?दिल्ली प्रवास में प्रभावना - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१९
☀
जय जिनेन्द्र बंधुओ,
आज के प्रसंग में हम सभी देखेंगे कि किस तरह पूज्य शान्तिसागरजी महराज के ससंघ त्याग तथा तपश्चरण के फलस्वरूप पूज्यश्री के दिल्ली में १९३० के दिल्ली प्रवास के समय अपूर्व प्रभावना हुई। हर सम्प्रदाय के लोगों ने इनके सम्मुख व्रत नियम आदि स्वीकार कर अपने आपको धन्य किया।
राजधानी दिल्ली में सैकड़ों श्रावक आजीवन शुद्र जल का त्याग कर पूज्यश्री के ससंघ को आहार देने का सौभाग्य सहर्ष प्राप्त कर रहे थे।
अवश्य ही उन क्षणों का लेखक का यह चित्रण हम सभी श्रावकों के मन को आह्लाद से भर देता है।
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१९ ?
"दिल्ली प्रवास में प्रभावना"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज ससंघ का जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ता था। बहुत से मुसलमानों आदि ने मांस तथा मदिरा का त्याग किया था।
हरिजनों आदि का महराज ने सच्चा कल्याण किया था। बहुत से गरीब साधु महराज के दर्शन को आये थे, महराज उनको प्रेममय बोली में समझाते थे, "भाई, जीवों की दया पालने से जीव सुखी होता है। दूसरों जीवों को मारकर खाना बड़ा पाप है, इससे ही जीव दुखी रहता है।"
महराज के शब्दों का बड़ा प्रभाव होता था। तपश्चर्या से वाणी का प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है। सैकड़ो हजारों हरिजनों आदि लोगों ने शराब तथा मांस सेवन का त्याग किया था तथा और भी व्रत लोग लेते थे।
अग्नि में संतप्त किया स्वर्ण विशेष दीप्तिमान होता है, उसी प्रकार तपोग्नि द्वारा जीवन वाणी, विचार, मलिनता विमुक्त हो तेजोमय तथा दिव्यतापूर्ण होते हैं।
आचार्यश्री के प्रति भक्ति इतनी बड़ रही थी कि लगभग सत्तर अस्सी चौके लगा करते थे। बिना शुद्र जल का त्याग किये कोई आहार नहीं दे सकता था लेकिन महराज को आहार देने के अपूर्व सौभाग्य के आगे नियम की कठिनता लोगों को कुछ भी नहीं दिखती थी।
उस समय लोग कहते थे कि छोटी सी प्रतिज्ञा ने हमारा अशुध्द भोजन से पिण्ड छुड़ा दिया अतः आत्म कल्याण के साथ-साथ शरीर की निरोगता का कारण बन गई। इसने स्वावलंबी जीवन को भी प्रेरणा दी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आजकी तिथी - वैशाख शुक्ल १?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.