हैं। उत्तम शौचः- लोभ को त्याग कर जीवन में शुचिता यानि पवित्रता को अपनाना ही उत्तम शौच धर्म की आराधना है। उत्तम सत्यः- सभी के लिए हित, मित व प्रिय वचन बोलना ही उत्तम सत्य धर्म की आराधना है। उत्तम संयमः- अपनी आत्मा के विकारी भावों को नष्ट करना ही उत्तम संयम धर्म की आराधना है। उत्तम तपः- इच्छाओं का निषेध कर रागादि भावों को जीतकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होना ही उत्तम तप धर्म की आराधना है। उत्तम त्यागः- पर द्रव्यों से मोह छोडकर उनका त्याग करना ही इस धर्म की आराधना है। उत्तम आकिंचनः- मेरी आत्मा के सिवाय किंचित मात्र भी पर पदार्थ मेरा नही है, ऐसा चिंतन करना ही उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना है। उत्तम ब्रह्मचर्यः- अपनी आत्मा में रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना है। दश लक्षण पर्व के दस दिनों में उपरोक्त दस धर्मों की आराधना कर आत्मा परम पवित्र बन जाती है तो फिर उत्तम क्षमा धर्म की आराधना की जाती है। जिसे क्षमावाणी पर्व कहते हैं। क्षमा एक ईश्वरीय गुण है। संसार के सभी प्राणियों के प्रति क्षमाभाव धारण करना ही उत्तम क्षमा धर्म की आराधना और साधना है। दशलक्षण धर्म को अपने जीवन में धारण करने के बाद पूरा जीवन पर्वमय हो जाता है। धर्म हमारा पुष्प है और दशलक्षण उसकी पंखुड़ियाँ। धर्म एक सागर है और दशलक्षण उसकी लहरें। 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Gudiya Posted August 30 Share Posted August 30 दस लक्षण परव जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण परव है। यह पर्व 10 तक मनाया जाता है।यह हमें जैन धर्म के सिद्धांतों को समझने में मदद करता है। इस बार सह पर्व 8 September से शुरू हो रहा है। दस लक्षण परव साल में दो बार आता है लेकिन भाद्रपद वाले दस लक्षण अति उल्लास से मनाया जाता है जेनी द्वारा। यह पर्व 10 सिद्धांतों को पालन करना सिखाया है। (उतम क्षमा,उतम मार्दव , उतम आरजव , उतम शौच, उतम सत्य , उतम संयम, उतम तप, उतम त्याग, उतम आकिंचन्य, उतम ब्रह्मचर्य) इस पर्व के दौरान जैन लोग धर्म, ध्यान करते हैं, कठोर तप, त्याग करते हैं, ईश्वर की भगती में लीन होते हैं, आपने द्वारा की गई गलती का पश्चात करते हैं। ओर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि भवसागर पार कराओ, इस शरीर से मुक्त होकर, आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके। Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
CAPriyanka Jain Posted August 30 Share Posted August 30 दसलक्षण वर्ष में 3 बार आता है, हालांकि हम भाद्र माह में आने वाले पर्व को उत्साह से मनाते हैं। दस दिनों का उत्सव है जहाँ जैन भक्त किसी आत्मा के दस गुणों का जश्न मनाते हैं न कि किसी विशिष्ट देवता या तीर्थंकर का इस को मनाने के पीछे कई मकसद हैं: 1. आत्मशुद्धि करने का प्रयास करना 2. जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने का प्रयास करना अपने जीवन पर चिंतन करना 3. पूरे साल किए गए पापों और कटू वचनों के लिए क्षमा मांगना 4. एक-दूसरे को क्षमा देना और क्षमा मांगना हम अभी बैंगलोर में रह रहे हैं, यहां के मंदिर में दसलक्षण पर्व में इवनिंग के समय लोगों को इकट्ठा करने के लिए आरती, प्रवचन के बाद धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनसे धर्म का प्रचार तथा और अधिक व्यक्ति तक धर्म की प्रभावना फैले। दस प्रमुख गुणों या धर्मों का संक्षिप्त अर्थ निम्नलिखित है: 1. उत्तम क्षमा (Supreme Forgiveness): सभी दोषों और गलतियों को क्षमा करने की क्षमता। 2. उत्तम मार्दव (Supreme Humility): विनम्रता और घमंड से दूर रहना। 3. उत्तम अरजव (Supreme Straightforwardness): ईमानदारी और सच्चाई से जीना। 4. उत्तम सत्य (Supreme Truthfulness): सत्य बोलना और किसी भी तरह के झूठ से दूर रहना। 5. उत्तम शौच (Supreme Purity): मानसिक, शारीरिक और नैतिक शुद्धता बनाए रखना। 6. उत्तम संयम (Supreme Contentment): जो कुछ भी है उसमें संतोष रखना। 7. उत्तम तप (Supreme Austerity): आत्म-नियंत्रण और कठिनाइयों को सहना। 8. उत्तम त्याग (Supreme Self-Study): धार्मिक ग्रंथों और आत्म-ज्ञान की खोज। 9. उत्तम आकिंचन (Supreme Non-possessiveness): संपत्ति और वस्तुओं की अनावश्यक चाह से बचना। 10. उत्तम ब्रह्मचर्य (Supreme Celibacy): संयमित जीवन और यथासंभव संयम बनाए रखना। ये दस गुण आत्म-सुधार और धार्मिक अनुशासन के मूल तत्व हैं, जिनका पालन जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की दिशा में किया जाता है। Jai Jinendra 🙏 10 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
