Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

Aayushijain170993

Members
  • Posts

    6
  • Joined

  • Last visited

About Aayushijain170993

  • Birthday 09/17/1993

Personal Information

  • स्थान / शहर / जिला / गाँव
    Jabalpur

Recent Profile Visitors

153 profile views

Aayushijain170993's Achievements

Newbie

Newbie (1/14)

  • Week One Done
  • First Post

Recent Badges

1

Reputation

  1. जैन धर्म में नवधा भक्ति के नाम निम्नलिखित हैं: 1. प्रथमभक्ति (First devotion): प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी की भक्ति। 2. अचिंत्यभक्ति (Incomprehensible devotion): भगवान की महिमा का वर्णन। 3. अचिन्त्यप्रतिमा भक्ति (Devotion to the incomprehensible idol): भगवान की प्रतिमा का ध्यान। 4. निर्वाणभक्ति (Devotion to liberation): भगवान के निर्वाण के प्रति श्रद्धा। 5. निर्मलभक्ति (Pure devotion): भगवान के प्रति निर्मल और शुद्ध भावना। 6. धर्मभक्ति (Devotion to Dharma): धर्म की पालन में श्रद्धा। 7. सम्यक्त्वभक्ति (Devotion to Right Knowledge): सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र में विश्वास। 8. संवरणभक्ति (Devotion to Refrain from Sin): पाप से दूर रहने की भक्ति। 9. वैराग्यभक्ति (Devotion to Detachment): संसारिक वस्तुओं से वैराग्य। यह नवधा भक्ति जैन धर्म के सिद्धांतों और भगवान के प्रति आस्था और भक्ति को प्रकट करती हैं।
  2. जैन धर्म में नवधा भक्ति के नाम निम्नलिखित हैं: 1. प्रथमभक्ति (First devotion): प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी की भक्ति। 2. अचिंत्यभक्ति (Incomprehensible devotion): भगवान की महिमा का वर्णन। 3. अचिन्त्यप्रतिमा भक्ति (Devotion to the incomprehensible idol): भगवान की प्रतिमा का ध्यान। 4. निर्वाणभक्ति (Devotion to liberation): भगवान के निर्वाण के प्रति श्रद्धा। 5. निर्मलभक्ति (Pure devotion): भगवान के प्रति निर्मल और शुद्ध भावना। 6. धर्मभक्ति (Devotion to Dharma): धर्म की पालन में श्रद्धा। 7. सम्यक्त्वभक्ति (Devotion to Right Knowledge): सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र में विश्वास। 8. संवरणभक्ति (Devotion to Refrain from Sin): पाप से दूर रहने की भक्ति। 9. वैराग्यभक्ति (Devotion to Detachment): संसारिक वस्तुओं से वैराग्य। यह नवधा भक्ति जैन धर्म के सिद्धांतों और भगवान के प्रति आस्था और भक्ति को प्रकट करती हैं।
  3. यह छंद जैन धर्म के मुनियों की निस्पृहता और सादगी का वर्णन करता है। "चलते फिरते तीर्थ दिगम्बर" का मतलब है कि दिगंबर मुनि स्वयं चलते फिरते तीर्थ हैं, जिनकी उपस्थिति ही तीर्थ के समान है। वे किसी भौतिक धन या आडंबर (दिखावा) में विश्वास नहीं रखते। - "णमो लोए श्री सव्वसाहूणं" का अर्थ है कि पूरे संसार के सभी साधुओं को नमस्कार है। - "कुल मात्रा अब कहो प्रमाणम्" का भाव है कि अब सम्पूर्ण साधु समुदाय को नमस्कार करने के बाद, और किस प्रमाण की आवश्यकता है। यह छंद जैन मुनियों की सादगी, त्याग, और आडंबर-रहित जीवनशैली की महत्ता को व्यक्त करता है।
  4. यदि "उत्तम क्षमा" के सिद्धांत को आधुनिक कार्यस्थल में लागू किया जाए, तो इससे आपसी संबंधों में गहरा सुधार होगा। कार्यस्थल पर होने वाली गलतियों या मतभेदों के प्रति लोग अधिक सहिष्णु और समझदार बनेंगे। व्यक्तिगत आक्रोश या शिकायतें लंबे समय तक नहीं रहेंगी, जिससे एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण वातावरण बनेगा। इससे तनाव और विवाद कम होंगे, और लोग एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझते हुए, सहयोग और समन्वय के साथ काम करेंगे। इसका परिणाम न केवल व्यक्तिगत विकास में होगा, बल्कि समूचे संगठन की प्रगति में भी दिखाई देगा।
  5. यदि मित्र ने मेरे विश्वास को तोड़ा है, तो "उत्तम क्षमा" के सिद्धांत के अनुसार, मैं सबसे पहले अपने भीतर की भावनाओं को शांत करने का प्रयास करूंगा। क्रोध या दुख के बजाय, मैं स्थिति को समझने का प्रयास करूंगा कि ऐसा क्यों हुआ। मैं मित्र से संवाद करूंगा ताकि दोनों के दृष्टिकोण स्पष्ट हो सकें। इसके बाद, मैं अपने मन से आक्रोश और द्वेष को छोड़ते हुए सच्चे मन से मित्र को माफ़ कर दूंगा, भले ही वह माफी माँगे या न माँगे। यह माफी बाहरी तौर पर नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से होगी, जिससे मेरी मानसिक शांति बनी रहेगी।
