खुरई में तीन दिन - २७
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
अजैन कुल में जन्म होने बाद भी जिनधर्म से ही अपना कल्याण हो सकता है यह भावना रखकर आगे बढ़ने वाले गणेश प्रसाद का वर्णन उनकी ही आत्मकथा के अनुसार चल रहा है।
आज की प्रस्तुती में उनका खुरई जाने तथा वहाँ के जिनालय में जिनबिम्बों का वर्णीजी द्वारा किए गए गुणावाद का आनंदप्रद वर्णन है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"खुरई में तीन दिन"*
क्रमांक - २७
तीन या चार दिन में मैं खुरई पहुँच गया। वे सब श्रीमन्त के यहाँ ठहर गये। उनके साथ मैं भी ठहर गया। यहाँ श्रीमन्त से तात्पर्य श्रीमान श्रीमन्त सेठ मोहनलाल जी से है। आप करोड़पति थे।
करोड़पति तो बहुत होते हैं परंतु आपकी प्रतिभा वृहस्पति के सदृश थी। आप जैन शास्त्र के मर्मज्ञ विद्धवान थे। आप प्रतिदिन पूजा करते थे। आप जैन शास्त्र के ही मर्मज्ञ विद्धवान न थे किन्तु राजकीय कानून के भ प्रखर पंडित थे।
सरकार में आपकी प्रतिष्ठा अच्छे रईस के समान होती थी। खुरई के तो आप राजा कहलाते थे। आपके सब ठाट राजाओं के समान थे। जैन जाति के आप भूषण थे।
आपके यहाँ तीन माह बाद एक कमेटी होती थी, जिसमें खुरई सागर प्रान्त की जैन जनता सम्मलित होती थी। उसका कुल व्यय आप ही करते थे। आपके यहाँ पन्नालालजी न्यायदिवाकर व श्रीमान शांतिलालजी साहब आगरा वाले आते रहते थे। उनके आप अत्यंत भक्त थे। उस समय आप दिगम्बर जैन महासभा के मंत्री भी थे।
सायंकाल को सब लोग श्री जिनालय गए। श्री जिनालय की रचना देखकर चित्त प्रसन्न हुआ, किन्तु सबसे अधिक प्रसन्नता श्री १००८ देवादिदेव पार्श्वनाथ के प्रतिबिम्ब को देखकर हुई। यह सातिशय प्रतिमा है। देखकर ह्रदय में जो प्रमोद हुआ वह अवर्णनीय है।
नासादृष्टि देखकर यही प्रतीत होता था कि प्रभु की सौम्यता अतुल है। ऐसी मुद्रा वीतरागता की अनुमापक है। निरकुलता रूप वीतरागता ही अनंत सुख की जननी है।
मुझे जो आनंद आया वह किससे कहूँ? उसकी कुछ उपमा हो तब तो कहूँ। वह ज्ञान में तो आ गया, परंतु वर्णन करने को मेरे पास शब्द नहीं। इतना भर कह सकता हूँ कि वह आनंद पंचेन्द्रियों के विषय से भी आनंद आता है, परंतु उसमें तृष्णारोग रूप आकुलता बनी रहती है। मूर्ति के देखने से जो आनंद आया उसमें वह बात नहीं थी।
आप लोग मानें या न मानें, परंतु मुझे तो विलक्षणता का भान हुआ और आप मेरे द्वारा सुनना चाहें तो मेरी शक्ति से बाह्य है। मेरा तो यहाँ तक विश्वास है कि सामान्य घतपटादिक पदार्थों का जो ज्ञान है उसके व्यक्त करने की भी हममें सामर्थ्य नहीं है फिर इसका व्यक्त करना तो बहुत ही कठिन है। ? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*? ? आजकी तिथी- ज्येष्ठ कृष्ण ३?
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