sweety Posted August 30 Share Posted August 30 10 लक्षण पर्व एक महत्वपूर्ण पर्व इसे सभी जैन द्वारा अति उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है |10 लक्षण पर्व श्वेतांबर और दिगंबर दोनों जनों द्वारा मनाया जाता है दिगंबर द्वारा 10 दिनों तक 10 लक्षण पर मनाया जाता है और सितंबर द्वारा 8 दिनों तक दर्शन पर मनाया जाता है 10 लक्षण पर्व 10 मूल सिद्धांतों पर बसे है यह मूल सिद्धांत हमें सिखाते हैं कि कैसे हम उन मूल सिद्धांतों को पालन करके आत्मक शुद्ध कर सकते हैं तथा परिग्रह से मुक्त हो सकते हैं | 10 मूल सिद्धांत है उत्तम क्षमा ,उत्तम मारदव , मा उत्तम सोच ,उत्तम सत्य ,उत्तम संयम ,उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम ब्रह्मचर्य ,उत्तम आकिचय 10 लक्षण के दौरान विशेष कर जैन मंदिर को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है , मंदिर में विशेष प्रकार के कार्यक्रम होते हैं नृत्य प्रतियोगिता थाली सजा प्रतियोगिता, तथा महाराज जी या माताजी या पंडित जी द्वारा लोगों का मार्गदर्शन किया जाता है प्रवचन के माध्यम से जिससे वह अच्छी राह पर हो सके और सात्विक जीवन जी सके गलत कर्मों को छोड़ सके और अपने मोक्ष मार्ग की और परस्पर आगे बढ़ सके| 10 लक्षण पर्व के यह 10 मूल अगर सभी जैन अजैन इन सभी क| पलन करते हैं तो सभी का जीवन सुख में हो सकता है और और सभी मोक्ष मार्ग की और परस्पर हो सकते हैं| Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
आकृति जैन पटोरिया Posted August 30 Share Posted August 30 पर्युषण अर्थात जैन धर्म के पर्वों का राजा। वर्ष में 10 दिन मनाया जाने वाला ये त्यौहार सही मायने में प्रतिदिन मनाया जाना चाहिए क्यू की इसमें बात ही कुछ ऐसी है। आत्मशुद्धि,, आत्म कल्याण, त्याग, निष्ठा, धर्म, क्षमा का यह त्योहार मिसाल है वर्धमान के सिद्धांतों की। १० धर्मों के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व नित प्रतिदिन नए कर्तव्यों से हम अवगत कराता है। आत्मा की शुद्धि से ले कर तन की शुद्धि तक पूर्ण शुद्धि का त्योहार पर्युषन वर्तमान समय में और भी प्रासंगिक मालूम पड़ता है। कोरोना काल में जब विश्व में कोलाहल मचा हुआ था, ऐसी स्तिथि में जैन धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे मुंह पट्टी, सोला आदि की प्रासंगिकता देखने को मिली। इजरायल - हमास, रूस - यूक्रेन आदि देशों में जो हाहाकार मचा हुआ है वह अहिंसा, अपरिग्रह और उत्म क्षमा के पालन से शांत किया जा सकता है। अतः यह पर्व केवल आत्म कल्याण नहीं, अपितु विश्व कल्याण की भावना का पर्व है। आज के समय में परंतु जैन धर्म के मूल भूत सिद्धांत खत्म होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आवश्यकता है की हम सभी अपनी इस धरोहर को बचा कर रखें और महावीर के सिद्धांतों को जन जन तक पहुंचने का कार्य करें। इस उपलक्ष्य में अपनी एक स्वरचित कविता इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी लोगों तक पहुंचाना चहुगीं जो हमे प्रेरित करती है आज भी अपने धर्म सिद्धांतों पर अडिग खड़े रहने हेतु। "क्या आज भी तुमको मंदिर की घंटी जगाया करती है, क्या आज भी अभिषेक की धुन समय बताया करती है, सच सच बतलाडो आज मुझे अपने हिय से ये पूछ प्रश्न, क्या आज भी दादी चेलना की कहानी सुनाया करती है। विलुप्त हो रहे संस्कारों से अब खुद को बचाए रखना है, दुनिया के मायाजाल से अब जैनो को बचाए रखना है। भगवान को डिस्काउंट के सारे आफर तू बतलाता है, सीजन के समय मे मंदिर को पूर्णतः भूल जाता है, अब छोड़ ये सारे कुकृत्यों को जिनपथ पर आगे बढ़ना है। दुनिया के मायाजाल से अब खुद को बचाए रखना है। क्या आज भी किसी बालक की बिन मैग्गी मुस्कान चमकती है, क्या आज भी कोई माताएं केवल एक ही सारी पहनती हैं, सच सच बतलाडो आज मुझे ना माने मेरा चंचल मन, क्या आज भी पर्युषण में वो चमक धमक रौनक दिखती है। कषाय पाप अरु व्यसनों से अब खुद को बचाए रखना है दुनिया के मायाजाल से अब जैनो को बचाए रखना है। क्रोध मान माया लोभ बच्चा बच्चा रटता है, क्या आज भी कोई तुमको इनके बिन कहीं दिखता है, जिनवाणी के ज्ञान को उस तक ही सीमित मत कर देना, जीवन मे ढाल उसे अब मोक्ष मार्ग पर बढ़ना है। सात्विक भोजन संयम और तप को बचाए रखना है, दुनिया के मायाजाल से अब जैनो को बचाए रखना है।" © आकृति जैन पटोरिया 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Harshit Jain Ramganjmandi Posted August 30 Share Posted August 30 (edited) दशलक्षण पर्व जैन धर्म का आधार होते हैं। वैसे तो यह पर्व वर्ष में 3 बार आते हैं , भाद्रपद, माघ, चैत्र। लेकिन भाद्रपद मै शुक्ल पंचमी से अनंत चतुर्दशी तक इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। यह पर्व व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।