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?लोक के विषय में अनुभव - अमृत माँ जिनवाणी से - २०८


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २०८   ?


            "लोक के विषय में अनुभव"


         पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का लोक के बारे में भी अनुभव भी महान था। वे लोकानुभव तथा न्यायोचित सद्व्यवहार के विषय में एक बार कहने लगे, "मनुष्य सर्वथा खराब नहीं होता। दुष्ट के पास भी एकाध गुण रहता है। अतः उसे भी अपना बनाकर सत्कार्य का संपादन करना चाहिए। व्यसनी के पास भी यदि महत्व की बात है तो उससे भी काम लेना चाहिए।"

          उन्होंने यह भी कहा था, "ऐसी नीति है कि मनुष्य को देखकर काम कहना और वृक्ष को देखकर आराम करना चाहिए"

         उनके निकट संपर्क में आने वाले जानते है कि आध्यात्मिक जगत के अप्रितिम महापुरुष होते हुए भी वे यथोचित लोकव्यवहार तथा सज्जन धर्मात्माओं को यथायोग्य सम्मानित करने में वे अतीव दक्ष थे। अन्य धर्मवाला व्यक्ति भी आकर उनके चरणों का दास बन जाता था।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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