गुणग्राहीता का सुंदर उदाहरण - अमृत माँ जिनवाणी से - ९३
? अमृत माँ जिनवाणी से - ९३ ?
"गुणग्राहिता का सुन्दर उदाहरण"
एक बार एक छोटी बालिका गुरुदेव के दर्शन हेतु आई थी। उससे पूंछा गया- "बेटी ! तू किसकी ?"
वह चुप रही। तब पूछा, 'तू काय आई ची आहेस (तू क्या माता कि है)?' उसने कहा- "नहीं।" फिर कहा- "बापाची (क्या पिता की है) ?" उसने फिर नहीं कहा।
फिर पूंछा- "किसकी है ?" उसने कहा, "मी माझी (मै अपनी हूँ।)"
यह सुनते ही आचार्यश्री बहुत आनन्दित हो बोले- "इस बेटी ने मुझे समयसार सिखाया। वास्तव में यह जीव दूसरे का नहीं है, यह स्वयं अपना है।"
? पाँचवां दिन - १८ अगस्त १९५५ ?
आज भी आचार्यश्री ने जल ग्रहण नहीं किया। प्रातः काल अभिषेक के समय मध्यान्ह में आचार्यश्री बाहर पधारे और जनता को दर्शनों का लाभ कराया। सारा समय आत्मध्यान में व्यतीत किया।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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