इसमें आत्मा से आत्मा का मिलन करवाया जाता हैं। व्रत और उपवास के माध्यम से आंतरिक सुचिता मिलती है। जैन धर्म मे किसी व्यक्ति विशेष की पूजा ना करके गुणों की पूजा की जाती हैं। "वंदे तद गुण लब्ध्ये"। दसलक्षण के दस दिनों में दस अंगो की पूजा की जाती है। 1. उत्तम क्षमा धर्म - एक इंद्रिय जीव से लेकर पंचइंद्रिय जीव सभी मुझे क्षमा करे , मैं भी सभी को क्षमा करता हूं। 2. उत्तम मार्दव धर्म - स्वभाव में सरलता का होना। 3. उत्तम आर्जव धर्म - मन , वचन और काय की मायाचारी का त्याग करना। 4. उत्तम शौच धर्म - पवित्रता का भाव ही शौच हैं। 5. उत्तम सत्य धर्म - झूठ को छोड़कर, हितमित प्रिय वचन बोलना। 6. उत्तम संयम धर्म - पांचों इंद्रियो और मन को वश में करना। 7. उत्तम तप धर्म - इच्छाओ को रोकना। 8. उत्तम त्याग धर्म - इच्छाओ और भावनाओं का त्याग करना। 9. उत्तम आकिंचन धर्म - परिग्रह को छोड़ना। 10. उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म - आत्मा में लीन रहना। 🙏 जय जिनेन्द्र 🙏 🙏 Edited August 30 by Harshit Jain Ramganjmandi Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
shefali antriksh jain Posted August 30 Share Posted August 30 Jai jinendra 🙏🏻🙏🏻 ईश्वर की आराधना कभी भी और कहीं भी की जा सकती है। किंतु पर्युषण पर्व में आराधना की जो सहज प्रेरणा मिलती है, वह अपने आप में अद्भुत है। ज्ञानी होना अच्छा है, चरित्रवान होना भी अच्छा है पर इतना ही पर्याप्त नहीं। जिस मनुष्य की दृष्टि संपन्न न हो, वह न तो सच्चा ज्ञानी हो सकता है और ना सच्चा चरित्रवान। इसलिए ज्ञान, दर्शन और चरित्र- इन तीनों की समन्वित आराधना ही हमें पूर्ण धार्मिक बनाती है। इन तीनों विधि से आत्म-स्वरूप की प्रतीति-पूर्वक चरित्र (धर्म) के दस लक्षणों- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य की आराधना करना ही दशलक्षण अथवा पर्युषण पर्व है। धर्म के यह दशलक्षण ऐसे हैं जो संप्रदायवाद, जातिवाद से कोसों दूर हैं और आत्म-कल्याण चाहने वाले सभी लोगों के लिए ग्राह्य हैं। लगभग सभी धर्म में इन्हें किसी ना किसी नाम से स्वीकार किया गया है। इनको जीवन में उतारने से मानव का वह स्वरूप सामने आता है, जिसमें विश्वबंधुत्व की भावना भरी है। समस्त मानव जाति अगर धर्मक्षेत्र की रेखाओं से परे होकर इन दशलक्षणों का पालन करे, तो यह दुनिया जितनी कुरीतियों, विकृतियों का सामना कर रही है, वे सब तिरोहित हो सकती हैं। धार्मिक जीवन व्यक्ति का आंतरिक जीवन है। धर्म से उसका अंत:करण निर्मल होता है। अंतःकरण की निर्मलता का मुख्य हेतु है- मैत्री। यह मैत्री भावना प्रतिदिन अनुकरणीय है। किसी के प्रति मन में कुटिल भाव आए, तो उसका तत्काल शोधन कर लिया जाए। अगर आवेश में या किन्हीं और अपरिहार्य स्थिति में तुरंत ही ह्रदय को सरल न बना सकें, तब समस्त कुटिलताओं को धोने के लिए यह पर्व अवसर देता है। यही कारण है इस पर्व का प्रारंभ क्षमा से होता है और अंत भी क्षमा से होता है। यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने अतीत का अवलोकन करें, वर्तमान को शुद्ध रखें और भविष्य के प्रति सतत जागरूकता का संकल्प लें। चलते-चलते जहां यह अनुभव हो कि हम गलत मार्ग पर हैं, वहीं से वापस मुड़ जाना और सही मार्ग पर आगे बढ़ना दशलक्षणों का संदेश है। जीवन की सार्थकता तभी है जब पर्व के दिनों किया गया यह प्रयोग हमारे जीवन की स्वाभाविकता में परिवर्तित हो जाए। कितना ही कठिन समय हो- हमारी सरलता बनी रहे, मान-अपमान दोनों स्थिति में विनय से विचलित ना हों। कलुष हमें घेरे, तब भी हमारी पवित्रता में कमी न आए। असत्य हमें कितना ही प्रलोभन दे, सत्य का साथ ना छूटे। जब-जब मन पाप की ओर अग्रसर हो, अनुशासन बनाकर रखें। इच्छाएं तांडव करें, तो संयम की मधुर तान से शांत कर दें। पर्व काल में हम संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को तिलांजलि देकर एक-दूसरे को समझने का प्रयास करते हैं। मन से मैल हटा कर 'सब हमारे अपने हैं'- के भाव से सबके समीप के आने का प्रयास करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, कि हे अर्जुन, प्राणी मात्र को अपने तुल्य समझो। महावीर का भी यही संदेश है- 'मित्ती मे सव्व-भूएसु, वेरं मज्झ न केणइ।' सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ वैर नहीं है। पर्व के दिनों हमें कहीं से कोई धर्म आयात करने की प्रक्रिया नहीं करनी है। अपितु हमारे भीतर जो विकृतियां आ गई हैं उन्हें हटा कर धर्म स्थापित करना है। इन दिनों हम स्वयं के द्वारा स्वयं को देखने का, नैतिकता और चरित्र की चौकसी का काम करते हैं। अपने आपको प्रेरित करते हैं कि भौतिक और संसारी जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिकता को जीवन का हिस्सा बनाएं।- jai jinendra 🙏🏻🙏🏻 shefali jain (jagdalpur) Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
दीप्ति जैन Posted August 30 Share Posted August 30 वर्तमान में भारत में धर्म निरपेक्ष सिद्धांत प्रचलित है। हमारे सबसे बड़े पर्व दशलक्षण पर्व में उत्तम क्षमा, मार्दव ....ब्रह्मचर्य धर्म जैसे धर्म के 10 दिन में किसी भी जाति, देश, सम्प्रदाय, धर्म की बात नहीं होती। यहाँ बात होती है मानवता - मानव के धर्म की, जो 'वसुधैव कुटुम्बकम' अर्थात पूरी वसुधा (पृथ्वी) को अपने परिवार के जैसे रहने की कला सिखाती है। यदि हम इसे सार्वजनिक रूप से मनाये तो जैनों के इस पर्व का महत्व सभी जान सकते हैं। Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
रूबी जैन Posted August 30 Share Posted August 30 जय जिनेन्द्र 8 सितंबर से शुरू होने वाला पर्व कोई छोटा पर्व नही है ये दसलक्षण पर्व हम सभी जैन को बहुत बड़ा पर्व है सभी जैन इसको मिलकर मानते है ये पर्व दस दिन का होता है जो दस दिन हमे अलग अलग धर्म और आत्म शुद्धि करते है ये दस धर्म है उत्तम क्षमा, अर्जाव मर्जाव, सोचे, सत्य, सयम, तप, त्याग, अकिंचन, ब्रमचार्य और अंतिम दिन क्षमा वाणी का दिन मान्या जाता है सुबह उठकर मंदिर जाते है ओर भगवान से प्रार्थना करते है की हमे मोक्ष प्राप्त हो और जन्म मरण से छुटकारा मिल ये दस धर्म कुछ इस प्रकार हैं: उत्तम सत्य - हमेशा सच बोलना उत्तम सयम - अपनी वाणी अपने मन और शरीर पर काबू रख ना उत्तम तप - मोक्ष प्राप्त करने के लिए और जन्म मरण से छुटकारा मिल जाए उत्तम त्याग - दान देना ओसाधी दान देना उत्तम अकिंचन - सभी से मोह और राग को छोड़ना उत्तम ब्रमचार्य - अपने मन और शरीर को पवित्र रखना सभी को पवित्र दृष्टि से देखना ये दस धर्म हमे दस नियम भी सीखते है देव दर्शन करना अभिषेक करना वा इच्छा अनुसार व्रत या उपवास करना Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
meghna Posted August 30 Share Posted August 30 यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने अतीत का अवलोकन करें, वर्तमान को शुद्ध रखें और भविष्य के प्रति सतत जागरूकता का संकल्प लें। चलते-चलते जहां यह अनुभव हो कि हम गलत मार्ग पर हैं, वहीं से वापस मुड़ जाना और सही मार्ग पर आगे बढ़ना दशलक्षणों का संदेश है। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Shweta jain mandla Posted August 30 Share Posted August 30 जय जिनेन्द्र।। जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्ति। मोक्ष सिर्फ एक शब्द मात्र नहीं है ,अपितु इस एक शब्द में समाया है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रत्येक जीव का अस्तित्व। जैन धर्म के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए जीव के जीवन में दस धर्मों का समावेश होना परमावश्यक होता है। दस धर्म अर्थात् क्षमा, मार्दव,आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य। यही दस धर्म प्रत्येक जीव के मोक्ष मार्ग की सीढ़ी होते है। इन दस धर्म की सीढ़ी पर चढ़ कर ही मोक्ष मार्ग को प्रशस्त कर प्राप्त किया जा सकता है। दस लक्षण पर्व उपर्युक्त दस धर्मों को समावेशी रूप है । इन दस दिनों में प्रत्येक जीव दस धर्मों को अपनाकर मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ने में प्रयासरत होता है। सादर जय जिनेन्द्र।। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
