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Ratan Lal Jain

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  1. जिस प्रकार अकलंक देव ने जैन धर्म की रक्षा की और जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया। जिस प्रकार अकलंकदेव ने सम्‍यग्‍ज्ञान की प्रभावना की, उसका महत्‍व सर्व साधारण लोगों के हृदय पर अंकित कर दिया उसी प्रकार भव्‍य पुरूषों को भी जिनधर्म की प्रभावना करनी चाहिए और जैनधर्म के प्रति उनका जो कर्तव्‍य है उसे पूरा करना चाहिए। 

  2.  जैन दर्शन में भगवान न कर्ता और न ही भोक्ता माने जाते हैं। जैन दर्शन मे सृष्टिकर्ता को कोई स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में अनेक शासन देवी-देवता हैं पर उनकी आराधना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता। जैन धर्म में तीर्थंकरों जिन्हें जिनदेव, जिनेन्द्र या वीतराग भगवान कहा जाता है इनकी आराधना का ही विशेष महत्व है। इन्हीं तीर्थंकरों का अनुसरण कर आत्मबोध, ज्ञान और तन और मन पर विजय पाने का प्रयास किया जाता है।

    रतन लाल जैन, जोधपुर (राजस्थान)

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