आत्मा का सर्वव्यापक स्वरूप
भट्टप्रभाकर के द्वारा यह पूछा जाने पर कि कुछ लोग आत्मा को सर्वव्यापक कहते हैं इसमें आपका क्या विचार है ? तब आचार्य योगिन्दु कहते हैं जिन लोगों ने आत्मा को सर्वव्यापक बताया है वह सही है। कर्म से रहित हुई केवलज्ञानरूप आत्मा में समस्त लोक व अलोक स्पष्ट झलकता है, इसलिए आत्मा को सर्वव्यापक कहा गया है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
52. अप्पा कम्म - विवज्जियउ केवल-णाणे ँ जेण ।
लोयालोउ वि मुणइ जिय सव्वगु वुच्चइ तेण ।। 52।।
अर्थ - कर्मरहित आत्मा जिस केवलज्ञान से लोक और अलोक कोे जानता है, उस (केवलज्ञान) के कारण आत्मा सर्वव्यापक कहा जाता है।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, कम्म-विवज्जियउ- कर्मरहित, केवल-णाणे ँ -केवलज्ञान से, जेण-जिस, लोयालोउ-लोक और अलोक को, वि-भी, मुणइ-जानता है, जिय-आत्मा, सव्वगु-सर्वव्यापक, वुच्चइ-कहा जाता है, तेण-के कारण।
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