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"Das Lakshan Parv: Why Do We Celebrate? Explore Its Significance and Share Your Insights!"


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 दस लक्षण पर्व को मनाने की पीछे का कारण है कि.....

आत्मा की शुद्धि के लिए इस पर्व में धार्मिक क्रिया के जरिए आत्मा की शुद्धि की जाती है..

पूरे साल के किए हुए पाप के प्रायश्चित के लिए और किए हुए कर्मों को कम करने के लिए इस पर्व को मनाया जाता है

 इस पर्व से साधना करने की शिक्षा मिलती है

 इस पर्व में संसार और परिवार के सभी कर्मों से निवृत होकर व्यक्ति एकांत धर्म स्थान में जाकर अपने भविष्य और कल्याण के बारे में सोचता है

 इस पर्व में आत्मा के गुणों और सार का जश्न मनाया जाता है

 जन्म मरण के चक्र से मुक्ति के लिए मनाया जाता है माना जाता है कि जब तक मन अशुभ कर्मों के बंधन से नहीं छूटता तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती इस पर्व से जीवन में नया बदलाव आता है

 यह पर्व हमारे जीवन के मोक्ष प्राप्ति के द्वार खुलता है पर्यूषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो हमें धर्म के संस्कारों से जोड़ता है अपनी इंद्रियों पर संयम रखना सीखना है और आत्मा के बारे में चिंतन करना सीखना है......(अनुजा विशाल जैन नागपुर)

 

 

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CAPriyanka Jain

दसलक्षण वर्ष में 3 बार आता है, हालांकि हम भाद्र माह में आने वाले पर्व को उत्साह से मनाते हैं।  दस दिनों का उत्सव है जहाँ जैन भक्त किसी आत्मा के दस गुणों का जश्न मनाते हैं न कि किसी विशिष्ट देवता

Maina Jain Chhabra Mumbai

Maina Jain Chhabra (Mira Road, Mumbai) जिन चरणों में जीवन जीने का नया प्रकाश मिलता है परमात्मा के प्रति प्रेम प्रीति का भाव जनमता  है। नया आनंद उत्सव का वातावरण बनता है ।पुरानी दिनचर्या बदलती है

Divyani jain

दशलक्षण पर्व जैनों का सबसे महत्वपूर्ण एवं महान पर्व है। दशलक्षण पर्व हम लोक युगारंभ के उद्देश्य से मनाते है  यह वह पर्व है जिसके माध्यम से विचार, वाणी और कर्म से सभी दोषों, वासनाओं  को समाप्त करने क

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जय जिनेन्द्र 

सही अर्थों में दशलक्षण धर्म कर्मो को नाश करने और अपने भीतर आत्म तत्वों को जागृत करने की कला है जो दश धर्मों से प्राप्त होती है मानव को मानव से जोड़ने वा मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है इस पर्व में तप त्याग के माध्यम से जीवन का उत्थान भी होता है तथा आत्मा की उपासना करते हुए जीवन को शांत स्वस्थ और अहिंसा मय बनाया जाता है सम्पूर्ण जैन समाज इस पर्व में साधना रत होकर त्याग तपस्या अपनी शक्ति के अनुसार करने को उद्यत होता हैं इसके साथ हम अपनी इन्द्रियों पर भी विजय प्राप्त कर पाते है

समाज के सभी पुरुष महिलाए एवम बच्चे सच्ची निष्ठा के साथ पर्व को मनाते है धर्म की प्रभावना भी पर्व के माध्यम से बहुत होती है यह धर्म पुण्य की प्राप्ति तथा पाप का प्रक्षालन भी करता है प्रत्येक समय हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कार्यों से कर्म बंध होता है जिनका फल हम अवश्य भोगना ही पड़ता है शुभ कर्म जीवन वा आत्मा को उच्च स्थान पर ले जाता है अशुभ कर्म से आत्मा मालिन होती है इसलिए जीवन को सार्थक बनाने में ये दश गुण बहुत कारगर सिद्ध होते है जीवन में नया परिवर्तन होता है दस दिवसीय यह पावन पर्व पापो और कषायो को रग = रग से विसर्जित करने का संदेश देता है