  6. लेख में यह कहा गया है कि क्षमा केवल बाहरी कार्य नहीं है, बल्कि आंतरिक स्थिति इसलिए है क्योंकि यह व्यक्ति के भीतर की भावनाओं और मानसिकता से जुड़ी होती है। सच्ची क्षमा का अर्थ है क्रोध, आक्रोश और द्वेष को छोड़कर शांति और समझ को अपनाना। यह बाहरी रूप से किसी को माफ़ कर देना ही नहीं, बल्कि मन से भी उसे पूरी तरह स्वीकार करना होता है, जिससे आत्मिक शांति और सकारात्मकता का विकास होता है।
  7. दशलक्षण पर्व (Daslakshan Parva) जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है, जो विशेष रूप से दस प्रमुख गुणों की पूजा और अभ्यास पर केंद्रित होता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इसका उद्देश्य जैन धर्म के अनुयायियों को नैतिक और आध्यात्मिक जीवन की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करना है। इस पर्व के दौरान, जैन अनुयायी निम्नलिखित दस गुणों का पालन करते हैं: 1. अहिंसा (Ahimsa)- सभी जीवों के प्रति हिंसा से बचना। 2. सत्य (Satya)- सत्य बोलना और सत्य का पालन करना। 3. अस्तेय (Asteya)- चोरी और अन्यायपूर्ण संपत्ति से दूर रहना। 4. ब्रह्मचर्य (Brahmacharya)- संयमित और शुद्ध जीवन जीना। 5. अपरिग्रह (Aparigraha) - अत्यधिक संग्रहण और भौतिक वस्तुओं से परहेज करना। 6. क्षमा (Kshama) - क्षमाशील और दयालु होना। 7. मैत्री (Maitri)- मित्रवत और सहयोगी व्यवहार करना। 8. मितभोजन (Mitabhakshan)- संयमित और सीमित भोजन करना। 9. संतोष (Santosh)- संतोष और आत्म-स्वीकृति की भावना रखना। 10. दया (Dayā)- दया और करुणा का भाव रखना। दशलक्षण पर्व जैन धर्म के अनुयायियों को इन गुणों का पालन करके आत्म-संयम और धार्मिक अनुशासन को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और सामुदायिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है। तीर्थंकरों के जीवन और उपदेशों से प्रेरित होकर, यह पर्व धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए एक प्रेरणादायक अवसर है। 1. शुद्धिकरण : आत्मा को शुद्ध करने के लिए आत्म-चिंतन और तपस्या पर ध्यान केंद्रित करता है। 2. तप और उपवास: आत्म-शुद्धि के लिए उपवास और अन्य तपस्याओं का पालन। 3. नैतिक और सांस्कृतिक चिंतन: नैतिक और सांस्कृतिक आचरण पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। 4. मोक्ष का मार्ग: कर्म बंधन को कम करके आत्मा को मोक्ष (मुक्ति) के करीब लाने का प्रयास। दसलक्षण पर्व के महत्व को समझाने के लिए छोटी-छोटी कहानियाँ - 1) कहानी: क्षमा और आत्म-शुद्धि प्राचीन समय की बात है, एक गाँव में महावीर नामक एक जैन साधक रहते थे। वे अत्यंत सरल, सत्यवादी और दयालु थे। एक दिन, गाँव के कुछ लोगों ने महावीर पर झूठा आरोप लगाया और उन्हें अपमानित किया। महावीर ने शांतिपूर्वक सब कुछ सुना और बिना किसी क्रोध के मुस्कुरा दिए। जब गाँव वालों ने देखा कि महावीर ने उनके अपमान का बदला नहीं लिया, तो वे चकित रह गए। महावीर ने उनसे कहा, "क्षमा सबसे बड़ी शक्ति है। क्रोध हमें कर्मों में बांधता है, जबकि क्षमा हमें मुक्त करती है।" गाँव वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे महावीर के चरणों में गिर पड़े। महावीर ने उन्हें क्षमा कर दिया और समझाया कि दसलक्षण पर्व के दस गुण—क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अपरिग्रह, और ब्रह्मचर्य—जीवन को शुद्ध करने और आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाने का मार्ग हैं। इस घटना के बाद, गाँव के लोग महावीर से प्रेरणा लेकर दसलक्षण पर्व का पालन करने लगे, और उनके जीवन में शांति और सद्भावना का विस्तार हुआ। सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दसलक्षण पर्व के गुणों का पालन न केवल आत्मशुद्धि के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज में भी सद्भावना और शांति का प्रसार करता है। 