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Hiral Jain

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  1. कुछ नहीं। क्योंकि वो बुरा मान जाएंगे।और धर्म के बारे मे ही गलत बातें बोलने लगेंगे।जो सुनने में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। इसके विपरित हमें ही दोष दे देंगें।
  2. जय जिनेन्द्र🙏🏻 दश लक्षण पर्व का महत्व पर्युषण पर्व जैन धर्म में पर्वों का राजा है। साधारणतः लौकिक त्यौहारो पर जहाँ परिग्रह अधिक खानपान,परिग्रह आदि की होड़ लगी रहती है,वहीं दशलक्षण महापर्व पर जैन साधर्मी,श्रावको मे कठिन तपस्या, त्याग की होड़ लग जाती है। सभी जैन बन्धुओं में इन दस दिनों में धर्म के प्रति सारे वर्ष की अपेक्षाकृत अधिक उत्साह रहता है। इन दिनों छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े तक उपवास, संयम तथा स्वाध्याय आदि में लगे रहते है। कितने ही श्रावक दसो दिनों तक निर्जल उपवास रखते है। अपने कर्मों की निर्जरा करते है। अब प्रश्न यह है कि इतना सब त्याग इन्हीं दिनों में क्यों करते है? क्या महत्व है इन दिनों का? दशलक्षण पर्युषण महापर्व पर धर्मात्मा बन्धु आत्मा के दश धर्मों की विशेष आराधना करते है।उत्तम क्षमादि दस धर्म आत्मा के स्वभाविक धर्म है।किंतु आत्मा से अशुभ कर्म जुड़े रहते है,जिससे अनंत दुःखों की प्राप्ति होती है। हमें इन दस दिनों में अपने असाता कर्मों की निर्जरा करने का महान अवसर मिलता है। सबसे महत्वपूर्ण बात उत्तम क्षमादि धर्मों की आराधना भले ही जैन श्रावक ही करते है, लेकिन इन स्वाभाविक धर्मों का अनुसरण वे सभी कर सकते है जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारते है।विशेषतः भाद्रपद माह के पर्युषण पर्व विशेष महत्व रखते है।दस दिनों में हम प्रतिदिन अलग-अलग धर्मों की पूजा करते है।वैसे तो जीवनभर इन धर्मों को हृदय में धारणा चाहिए लेकिन आम इंसान जीवन की भागदौड़ में सब भूल जाता है।जो भाद्रपद के पर्युषण पर्व हमें बुरें कर्मों की निर्जरा कर कुछ पुण्य कमाने का विशेष अवसर देता है।साथ ही व्यवहारिक पक्ष देखा जाए तो इन दिनों जिनमंदिरों में साधर्मी बंधुओं की भारी भीड़ लगी रहती है।जो लोग पूरे साल मंदिर नहीं आते, इन दिनों आवश्यक रूप से आते है जिसका लाभ यह भी है कि जैन बंधुओं में भाई चारा बढ़ता है। पर्व के दिनों में की जाने वाली पूजा भक्ति विशेष फल प्रदान करती है। ये दस धर्म भव से पार ले जाने में सक्षम है।इन धर्मों को हृदय में धारण करके जन्म मरण के दुःख से छुटकारा पा सकते है। ये धर्म आत्मा से परमात्मा बनने के लिए आवश्यक है। हृदय में सहनशीलता लाकर,चित्त में कोमलता धारकर भावों को शुद्ध कर , कोई लोभ न कर, सदा हितकारी यथार्थ बोलना।किसी वस्तु-व्यक्ति मात्र में ममत्व भाव न रखकर व अच्छे गुणों को धारकर अपने को पवित्र रखने का नाम ही दसलक्षण पर्व है। पर्व आने वाले है। नीति जैन रोहिणी दिल्ली।
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