पर्व के निमित्त से हमे आत्मा का मित्र बनना चाहिए आत्मा का शत्रु नही हमारा पर्व में यही संकल्प होना चाहिए

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*दसलक्षण पर्व का  महत्व*

 प्रत्येक धर्म का अपना विशेष महत्व और महत्व होता है, चाहे वह व्यक्ति के लिए हो, परिवार के लिए हो या समुदाय के लिए। पर्व या त्यौहार हमारे परिवार के सदस्यों, मित्रों और पड़ोसियों के साथ हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं। वास्तव में, त्योहार मनाने का अर्थ है कि हम अपनी समस्याओं या मतभेदों को भूलकर एक-दूसरे के साथ खुशी बांटें।दसलक्षण पर्व, जो कि जैन समुदाय द्वारा हर साल आत्म-शुद्धि के लिए मनाया जाता है, का उद्देश्य दस सार्वभौमिक गुणों का पालन करना है, जो हमें व्यावहारिक जीवन में सही मार्ग पर ले जाते हैं, और हमें इस दुनिया के पापों से दूर करते हैं, जिससे हम अपनी मंजिल यानी मोक्ष तक पहुंच सकें। यह त्योहार ऐसा है जिसमें विचार, वचन और कर्म से सभी विकारों, वासनाओं और अनैतिक इच्छाओं को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है। इस त्योहार में उन सार्वभौमिक गुणों जैसे क्षमा, संतोष और आत्म-संयम का सम्मान और पूजन किया जाता है और आत्म-शुद्धि के लिए उनकी पूजा की जाती है।इस पर्व में आत्मा के भीतर की प्रवृत्तियों का ध्यान और नियंत्रण किया जाता है, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है। यह त्योहार आत्मा को वासनाओं और अनैतिक इच्छाओं को छोड़ने के माध्यम से स्वर्गीय शांति प्राप्त करने का प्रयास करता है। यह हमें आत्मा की पूर्ण रूप से शुद्ध की हुई अवस्था का अनुभव कराने और वास्तविक सत्य को प्राप्त करने का एक माध्यम देता है। इसे हम यह कह सकते हैं कि 'सत्य, शील, सुंदर' की त्रिमूर्ति का प्राकृतिक अनुभव पूरी तरह से संभव है, और यह अनुभव दसलक्षण पर्व के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। इस पर्व का आयोजन सभी पापों का अंत करता है, और हमें शाश्वत आनंद और आध्यात्मिकता की अनुभूति कराता है।यह पर्व हमारी आत्मा और कर्मों को शुद्ध करता है। इसका हमारे जीवन में विशेष महत्व और महत्व है। जैन समुदाय के परिवार के सदस्य इस पर्व को दस दिनों तक मनाते हैं। इन दस दिनों के दौरान भाद्रपद शुक्ल पंचमी से अणन्त चतुर्दशी तक, जैन उपवास करते हैं और विभिन्न रूपों में दान (दान) करते हैं। वे कुछ चीजों का त्याग (त्याग) करते हैं और पर्व के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हैं। पर्व के प्रत्येक दिन का अपना महत्व होता है। दसलक्षण पर्व दस धर्मों का पर्व है जिसे जैन दस दिनों तक मनाते हैं। इन दस दिनों के दौरान वे सख्ती से दस धर्मों का पालन करते हैं (दस धर्म)।
*उत्तम क्षमा धर्म* 
 पूरे दिल से सहनशीलता का पालन करना, क्रोध का त्याग करना।
 *उत्तम मार्दव धर्म -* 
 नम्रता और विनम्रता का पालन करना, अभिमान और वासनाओं को नियंत्रित करना।
 *उत्तमआर्जव धर्म -** 
जीवन में छल-कपट को त्याग कर निष्कपट आचरण का पालन करना।
 *उत्तम शौच धर्म -* 
 लालच को त्यागकर शरीर, मन और वाणी को पवित्र रखना।
 *उत्तम सत्य धर्म -* 
 स्नेहपूर्ण और न्यायपूर्ण वचनों का उच्चारण करना, किसी भी जीव को कोई हानि पहुँचाने का विचार न रखना।                                   ।   *उत्तम संयम धर्म** 
 सभी जीवों की रक्षा करना, और स्पर्श, स्वाद, गंध, दृष्टि, और श्रवण जैसे पाँच इंद्रियों और छठी इंद्रिय (मन) के द्वारा मिलने वाले सभी सुखों से बचना।
 *उत्तम तप धर्म -* 
तपस्या का पालन करना, सभी सांसारिक आकर्षणों पर नियंत्रण रखना।
 *उत्तम त्याग धर्म -* 
चार प्रकार की दान देना - आहार (भोजन), अभय (निर्भीकता), औषध (दवा), और शास्त्र दान (पवित्र ग्रंथों का वितरण) देना; और सामाजिक और धार्मिक संस्थानों का समर्थन करना।
 *उत्तम अकिंचन धर्म -* वास्तविक आत्मा में विश्वास बढ़ाना और आत्मा से अलग यानी भौतिक वस्तुओं से अलग होना; और आंतरिक परिग्रह यानी क्रोध और अहंकार को त्यागना; और बाहरी परिग्रह यानी सोने, हीरे, और शाही खजानों का संचय छोड़ना।
 *उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म -* महान व्रत ब्रह्मचर्य का पालन करना; आत्मा और सर्वज्ञ भगवान के प्रति भक्ति रखना; और कामनाओं, अश्लील फैशन, बच्चों और वृद्धों की शादियों, और दहेज पर आधारित विवाह का त्याग करना।
जैन इन गुणों की वंदना करते हैं। इन गुणों की वंदना से ही हमें सही मार्ग, सच्चा सुख, और सांसारिक दुखों से पूर्ण मुक्ति प्राप्त होती है।

