अज्ञान रुपी अंधकार छाया था जगत में l
तब ज्ञान रुपी प्रकाश फैलाया था वीर प्रभु ने ll
चैत्र सुदी तेरस के दिन जन्म लिया जिनवर l
वर्धमान बने जैन धर्म के चौविसवें तीर्थंकर ll
जन्म लेते ही सभी तरफ चंदन से शीतलता है छाई l
राजा सिद्धार्थ, माता त्रिशला को दे रहे थे सब बधाई ll
महावीर की आंखों में बहती थी अमृत धारा l
उनके वचनों में प्रकटता था वात्सल्य सारा ll
भगवान है धीरता, वीरता, गंभीरता के स्वामी l
संयमरुपी पथ पर चल कर बने मोक्ष गामी ll
नयसार के भव में प्राप्त किया समकित l
तभी से भगवान के भव की शुरू हुई अंकित ll
कितने सारे उपत्सर्गों का पहाड़ टूटा था प्रभू पर l
जिसे सुनकर हमारा कलेजा कांप उठता है थर-थर ll
किसी ने कान में किला डाला, किसी ने कालचक्र फेंक दिया l
किसी ने तेजोलेश्या फेकी, तो किसी ने पैर पर डस लिया ll
परमपिता महावीर उन उपत्सर्गो से नहीं डगमगाए l
क्रोधित चंडकौशिक पर भी अमृत से फूल बरसाए ll
साढ़े बारह वर्षों तक प्रभु ने की उग्र तपस्या l
इस बीच नहीं ली एक घंटे भर की निद्रा ll
हर पथ पर नुकूले विषैले कांटे थे पड़े l
चट्टान के भांति वे अपनी राह पर चल पड़े ll
अहिंसा के मार्ग पर भगवान ने हमें चलना हैं सिखाया l
"जिओ और जीने दो" का मर्म सरलता से समझाया ll
महावीर के उपासक तो तभी हम सब कहलाएंगे l
जब उनके सिद्धांत और आदर्श को जीवन में अपनायेंगे।l
अहिंसा परमो धर्म की जय।
जियो और जीने दो।
जय महावीर- जय महावीर
जय जिनेन्द्र🙏🏻🙏🏻