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?प्रगाढ़ श्रद्धा - अमृत माँ जिनवाणी से - २००


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - २००    ?


                      "प्रगाढ़ श्रद्धा"


         कलिकाल के कारण धर्म पर बड़े-बड़े संकट आये। बड़े-बड़े समझदार लोग तक धर्म को भूलकर अधर्म का पक्ष लेने लगे, ऐसी विकट स्थिति में भी पूज्य शान्तिसागरजी महराज की दृष्टि पूर्ण निर्मल रही और उनने अपनी सिंधु तुल्य गंभीरता को नहीं छोड़ा।

         वे सदा यही कहते रहे कि जिनवाणी सर्वज्ञ की वाणी है। वह पूर्ण सत्य है। उनके विरुद्ध यदि सारा संसार हो, तो भी हमें कोई डर नहीं है। उनकी ईश्वर भक्ति तथा पवित्र तपश्चर्या से बड़े-बड़े संकट नष्ट हुए हैं।

          मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि पूज्य शान्तिसागरजी महराज के पुण्य चरणों की भक्ति तथा उनके आदेश-उपदेश के अनुसार प्रवृत्ति करने से आध्यात्मिक शांति तथा लौकिक समृद्धि मिलती है। यह अतिश्योक्ति नहीं है।

          इस सत्य को मैंने अनेकों गुरुभक्तों के जीवन में चरितार्थ होते हुए देखा है। पूज्य  शान्तिसागरजी महराज का महान व्यक्तित्व तथा पुण्यजीवन इस पंचमकाल में धर्मप्रचुर चतुर्थकाल की पुनरावृत्ति सा करता हुआ प्रतीत होता था। आज के युग में वे धर्म के सूर्य हैं, दया के अवतार हैं, मैं उनके चरणों को सदा प्रणाम करता हूँ।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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