Edited by Chaman Jain
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जय जिनेन्द्र 

सही अर्थों में दशलक्षण धर्म कर्मो को नाश करने और अपने भीतर आत्म तत्वों को जागृत करने की कला है जो दश धर्मों से प्राप्त होती है मानव को मानव से जोड़ने वा मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है इस पर्व में तप त्याग के माध्यम से जीवन का उत्थान भी होता है तथा आत्मा की उपासना करते हुए जीवन को शांत स्वस्थ और अहिंसा मय बनाया जाता है सम्पूर्ण जैन समाज इस पर्व में साधना रत होकर त्याग तपस्या अपनी शक्ति के अनुसार करने को उद्यत होता हैं इसके साथ हम अपनी इन्द्रियों पर भी विजय प्राप्त कर पाते है

समाज के सभी पुरुष महिलाए एवम बच्चे सच्ची निष्ठा के साथ पर्व को मनाते है धर्म की प्रभावना भी पर्व के माध्यम से बहुत होती है यह धर्म पुण्य की प्राप्ति तथा पाप का प्रक्षालन भी करता है प्रत्येक समय हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कार्यों से कर्म बंध होता है जिनका फल हम अवश्य भोगना ही पड़ता है शुभ कर्म जीवन वा आत्मा को उच्च स्थान पर ले जाता है अशुभ कर्म से आत्मा मालिन होती है इसलिए जीवन को सार्थक बनाने में ये दश गुण बहुत कारगर सिद्ध होते है जीवन में नया परिवर्तन होता है दस दिवसीय यह पावन पर्व पापो और कषायो को रग = रग से विसर्जित करने का संदेश देता है

पर्व के निमित्त से हमे आत्मा का मित्र बनना चाहिए आत्मा का शत्रु नही हमारा पर्व में यही संकल्प होना चाहिए

 

 

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जोParyusanparv mein Dashlakshandharm ka kya mahatwa hai? 

