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कषाय के भेद-प्रभेद


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कषाय के भेद-प्रभेद को यहाँ बताया जा रहा है।

जो आत्मा को कसे अर्थात दुख दे उसे कषाय कहते हैं।
आत्मा के भीतरी कलुष परिणाम को कषाय कहते हैं।

कषाय के 4 भेद बताए हैं :-
1 - क्रोध
2 - मान
3 - माया
4 - लोभ/लालच

ये चार कषाय पुनः चार भाग में विभाजित होती है। (4x4)
१ - अनंतानुबंधी
२- अप्रत्याख्यान या अप्रत्याख्यानावरण
३ - प्रत्याख्यान या प्रत्याख्यानावरण
४ - संज्वलन

इसी प्रकार नो कषाय होती है। नो कषाय 9 होती हैं -हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद।

इस प्रकार कषाय के अपेक्षा से क्रमशः 4 या  16 (4x4=16) या 25 ( 4x4+9=25) भेद होते है।

माला में 108 मोती भी कषाय को मंद करने के लिए होते है। उनका संबंध भी कषाय को मंद करने से होता है।
समरम्भ, समारम्भ, आरम्भ - 3
मन, वचन, काय - 3
कृत, कारित, अनुमोदना - 3
क्रोध, मान, माया, लोभ - 4
3x3x3x4=108

कषाय की पहचान कैसे करें ?
कषाय को समय की अपेक्षा से भी समझ सकते है।
अनंतानुबंधी - 6 माह से ज्यादा रहे
अप्रत्याख्यान - 15 दिन से ज्यादा - 6 माह से कम समय तक रहे
प्रत्याख्यान - अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा - 15 दिन से कम समय तक रहे
संज्वलन - अन्तर्मुहूर्त या उससे कम समय में समाप्त हो जाये

कषाय की प्रबलता किस प्रकार होती है।
अनंतानुबंधी-पत्थर पर लकीर (शिला रेखा)
अप्रत्याख्यान-मिट्टी पर लकीर (पृथ्वी रेखा)
प्रत्याख्यान-रेत या बालू या धूलि पर लकीर (धूलि रेखा)
संज्वलन-पानी पर लकीर (जल रेखा)

नरक गति में क्रोध, मनुष्य गति में मान, तिर्यंच गति में माया और देव गति में लोभ की बहुलता होती है। किन्तु स्त्रियों में माया कषाय की बहुलता रहती है।

धर्म का कषाय के क्षय से संबंध 
उत्तम क्षमा धर्म - क्रोध का अभाव
उत्तम मार्दव धर्म - मान का अभाव
उत्तम आर्जव धर्म - माया का अभाव
उत्तम शौच धर्म - लोभ का अभाव

हमें हमेशा अपनी कषायों को कम करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। जैसे जैसे कषाय मंद होती जाती है वैसे वैसे आत्मा की विशुद्धि बढ़ती जाती है।

दिनेश कुमार जैन "आदि"
मुम्बई - अम्बाह

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