?अमृत माँ जिनवाणी से - पथ प्रदर्शक - ३२६
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३२६ ?
"पथ प्रदर्शक"
कल के प्रसंग के माध्यम से हमने जाना कि पूज्य चारित्र चक्रवर्ती शान्तिसागरजी महराज के प्रारंभिक जीवन में किन ग्रंथो का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा था।
दिवाकर जी जिज्ञासा पर पूज्य शान्तिसागर जी महराज ने कहा, "शास्त्रों में स्वयं कल्याण नहीं है। वे तो कल्याण के पथ प्रदर्शक हैं। देखो ! सड़क पर कहीं खम्भा गड़ा रहता है, वह मार्गदर्शन कराता है। इष्ट स्थान पर जाने को तुम्हें पैर बढ़ाना होगा। वासनाओं की दासता का त्याग ही कल्याणजनक है।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - आषाढ़ शुक्ल ५?
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