2) कहानी: संयम की शक्ति राजपुर नामक एक छोटे से राज्य में राजा विमलदेव राज्य करते थे। वे एक पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा थे, लेकिन उन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं था। उनके गुस्से के कारण राज्य के लोग उनसे डरते थे, और कई बार उनके गुस्से का शिकार हो जाते थे। एक दिन, दसलक्षण पर्व के दौरान एक जैन मुनि उस राज्य में आए। मुनि ने राजा विमलदेव को संयम के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "राजन, क्रोध आत्मा को बांधता है और हमें पाप की ओर ले जाता है। संयम ही वह शक्ति है जो हमें मोक्ष की ओर ले जा सकती है।" राजा ने मुनि की बातें सुनीं और सोचा, "मैं अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर पाता, इसलिए लोग मुझसे दूर हो रहे हैं। मुझे संयम का पालन करना चाहिए।" राजा ने दसलक्षण पर्व के दौरान मुनि के निर्देशानुसार संयम का अभ्यास शुरू किया। जब भी उन्हें गुस्सा आता, वे ध्यान लगाते और अपने मन को शांत करते। धीरे-धीरे, राजा का गुस्सा कम होने लगा और उनका राज्य शांति और समृद्धि की ओर बढ़ने लगा। सीख: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संयम, जो दसलक्षण पर्व का एक महत्वपूर्ण गुण है, जीवन में शांति और सफलता का मार्ग दिखाता है। क्रोध पर नियंत्रण पाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं। 3) कहानी: त्याग का महत्व वृत्तनगर में एक जैन साध्वी रहती थीं, जिनका नाम साध्वी शांतिबाई था। उन्होंने अपने सारे सांसारिक सुखों का त्याग करके साध्वी जीवन अपनाया था। वे रोज़ उपवास करतीं, ध्यान लगातीं और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करतीं। एक बार, दसलक्षण पर्व के समय, एक युवा लड़की सुमन उनके पास आई और बोली, "मां, मैंने सुना है कि आपने अपना सब कुछ त्याग दिया है। क्या आप मुझसे भी कुछ सिखा सकती हैं?" साध्वी शांतिबाई ने सुमन को एक कटोरी दी और कहा, "इसे पानी से भरकर लाओ, लेकिन ध्यान रखना कि एक भी बूंद गिरने न पाए।" सुमन ने बहुत सावधानी से कटोरी में पानी भरा और साध्वी के पास ले आई। साध्वी ने मुस्कुराते हुए कहा, "जैसे तुमने पानी की एक भी बूंद गिरने नहीं दी, वैसे ही हमें त्याग का पालन करना चाहिए। सांसारिक इच्छाओं और भोगों का त्याग करके हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।" सुमन ने साध्वी की बात समझ ली और उसने भी धीरे-धीरे अपनी अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करना शुरू किया। उसके जीवन में शांति और संतोष का संचार होने लगा। सीख: त्याग, जो दसलक्षण पर्व का एक महत्वपूर्ण गुण है, हमें आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाता है। जब हम अनावश्यक इच्छाओं और भोगों का त्याग करते हैं, तो हमारा जीवन सरल और शुद्ध हो जाता है। दसलक्षण पर्व के कुछ और महत्वपूर्ण बिंदु: 1. एकता और समुदाय : यह पर्व जैन समाज में एकता का भाव बढ़ाता है, क्योंकि सभी मिलकर उपवास, पूजा और सामूहिक प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं। 2. धार्मिक ग्रंथों का पाठ : पर्व के दौरान "तत्वार्थ सूत्र" और अन्य जैन धर्मग्रंथों का अध्ययन और पाठ किया जाता है, जिससे जैन दर्शन की समझ गहरी होती है। 3. क्षमावाणी दिवस : दसलक्षण पर्व का समापन क्षमावाणी दिवस पर होता है, जो क्षमा मांगने और देने के लिए समर्पित होता है। इस दिन जैन लोग परिवार, मित्रों, और यहां तक कि शत्रुओं से भी क्षमा मांगते हैं। दशलक्षण पर्व का निष्कर्ष जैन धर्म में इस प्रकार है: दशलक्षण पर्व दस महत्वपूर्ण गुणों की पूजा और अभ्यास पर केंद्रित होता है, जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे नैतिक सिद्धांतों को समाहित करते हैं। यह पर्व जैन अनुयायियों को आत्मसुधार, धार्मिक अनुशासन, और सामाजिक समर्पण की दिशा में मार्गदर्शन करता है। तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षाएँ इन गुणों के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। दशलक्षण पर्व व्यक्ति को नैतिकता, आध्यात्मिक उन्नति, और समाज में शांति स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है।
×
×
  • Create New...