shruti jain 95709 Posted August 30 Share Posted August 30 Das lakshan parv is a very significant festival in jainism because all the jains around the world are involved in religious activities all the 10 days and visit temples twice or thrice a day , their maximum time is involved in worshiping and various religious activities are performed where all the members of family are involved and by celebrating this festival our heart and soul gets purified and our bad deeds are converted into good deeds everybody strictly follows devdarshan , non voilence , avoidance of various food items , all the acts purifies the human beings and theirs souls as well . 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Deepti_jain Posted August 30 Share Posted August 30 दस लक्षण पर्व दिगंबर जैनियों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है। दिगंबर परंपरा में, दस प्रमुख गुण, दशलक्षण धर्म 10 दिनों तक मनाया जाता है ताकि जैनियों को आत्मा की विशेषताओं की याद दिलाई जा सके ।जीवन में सुख-शांति के लिए उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य दशलक्षण धर्मों का पालन हर मनुष्य को करना चाहिए उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही राह खोजने मे और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है मार्दव धमॅ हमे अपने आप की सही वृत्ति को समझने का जरिया है सभी को एक न एक दिन जाना हि है तो फिर यह सब परिग्रहो का त्याग करे और बेहतर है कि खूद को पहचानो उत्तम आजॅव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बूरे कमॅ सब छोड छाड कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ॥ उत्तम शौच धमॅ हमे यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खूश रहो परमात्मा का हमेशा शुक्रिया मानों और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ उत्तम सत्य धमॅ हमे यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ भाद्रमाह के सुद दशमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का छठा दिन होता है ईस दिन को धूप दशमी के रूप में मनाया जाता हैहमारे तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस जमाने में शायद मुमकिन नहीं है पर हम भी ऐसी ही भावना रखते है और पर्यूषण पवॅ के 10 दिनों के दौरान उपवास (बिना खाए बिना पिए), ऐकाशन (एकबार खाना-पानी) करतें है और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं ॥ उत्तम त्याग धमॅ हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाके ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है ॥ त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है ॥ आँकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है ॥सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहो को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहो का त्याग करना जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई हैब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओ के गुलाम हि हैं ॥ अनंत चतुर्दशी के दिन शाम को मंदिर में सभी लोग भक्त जन एक साथ प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटू वचन से किसी के दिल को जानते और अनजाने ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना करते है ॥ एक दूसरे को क्षमा करते है और एक दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम करते है॥ जो लोग उपस्थित नहीं थे उन्हें दूसरे दिन क्षमा याचना करते है॥ 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Jain Automobiles Katni Posted August 30 Share Posted August 30 आत्म कल्याण के लिए जरूरी हैं ये दशलक्षण धर्म के यह दशलक्षण ऐसे हैं जो संप्रदायवाद, जातिवाद से कोसों दूर हैं और आत्म-कल्याण चाहने वाले सभी लोगों के लिए ग्राह्य हैं। लगभग सभी धर्म में इन्हें किसी ना किसी नाम से स्वीकार किया गया है। इनको जीवन में उतारने से मानव का वह स्वरूप सामने आता है, जिसमें विश्वबंधुत्व की भावना भरी है। ईश्वर की आराधना कभी भी और कहीं भी की जा सकती है। किंतु पर्युषण पर्व में आराधना की जो सहज प्रेरणा मिलती है, वह अपने आप में अद्भुत है। ज्ञानी होना अच्छा है, चरित्रवान होना भी अच्छा है पर इतना ही पर्याप्त नहीं। जिस मनुष्य की दृष्टि संपन्न न हो, वह न तो सच्चा ज्ञानी हो सकता है और ना सच्चा चरित्रवान। इसलिए ज्ञान, दर्शन और चरित्र- इन तीनों की समन्वित आराधना ही हमें पूर्ण धार्मिक बनाती है। इन तीनों विधि से आत्म-स्वरूप की प्रतीति-पूर्वक चरित्र (धर्म) के दस लक्षणों- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य की आराधना करना ही दशलक्षण अथवा पर्युषण पर्व है।