Answer- पवा़ंधिराज पयुषणपवॅ भादों माह की पंचमी से भादों सुद चर्तुदशी अनतचौदश तक १० दिन तक मनाया जाता है। अपने जैन-धर्म में पर्युषणपर्वको बडा़ महापर्व,पर्वाधिराज कहा गया है,इस पर्व की महत्ता, महत्वत्ता इसलिए है कि इन्हीं दंश दिनों में हमें अपने आत्मा के करीब आने का मौका मिलता है। भाद्र पद माह में बारिश भी मध्यम हो जाती है, सृष्टि यानी कि प्रकृति  ने भी मानो हम सब के लिए, सभी मनुष्यो के  धर्म ध्यान करने के लिए सभी द्ववार जैसे कि खोल दिए हो जैसे कि हमारे शरीर में भी नव द्वार होते हैं,जो हमारी पंच इन्द्रियों से मिलकर बनते हैं २ध्राणइनदिय यानी कि हमारी नाकदो नासिकाए,२चक्षुइनदिय दो आंख,२कणइनिदय हमारे दो कान,१मलद्वार,१मूत्रद्वार,१योनिद्वार,१मुह/मुख।यह सभी नव द्वार अपने शरीर से जुड़े हुए हैं।उन सभी द्वारो पर सभी पर एक एक दिन में ऐसे दंश दिनों में संयम के मार्ग पर चलकर अपने दंश धर्म के दंश लक्षणों के मार्ग पर चलकर अपने इन्द्रियों पर संयम करने का पर्व मतलब दशलक्षण धर्म पर्व। इसके द्वारा दंश धर्म के दंशलक्षण हमारे शास्त्रों में और हमारे जैन आगम में हमारे  २४ तीर्थंकर और हमारे गुरुदेवो  द्वारा वर्णित है,उसी दंश धर्मो का हमें हमारे  आत्मा के करीब से जानने का समझने का और अपने जीवन में उतारने का आत्मतत्व के करीब आने का और इसीलिए संयम धारण करने का भाव इन्हीं दशलक्षण धर्म के पर्व में आता है।

हमारा धर्म भावप्रधान धर्म है। यही ं दशलक्षण धर्म रूपी दशलक्षण पर्व दंश भावना बन जाती है इन दंश दिनों में। हमारे दिगंबर जैन आमनाय के अनुसार यह दशलक्षण पर्व दंश दिनों तक दशलक्षण धर्म पर्व जिसे पयुषणपवॅ भी कहते हैं,वह बड़े ही भक्तिभाव पूर्वक मनाया जाता है। पूजा पाठ, ज्ञान, ध्यान, जप-तप, त्याग वगैरह यम-नियम पालन करने के  उपवास आदि किया तथा जाप प्रभु भक्ति भावना र सामायिक आदि धार्मिक क्रियाओं से युक्त होकर, उसमें प्रवृत्त हों करके बड़े ही ठाठ-बाट से भगवान श्री की‌ भक्ति इन्हीं दंश दिनों में अपने मनुष्यो द्वारा की जाती है। कहां जाता है कि देवलोक के देवता भी ऐसी भक्ति करने को तरसते हैं, लेकिन अपने मनुष्यो को यह ईश्वर प्रदत्त दशलक्षण धर्म पर्व मनाने का मौका भाग्य से मिला है। इसलिए हम सभी जीवों को , मनुष्यो को इन दंश दिनों में सारे विकल्प छोड़कर आत्मध्यान लगाकर पभुभक्ति धर्म प्रभावना पूर्वक करनी चाहिए और यही भक्ति भावना हमें मोक्ष मार्ग की ओर प्रत्येक जीव को, मनुष्यो को पहुंचाकर मुक्ति प्राप्त कराती है।

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दसलक्षण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान महावीर के जीवन और उपदेशों को मनाने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व दस दिनों तक चलता है और जैन समुदाय के लोगों द्वारा विभिन्न अनुष्ठानों और पूजाओं के साथ मनाया जाता है।

 

दसलक्षण पर्व का वास्तविक महत्व और प्रभाव यह है:

 

1. आत्म-सुधार: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को अपने जीवन में सुधार करने और आत्म-सुधार की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

2. अहिंसा और करुणा: यह पर्व जैन धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे कि अहिंसा और करुणा को बढ़ावा देता है।

3. आध्यात्मिक विकास: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को आध्यात्मिक विकास की दिशा में काम करने और अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करता है।

4. एकता और सद्भाव: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को एकता और सद्भाव के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है।

 

कुल मिलाकर, दसलक्षण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो जैन समुदाय के लोगों को अपने जीवन में सुधार करने, आत्म-सुधार की दिशा में काम करने, और आध्यात्मिक विकास की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

दसलक्षण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान महावीर के जीवन और उपदेशों को मनाने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व दस दिनों तक चलता है और जैन समुदाय के लोगों द्वारा विभिन्न अनुष्ठानों और पूजाओं के साथ मनाया जाता है।

 

दसलक्षण पर्व का वास्तविक महत्व और प्रभाव यह है:

