Arpita Singhai Posted July 17, 2019 Share Posted July 17, 2019 संसार अजीव के होने पर होता है क्योंकि जीव और अजीव के बद्ध होने से संसार होता है,यह कथन स्पष्ट नही हो रहा है।कृपया समाधान कीजिये Link to comment Share on other sites More sharing options...
Bimla jain Posted July 18, 2019 Share Posted July 18, 2019 यहाँ पर जीव से तात्पर्य आत्मा से है।और आत्मा को स्वभाव से शुद्ध कहा गया है।लेकिन यह आत्मा हमेशा से शुध्द अवस्था में नहीं होती अपितु इसे शुध्द करने के लिए मोक्ष पुरुषार्थ करने कीआवश्यकता होती है। जैसे स्वर्ण कभी शुध्दरूप सेउपलब्ध नहीं होता है अपितु वह खान में अशुध्दियों के साथ ore रूप में उपलब्ध रहता है जिसे स्वर्ण शुधद करने के पुरुषार्थ के पश्चात ही शुध्दरूप में प्राप्त किया जा सकता है।यदि यहआत्मा हमेशा शुध्द रूप में ही रहती तो मोक्ष में ही रहती एवं फिर मोक्ष पुरुषार्थ का कोई औचित्य ही नहीं रहता जब कि वास्तविकता में एसा नहीं है। वास्तविकता में आत्मा अनादिकाल से अशुध्द है।अशुध्दियों से मेरा तात्पर्य कर्म रूपी अशुध्दियां हैं और यह कर्म अजीव हैं।एवं आत्मा अनादिकाल से इन कर्मों से बंधी है,एवं कर्मों सेबंधे होने के कारण ही यह आत्मा संसार में है।जिस दिन यह आत्मा कर्मों से मुक्त हो जाएगी,वह मोक्ष में स्थित होजाएगी। उक्त से स्पष्ट है कि आत्मा केवल कर्मों से बंध के कारण ही संसार में है।अत:स्पष्ट है कि कर्म जो कि अजीव हैं, के कारण ही आत्मा संसार में है।अत: यह भी स्पष्ट है कि कर्म है तो आत्मा संसार में है अन्यथा नहीं। अत:यह भी स्पष्ट है कि अजीव है तो संसार है ।और जीव(आत्मा) का अजीव (कर्मों ) से बँधने के कारण ही संसार है।इसी कर्मों से बंधी आत्मा को कर्मों से मुक्त करने के लिए ही मोक्ष पुरुषार्थ की आवश्यकता को तत्वार्थ सूत्र ग्रन्थ में उद्घाटित कियागयाहै। 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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