☀सर्वप्रथम ऐलक शिष्य - ३३३
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३३३ ?
*"सर्वप्रथम ऐलक शिष्य"*
पूज्य शान्तिसागर जी महराज के सुशिष्य नेमीसागर जी महराज ने बताया कि- "आचार्य महराज जब गोकाक पहुँचे तब वहाँ मैंने और पायसागर ने एक साथ ऐलक दीक्षा महराज से ली। उस समय आचार्य महराज ने मेरे मस्तक पर पहले बीजाक्षर लिखे थे। मेरे पश्चात पायसागर के दीक्षा के संस्कार हुए थे।
*"समडोली में निर्ग्रन्थ दीक्षा*"
"दीक्षा के दस माह बाद मैंने समडोली में निर्ग्रन्थ दीक्षा ली थी। वहाँ आचार्य महराज ने पहले वीरसागर के मस्तक पर बीजाक्षर लिखे थे, पश्चात मेरे मस्तक पर लिखे थे। इस प्रकार मेरी और वीरसागर की समडोली में एक साथ मुनि दीक्षा हुई थी। वहाँ चंद्रसागर ऐलक बने थे।"
*? स्वाध्याय चा. चक्रवर्ती ग्रंथ का ?*
?आजकी तिथी - चैत्र शुक्ल द्वादशी?
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