 

1. आत्म-सुधार: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को अपने जीवन में सुधार करने और आत्म-सुधार की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

2. अहिंसा और करुणा: यह पर्व जैन धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे कि अहिंसा और करुणा को बढ़ावा देता है।

3. आध्यात्मिक विकास: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को आध्यात्मिक विकास की दिशा में काम करने और अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करता है।

4. एकता और सद्भाव: यह पर्व जैन समुदाय के लोगों को एकता और सद्भाव के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है।

 

कुल मिलाकर, दसलक्षण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो जैन समुदाय के लोगों को अपने जीवन में सुधार करने, आत्म-सुधार की दिशा में काम करने, और आध्यात्मिक विकास की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

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जय जिनेंद्र                                 जय महावीर  

समाधिस्त संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज को नमोस्तु 

 

जैन धर्म में धर्म का अर्थ होता है धारण करना जैन शासन का दस लक्षण पर्व को पर्व अधिराज राजा कहते हैं पर्युषण पर्व कहते हैं पर्युषण शब्द संस्कृत  "परि + उष्ण"से लिया गया है परी का अर्थ चारों ओर से वह उष्ण का अर्थ बसना अर्थात चारों ओर से आकर हमें हमारी आत्मा में बसना । यह जैन धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है हिंदू पंचांग के अनुसार इसे भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष में मनाते हैं यह एक ऐसा पर्व है जिसमें सारा जैन समाज उपवास त्याग के माध्यम से आत्म शुद्धि करता है दस लक्षण पर्व से व्यक्ति की यात्रा विषय भोग की ओर न होकर त्याग व योग की ओर होती है यहां से यात्रा मोक्ष की ओर प्रारंभ  होती है यहां से व्यक्ति का अधोपतन होकर उत्थान होता है हमारे चारों तरफ एक अच्छा भाव पैदा होने लगता है क्योंकि चारों ओर धार्मिक वातावरण रहता है।

जैन धर्म के अनुसार कल का एक चक्र समाप्त होते समय अंत के 49 दिन में प्रलय के साथ 7-7 दिन की कुवृष्टियां होती हैं फिर कल का परिवर्तन होता है और आषाढ़ एकम से लेकर लगातार 49 दिन तक 7-7 दिन की सुवृष्टियां  होती हैं और विजयार्द्ध पर्वत पर सौधर्म इंद्र द्वारा छिपाये  व सुरक्षित किए गए 72 जोड़े गुफाओं से बाहर आते हैं और त्यौहार मनाते हैं जिसे दस  लक्षण पर्व की संज्ञा दी गई है।

आषाढ़ एकम से लेकर लगातार 49 दिन भादो वदी चतुर्थी के पश्चात 50 दिन से सही अर्थ में नए युग का आरंभ हुआ और हमारा जीवन धर्म से जुड़ गया।

दसलक्षण पर्व को भादो में मनाने का कारण -

वैसे तो यह साल में तीन बार आते हैं परंतु भादो के महीने में मनाने का का मुख्य कारण यह है कि ज्योतिष के आधार पर यह महीना 11 महीने में सबसे अशुभ है लौकिक कार्य के लिए सबसे ज्यादा अपावन है जब अशुभ प्रकृति परिणमन करे तब धर्म ज्यादा करना चाहिए । भारत का हर संप्रदाय भाद्र पक्ष में सबसे ज्यादा धर्म करता है जैन धर्म में सोलहकारण,रोहिणी व्रत,दसलक्षण पर्व भाद्र पक्ष में मनाते हैं वैष्णो दर्शन में भी अधिकांश पर्व भाद्र पक्ष में आते हैं अशुभ नक्षत्र अशुभ समय होने के से धर्म के कार्य करने से अशुभ नक्षत्र का  दुष्प्रभाव कम हो जाता है इसलिए भाद्र पक्ष को धार्मिक कार्य में ज्यादा महत्व दिया है ।