धर्म के यह दशलक्षण ऐसे हैं जो संप्रदायवाद, जातिवाद से कोसों दूर हैं और आत्म-कल्याण चाहने वाले सभी लोगों के लिए ग्राह्य हैं। लगभग सभी धर्म में इन्हें किसी ना किसी नाम से स्वीकार किया गया है। इनको जीवन में उतारने से मानव का वह स्वरूप सामने आता है, जिसमें विश्वबंधुत्व की भावना भरी है। समस्त मानव जाति अगर धर्मक्षेत्र की रेखाओं से परे होकर इन दशलक्षणों का पालन करे, तो यह दुनिया जितनी कुरीतियों, विकृतियों का सामना कर रही है, वे सब तिरोहित हो सकती हैं।धार्मिक जीवन व्यक्ति का आंतरिक जीवन है। धर्म से उसका अंत:करण निर्मल होता है। अंतःकरण की निर्मलता का मुख्य हेतु है- मैत्री। यह मैत्री भावना प्रतिदिन अनुकरणीय है। किसी के प्रति मन में कुटिल भाव आए, तो उसका तत्काल शोधन कर लिया जाए। अगर आवेश में या किन्हीं और अपरिहार्य स्थिति में तुरंत ही ह्रदय को सरल न बना सकें, तब समस्त कुटिलताओं को धोने के लिए यह पर्व अवसर देता है। यही कारण है इस पर्व का प्रारंभ क्षमा से होता है और अंत भी क्षमा से होता है।यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने अतीत का अवलोकन करें, वर्तमान को शुद्ध रखें और भविष्य के प्रति सतत जागरूकता का संकल्प लें। चलते-चलते जहां यह अनुभव हो कि हम गलत मार्ग पर हैं, वहीं से वापस मुड़ जाना और सही मार्ग पर आगे बढ़ना दशलक्षणों का संदेश है। जीवन की सार्थकता तभी है जब पर्व के दिनों किया गया यह प्रयोग हमारे जीवन की स्वाभाविकता में परिवर्तित हो जाए। कितना ही कठिन समय हो- हमारी सरलता बनी रहे, मान-अपमान दोनों स्थिति में विनय से विचलित ना हों। कलुष हमें घेरे, तब भी हमारी पवित्रता में कमी न आए। असत्य हमें कितना ही प्रलोभन दे, सत्य का साथ ना छूटे। जब-जब मन पाप की ओर अग्रसर हो, अनुशासन बनाकर रखें। इच्छाएं तांडव करें, तो संयम की मधुर तान से शांत कर दें।पर्व काल में हम संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को तिलांजलि देकर एक-दूसरे को समझने का प्रयास करते हैं। मन से मैल हटा कर 'सब हमारे अपने हैं'- के भाव से सबके समीप के आने का प्रयास करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, कि हे अर्जुन, प्राणी मात्र को अपने तुल्य समझो। महावीर का भी यही संदेश है- 'मित्ती मे सव्व-भूएसु, वेरं मज्झ न केणइ।' सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ वैर नहीं है।पर्व के दिनों हमें कहीं से कोई धर्म आयात करने की प्रक्रिया नहीं करनी है। अपितु हमारे भीतर जो विकृतियां आ गई हैं उन्हें हटा कर धर्म स्थापित करना है। इन दिनों हम स्वयं के द्वारा स्वयं को देखने का, नैतिकता और चरित्र की चौकसी का काम करते हैं। अपने आपको प्रेरित करते हैं कि भौतिक और संसारी जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिकता को जीवन का हिस्सा बनाएं। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
mohini Jain Posted August 30 Share Posted August 30 जैन धर्म का सार त्याग और तपस्या है और जैन धर्म के त्यौहार भी इससे अलग नहीं हैं। इस लेख में हम जैन धर्म के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसे दसलक्षण महापर्व के नाम से जाना जाता है। इस त्यौहार के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे जैन धर्म में सभी त्यौहारों का राजा माना जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि दस का मतलब है दस, लक्षण का मतलब है विशेषताएँ, महा का मतलब है सर्वोच्च या सबसे बड़ा और पर्व का मतलब है त्यौहार। तो संक्षेप में यह दस दिनों का उत्सव है जहाँ जैन भक्त किसी आत्मा के दस गुणों का जश्न मनाते हैं न कि किसी विशिष्ट देवता या तीर्थंकर का। आगे विस्तार से बताने से पहले यह बताना जरूरी है कि दसलक्षण महापर्व भारतीय पंचांग के अनुसार वर्ष में तीन बार भाद्र, माघ और चैत्र मास में आता है। वैसे तो इसका महत्व हर महीने में समान है, लेकिन मुख्य रूप से भाद्र माह में भाद्रपद शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तिथि तक यह पर्व अधिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आज पर्युषण