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?विहार - अमृत माँ जिनवाणी से - २९५


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २९५   ?


                        "विहार"


               अगहन कृष्णा एकम् का दिन आया। आहार के उपरांत महराज ने सामयिक की और जबलपुर की ओर विहार किया। उस समय आचार्य महराज में कटनी के प्रति रंचमात्र भी मोह का दर्शन नहीं होता था। उनकी मुद्रा पर वैराग्य का ही तेज अंकित था। 

               हजारों व्यक्ति, जिनमें बहुसंख्यक अजैन भी थे, बहुत दूर तक महराज को पहुंचाने गए। महराज अब पुनः कटनी लौटने वाले तो थे नहीं, क्या ऐसा सौभाग्य पुनः मिल सकता है?

             कटनी की समाज के ह्रदय पर महराज का आज भी शासन विद्यमान है। जब कभी वहाँ के श्रावको से समक्ष चर्चा आ जाती है, तो वे आनंद मग्न होकर उन पुण्य दिवसों का स्मरण कर लेते हैं। विशुद्ध जीवन के बिना ऐसा स्थायी पवित्र प्रभाव कैसे हो सकता है? महराज को आहारदान का सौभाग्य मिल जाए, इससे कटनी से श्रावकों की मंडली संघ के साथ रवाना हो गई।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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