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मार्गदर्शक कडोरेलालजी भाई जी - ११


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

           आज के उल्लेख से आपको वर्णी का धर्म मार्ग में आरोहण के प्रयासों का वृत्तांत जानने को मिलेगा। 

          वर्णीजी का सम्पूर्ण जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है। वर्तमान में जो उल्लेख चल रहा है वह गणेश प्रसाद का वर्णन है, वर्णी उपाधि तो उनके साथ बाद में जुड़ी। हाँ इस प्रसंग में उल्लखित मोतीलाल जी वर्णी एक अन्य विद्धवान श्रावक थे।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

    *"मार्गदर्शक कड़ोरेलालजी भायजी"*

                     क्रमांक - ११

              हम लोगों में कड़ोरेलाल जी भायजी अच्छे तत्व ज्ञानी थे। उनका कहना था- 'किसी कार्य में शीघ्रता मत करो, पहले तत्वज्ञान का संपादन करो, पश्चात त्यागधर्म की ओर दृष्टि डालो।'

      परंतु हम तथा मोतीलाल जी वर्णी तो रंगरूट थे ही, अतः जो मन में आता, सो त्याग कर बैठते। वर्णी जी पूजन के बड़े रसिक थे। वे प्रतिदिन श्री जिनेन्द्रदेव की पूजन करने में अपना समय लगाते थे।

          मैं कुछ-कुछ स्वाध्याय करने लगा था और खाने-पीने के पदार्थों को छोड़ने में ही अपना धर्म समझने लगा था। चित तो संसार से भयभीत था ही।

         एक दिन हम लोग सरोवर पर भ्रमण करने के लिए गए। यहाँ मैंने भायजी साहब से कहा- 'कुछ ऐसा उपाय बतलाइये, जिस कारण कर्म बंधन से मुक्त हो सकूँ।'

         उन्होंने कहा- 'उतावली करने से कर्मबंधन से छुटकारा न मिलेगा, शनैः-शनैः कुछ-कुछ अभ्यास करो, पश्चात जब तत्व ज्ञान हो जावे, तब रागादि निरवृत्ति के लिए व्रतों का पालन करना उचित है।'

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?? आजकी तिथी-वैशाख शु. पूर्णिमा?

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