और दसलक्षण दोनों शब्दों का परस्पर उपयोग किया जाता है, हालाँकि पर्युषण आठ दिनों का त्यौहार है जिसे श्वेतांबर जैन मनाते हैं और दसलक्षण दस दिनों का त्यौहार है जिसे दिगंबर जैन समुदाय मनाता है। जब श्वेतांबर जैन समुदाय पर्युषण का अंतिम दिन मनाता है, तो दिगंबर जैन दसलक्षण के पहले दिन का स्वागत करते हैं। यह दोनों समुदायों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है और भाद्रपद का पूरा महीना सभी जैनियों के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। दसलक्षण पर्व यह संदेश देता है कि प्रत्येक जीव में भगवान बनने की शक्ति है। यह संयम और आत्मशुद्धि के दिन हैं जो यह बताते हैं कि आत्मा के दस गुणों का पालन करके इस संसार से मुक्ति मिल सकती है। ये गुण हैं परम क्षमा, शील, सरलता, संतोष, सत्य, संयम, तप, त्याग, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
mamta kurmude Posted August 30 Share Posted August 30 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Kusum Bajaj Posted August 30 Share Posted August 30 दशलक्षण पर्व हमारी ज्ञान साधना को बढाता है । हम बहुत बेसब्री से इस पर्व का इंतजार करते है । जो लोग सालभर कोई नियम नही ले पाते वे भी इस पर्व पर सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ त्याग जरूर करते है । सुबह से जिनालयो मे अभिषेक, पूजन आदि धार्मिक कार्य शुरू हो जाते है जिनमे सब लोग बढ़चढ़कर हिस्सा लेते है। कई मंदिरो मे सामूहिक पूजन-अर्चन का कार्यक्रम भी होता है। हमारे परिवार मे सभी लोग छोटे छोटे बच्चे भी दस दिन के लिए बाहर की बनी खाद्य सामग्री का त्याग कर देते है। हम भी अपनी दिनचर्या मे परिवर्तन कर सुबह से मंदिर जाकर पूजा-पाठ करते है । सभी साधर्मियो से मिलने का यह अमूल्य अवसर होता है । प्रतिदिन उत्तम क्षमा, को ग्रहण कर मान, माया, क्रोध, लोभ आदि के विसर्जन का प्रवचन सुनकर हमारे भावो मे विशुद्धि बढती है। अनेक स्थानो पर रात्रि मे सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता है और इससे हमारे समाज की प्रतिभाओ को आगे आने का मौका मिलता है।धूपदशमी के दिन साल मे एक बार हम अपने शहर के सभी मंदिरो के दर्शन करने जाते है। इस पर्व का समापन क्षमावाणी से किया जाता है । हम सभी अपने परिचितो ,रिश्तेदारो से वर्षभर की गलतियो के लिये क्षमा याचना करते है।इस तरह ये पर्व हमारे लिए उत्साह ,उमंग के साथ ही वात्सल्य की भावना मे भी वृद्धि करता है यह हमारी अस्मिता की पहचान है। हमे सदैव इसे अच्छे से मनाना चाहिए। । जय जिनेन्द्र 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Vani jain Posted August 30 Share Posted August 30 दास लक्षण पर्व जैन के लिए एक महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है हर दिन की एक अलग महत्वत्ता है इन परसों में प्रत्येक जैन व्यक्ति संयम धर्म नियम से अपनी दिनचर्या को व्यतीत करता है हिंसक वस्तुओं का प्रयोग ना कर कर अहिंसा को दर्शाता है अपनी भक्ति सहनशीलता को परखता है सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव को उजागर करता है अपनी आत्मा को पहचानने की कोशिश करता है बाकी दोनों की अपेक्षा इन दोनों त्याग और स्वाध्याय के प्रति समर्पित रहता है गुरु की देशना को सुनकर मोक्ष मार्ग के प्रति अपना कदम बढ़ाता है अपने क्रोध और विकारों को वश में करने की कोशिश करता है अपनी इंद्रियों पर संयम पानी की कोशिश करता है सभी जीवो के प्रति क्षमा भाव रखकर सरल और सहज बनने की कोशिश करता है काम में जीने की कोशिश करता है अपनी कूवत को पहचानता है अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखता है और देव शास्त्र गुरु के प्रति समर्पित रहता है 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Jain shweta Posted August 30 Share Posted August 30 .. दस लक्षण धर्म, जो आत्मा को ईश्वर बनाता है वह अपनी दिशा में निर्देशित करता है, हमें आत्मा-संयम, शुद्धि, और सही आचरण की ओर ले जाती है। ये दस धर्म हमें सिखाते हैं कि कैसे अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करें और अपने विचारों को शुद्ध रखें: 1. **उत्तम क्षमा**: सभी तीर्थों के प्रति क्षमा का भाव चित्रित, कोई भी परिस्थिति न हो। क्षमा से मन की शांति और अहिंसा की भावना को बल मिलता है। 2. **उत्तम आर्जव**: सरलता और सच्चाई का पालन करना, जिससे मन और शरीर में संतुलन बना रहे। 