दसलक्षण पर्व का महत्व -

जैन शासन में दस लक्षण धर्म का बहुत अधिक महत्व है धातुओं में सोना वर्षों में कल्पवृक्ष श्रेष्ठ हैं इस प्रकार पर्वों में दसलक्षण पर्व सर्वश्रेष्ठ हैं यह आध्यात्मिक सांसारिक व लौकिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है धार्मिक वातावरण को बनाए रखने के लिए हम इन 10 दिनों में जो संयमी जीवन जीते हैं पांच इंद्रियों के प्रति रुचि न रखना सीमित पदार्थ का उपयोग करना चारों प्रकार के आहार का त्याग करना ब्रह्मचर्य से रहना स्वाध्याय प्रतिक्रमण करना किसी की आत्मा ना तो दुखाना सभी को क्षमा करना इस प्रकार अपने जीवन को धर्ममय बनाने के लिए सादा जीवन उच्च विचार पर आधारित आरंभ परिग्रह का त्याग कर छोटे-छोटे नियमो का पालन कर हम बड़े-बड़े पाप से बच सकते हैं बच्चों से छोटे-छोटे नियमों का पालन करवा कर उन्हें संस्कारी बना सकते हैं।

10 धर्म हमें बहिरंग के साथ-साथ अंतरंग से पवित्र बनाकर क्रमशः मोक्ष मार्ग की सीढ़ी चढ़ाकर मोक्ष द्वारा पहुंचता है यह दसधर्म क्षमा मार्दव आर्जव सत्य शौच संयम तप त्याग आकिंचन्य ब्रह्मचर्य का पालन कर अपनी आत्मा को पवित्र कर तीर्थ बन सकते हैं।

दसलक्षण धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाता है बीज से वृक्ष बनाता है क्षमा की धरती पर जीवन के बीज को मृदुता की माटी में मृदु बनाकर अंकुर फूटता है उस पर सरलता का जल खींचकर इसके इर्द गिर्द खरपतवार की सफाई उत्तम शौच से करते हैं सत्य के सूर्य से तपते हैं तब उसे उसमें फल लगते हैं इन फलों को त्यागने के बाद जो बचता  है वह उत्तम आकिंचन्य होता है यही उसका ब्रह्म स्वरुप है जीवन में जो अर्जित किया उसे छोड़ें यही दस  लक्षण महापर्व की ज्ञान है

दसलक्षण पर्व में हम शुरुआत क्षमा के साथ व समापन भी क्षमा से करते हैं मन वचन काय से क्षमा मांगना वीरों का काम है और क्षमा कर देना महावीर का काम है जब कोई चुटकुला सुनता है तो हम कुछ देर हंस लेते हैं पूरे साल भर तो नहीं हंसते ठीक उसी प्रकार जब कोई हमसे कुछ गलत बात कहता है तो हम उससे साल भर बैर क्यों रखते हैं गुस्सा क्यों करते हैं गलत विचार क्यों रखते हैं एक गलत विचार ने रावण को नरक पहुंचा दिया था। यही इस दस लक्षण पर्व का महत्व है कि किसी से कोई भी बैर  6 महीने से ज्यादा रखने पर  जन्म जन्मांतर चला जाता है इसलिए दसलक्षण पर्व साल में तीन बार आते हैं कि आप सबसे मन वचन काय से क्षमा मांग सके और सभी को क्षमा कर सके ।

जैन धर्म का यह महान विराट भव्याधिक महापर्व इस संसार में ना कभी हुआ है ना होगा ‌। हम भाग्यवान है जो हमें जैन कुल में जन्म मिला सका । हम इसका महत्व समझते हैं पूरे विश्व को इसका महत्व समझना चाहिए जिस दिन इसका अर्थ समझ जाएंगे सारे युद्ध बंद हो जाएंगे सारी परेशानियां दूर हो जाएंगे विश्व में सुख शांति का वातावरण बन जाएगा ।

हम इस संसार रूपी मंदिर में मानव रूपी पुजारी है जो मानवता की पूजा करें तो यह सारी दुनिया स्वर्ग बन जाएगी और हर एक आत्मा परमात्मा का रूप हो जाएगी। 

अंत में यही कहना चाहती हूं की पर्युषण के ऊपर जितनी लिखा जाए उतना कम है क्योंकि यह अनादि से चला आ रहा है और अनंत तक चलता रहेगा ।

यह जैनियों का ही नहीं पूरे विश्व का धर्म है जिसे हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए 

मिच्छामि दुक्खड़ं

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