Saurabh Jain Posted December 14, 2015 Share Posted December 14, 2015 क्रोध बोलता है, पर मान, माया, व लोभ बोलते नहीं हैं। डरो मत। संयम धारण करो। संयम धारण किये बना कल्याण नहीं होता। मोक्षमार्ग में साहस, उत्साह व धैर्य इन तीनो की आवश्यकता है। संसार में सेठ बनकर नहीं मुनीम बनकर रहो। शरीर मरणधर्मा है, पर आत्मा अमरधर्मा है। संक्लेष से क्षयोपक्षम घटता है, इसलिए बाह्य निमित्तो से बचो। क्रोधी मनुष्य आंखे होते हुये भी अंधा है। श्रम के पौधे पर सफ़लता के फ़ूल खिलते हैं। जो सुख को त्यागता है, वही चारित्र में प्रवृत्त होता है। जो घट में उतर जाता है, वह अन्तरघट को प्राप्त होता है। सभ्यता की एक मात्र कसौटी है, सहनशीलता। सम्यग्दृष्टि संसार में रह सकता है, किन्तु उसके ह्रदय में संसार नहीं रह सकता। जो हमारा है वो जाता नहीं, जो जाता है वो हमारा नहीं। गुण ग्रहण में छोटे बङे का भेद नहीं देखा जाता। विवेक और विनय बिना मोक्ष नहीं है। सुख-दुख कर्म के उदय से होता है। सब से मिले पर सब, में मिलों मत। अपने से छोटो को देखने वाला सुखी रहता है। सदोष चारित्र अचारित्र है। निंदा करने का फ़ल नरक में जाना है। कर्तव्य में प्रमाद नहीं करना ही सफ़लता है। संगठन के लिये सबसे बङा सूत्र "सुई बनो कैची मत बनो"। पुण्य के बिना मरण भी सुमरण नहीं हो सकता। प्रतिकूलता में से अनुकूलता को खोजने का नाम साधना है। Source https://www.facebook.com/groups/108vradhamansagar/ Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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