3. **उत्तम मार्दव**: कोमलता और व्रत का भाव रखें, जिससे व्यवहार का नाश हो। जब मन कसाई (अहंकार) की भावना हो, तो उसे त्यागकर, मार्व धर्म का पालन करना आवश्यक है। 4. **उत्तम संयम**: इंद्रियों पर नियंत्रण रखें, ताकि मन और शरीर अनुशासित रहें और सही मार्ग पर रहें। 5. **उत्तम तप**: तपस्या और आत्म-संयम का धारण करना, जिससे आत्मा शुद्ध हो जाती है और कर्मों का क्षय हो जाता है। 6. **उत्तम सत्य**: सत्य का पालन करना, जिससे व्यक्ति सत्य की राह पर चलता है और आत्मा अपनी शुद्ध होती है। 7. **उत्तम शौच**:स्वच्छता और स्वाधीनता का पालन करना, जिससे विचार और आचरण पवित्र रहते हैं। 8. **उत्तम त्याग**: त्याग की भावना का विकास करना, जिससे आत्मा में मोह का नाश हो और मुक्ति की राह प्रभावित हो। 9. **उत्तम अकिंचन**: किसी भी वस्तु के प्रति मोह न रखें, जिससे आत्मा स्वतंत्र रहती है। 10. **उत्तम ब्रह्मचर्य**: ब्रह्मचर्य के पालन से आत्मा की शक्ति और ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। इन दस धर्मों का पालन करके हम अपने विचारों और भावनाओं को शुद्ध कर सकते हैं, जिससे आत्मा परमात्मा के करीब पहुंच सकते हैं। जैन धर्म में यह विधि आत्मा की उत्पत्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अति महत्वपूर्ण मनुष्य है। 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
NITIN CHHABRA Posted August 30 Share Posted August 30 दसलक्षण पर्व हम इसलिए मनाते है क्यू कि इससे हमारे आत्मा की विशुद्धि बढ़ती है। हमें क्षमा से लेकर ब्रह्मचर्य तक का अनुभव होता है। पर्वों का जैन धर्म में विशेष महत्व है। इनमें भी दसलक्षण पर्व का अत्यधिक महत्व है। विशेष रूप से मेरी स्वयं की बात करु, तो पहले मैं दस दिनों में बाहर का अभक्ष्य का त्याग और चतुर्दशी का एकासना करता था और चतुर्दशी को पूजा करता था। फिर एक बार सुधा सागर जी महाराज के शिविर के बारे में सुना । वहा जाने का मन किया पर उस वर्ष किसी कारण से जा नही पाया । सन् 2021 ललितपुर चातुर्मास की बात है। जाने का बहुत मन था पर कोई निर्धारित योजना नहीं थी तभी एक साथ वाले का फोन आया कि शिविर मे जा रहे है, आप भी चलो । तभी आधे घंटे में सारा प्लान बन गया और मैं अपना पहला शिविर अटेंड करने ललितपुर पहुंच गया । शिविर में ध्यान, पूजा, स्वाध्याय और भिक्षा प्रवृति से भोजन होता है और साथ में गुरु देव का सानिध्य।आत्मा की विशुद्धि और भी बढ़ गई।शिविर में 10 दिन कैसे निकल गए पता ही नही चला । गत वर्ष आगरा में भी शिविर का आनंद लिया और इस बार भी शिविर में जाना है । 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
Greeshma Jain Posted August 30 Share Posted August 30 In Jainism, Das Lakshan Dharam (also known as Das Dharma) refers to the "Ten Virtues" or "Ten Duties" that a Jain person should follow in their daily life. These virtues are considered essential for spiritual growth, self-improvement, and achieving liberation. Importance of Das Lakshan Dharam: - Cultivates a strong moral foundation - Helps develop a positive and compassionate attitude - Encourages self-reflection and self-improvement - Fosters a sense of detachment and non-attachment - Promotes spiritual growth and self-realization - Enhances relationships and social harmony - Supports the pursuit of liberation (Moksha) By following Das Lakshan Dharam, a Jain person can lead a virtuous life, cultivate a strong moral character, and progress on the path to spiritual enlightenment. 1 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
प्रीतिका जैन Posted August 30 Share Posted August 30 दस लक्षण पर्व नैसर्गिक पर्व है। ये पर्व हमारी आत्मा को शांति देने वाले और पवित्र करने वाले हैं।ये पर्व आत्मा की कलुषता,अपवित्रता , कशायो को कम करते हैं।हम भी सिद्ध भगवान जैसी अनंत सुख , शांति की प्राप्ति के लिए दस लक्षण पर्व मनाते है। ये पर्व साल में तीन बार आते है। चैत्र मास में,भादव मास में,माघ मास में। शुक्ल पंचमी से शुक्ल चतुर्दशी तक तीनों माह में दस लक्षण पर्व में आत्मा के दस गुणों की आराधना की जाती है। दस लक्षण पर्व की जय हो। 2 Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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