?विदर्भ प्रांत में प्रवेश - अमृत माँ जिनवाणी से - २६६
? अमृत माँ जिनवाणी से- २६६ ?
"विदर्भ प्रांत में प्रवेश"
श्री चंद्रसागरजी ने, जो कुछ समय के लिए नांदगाँव चले गए थे, लगभग दो सौ श्रावकों सहित नांदेड में आकर संघ में आकर संघ को वर्धमान बनाया। एक दिन वहाँ रहकर संघ ने १७ दिसम्बर को प्रस्थान किया, यहाँ तक निजाम की सीमा थी। अतः स्टेट के कर्मचारीयों और अधिकारियों ने सद्भावना पूर्वक आचार्य महराज को प्रणाम किया और वापिस लौट आये।
यह आचार्यश्री का आत्मबल था जिसमें निजाम स्टेट में से बिहार करते हुए तनिक भी गडबड़ी नहीं हुई, अपितु वीतराग गुरुओं का आत्मबल बढ़ा।
अब संघ स्टेट के बाहर उमरखेड में ता. २० दिसम्बर को पहुँच गया। इसके पश्चात तारीख २१ को संघ पुसद के लिए रवाना हुआ। कारंजा की धार्मिक मंडली ने पं. देवकीनन्दन व्याख्यानवाचस्पति के नेतृत्व में पूज्यश्री से कारंजा होकर विहार की अनुनय विनय की। किन्तु वह रास्ता चक्कर का पड़ता था, इससे उनकी प्रार्थना अस्वीकृत हुई।
पूसद में आसपास की बहुत जैन जनता ने आकर गुरुदर्शन का लाभ लिया। इसके पश्चात तारीख २३ दिसम्बर को संघ डिगरस आया। दूसरे दिन दाखा पहुँचा। वहाँ लघभग २००० श्रावकों का समुदाय इकठ्ठा हो गया था। आचार्यश्री का उपदेश सुनकर भव्यात्माओं को अवर्णनीय आनंद मिलता था। उनका एक-२ शब्द बड़े प्रेम, बड़ी भक्ति और अतिशय श्रद्धापूर्वक सुना गया था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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