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☀पिताजी से चर्चा - ३३२


Abhishek Jain

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?  अमृत माँ जिनवाणी से - ३३२  ?


                *पिताजी से चर्चा*


      पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी महराज के सुयोग्य शिष्य नेमीसागर जी महराज द्वारा उनके मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति का वृतांत ज्ञात हुआ। गृहस्थ जीवन के बारे में उन्होंने बताया कि-

   "एक दिन मैंने अपने पिताजी से कुड़ची में कहा- "मैं चातुर्मास में महराज के पास जाना चाहता हूँ।"

       वे बोले -"तू चातुर्मास में उनके समीप जाता है, अब क्या वापिस आएगा? "पिताजी मेरे जीवन को देख चुके थे, इससे उनका चित्त कहता था कि आचार्य महराज का महान व्यक्तित्व मुझे सन्यासी बनाए बिना नहीं रहेगा। यथार्थ में हुआ भी ऐसा।"


            *जीवनधारा में परिवर्तन*

        "चार माह के सत्संग ने मेरी जीवन धारा बदल दी। मैंने महराज से कहा- "महराज ! मेरे दीक्षा लेने के भाव हैं। अपने कुटुम्ब से परवानगी लेने का विचार नहीं है। घर वाले कैसे मंजूरी देंगे? मुफ्त में नौकर मिलता है, जो कुटुम्ब की सेवा करता रहता है, तब फिर परवानगी कौन देगा?"

       महराज ने कहा- "ऐसा शास्त्र में कहा है कि आत्मकल्याण के हेतु आज्ञा प्राप्त करना परम आवश्यक नहीं है।"

     "नेमीसागर जी ने बताया कि मेरे दीक्षा लेने के भाव अठारह वर्ष की अवस्था में ही उत्पन्न हो चुके थे। उसके पूर्व की मेरी कथा विचित्र थी।"

  यह कथा प्रसंग क्रमांक ३३० में भेजी गई थी। पुनः प्रेषित करता हूँ??

*? स्वाध्याय चा. चक्रवर्ती ग्रंथ का ?*
    ?आजकी तिथी - चैत्र शुक्ल ११?

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