जन्म जन्मान्तर का अभ्यास - अमृत माँ जिनवाणी से - ३९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३९ ?
"जन्मान्तर का अभ्यास"
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने संधपति गेंदंमल जी के समक्ष दिवाकरजी कहा था कि हमे लगता है, "इस भव के पूर्व में भी हमने जिन मुद्रा धारण की होगी।"
उन्होंने पूछा- "आपके इस कथन का क्या आधार है?
उत्तर में उन्होंने कहा - "हमारे पास दीक्षा लेने पर पहले मूलाचार ग्रंथ नहीं था, किन्तु फिर भी अपने अनुभव से जिस प्रकार प्रवृति करते थे, उसका समर्थन हमे शास्त्र मे मिलता था- ऐसा ही अनेक बातों में होता था।
इससे हमे ऐसा लगता है कि हम दो तीन भव पूर्व अवश्य मुनि रहे होंगे।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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