आत्मा का जड स्वरूप
भट्टप्रभाकर के द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में आचार्य कहते हैं कि स्वबोध में पूर्णरूप से स्थित जीवों में इन्द्रिय ज्ञान की अपेक्षा से ज्ञान नहीं होता । अतः इन्द्रिय ज्ञान की अपेक्षा से आत्मा जड़ है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
53. जे णिय-बोह -परिट्ठियहँ जीवहँ तुट्टइ णाणु।
इंदिय-जणियउ जोइया तिं जिउ जडु वि वियाणु।। 53।।
अर्थ - स्वबोध में सम्पूर्णरूप से स्थित हुए जीवों का जो इन्द्रियों से उत्पन्न किया ज्ञान खण्डित होता है, उस (इन्द्रिय से उत्पन्न ज्ञान के खण्डित होने)के कारण आत्मा को जड भी जानो।
शब्दार्थ - जे-जो, णिय-बोह -परिट्ठियहँ - स्वबोध में पूर्णरूप से स्थित हुए, जीवहँ - जीवों का, तुट्टइ -खण्ड़ित होता है, णाणु-ज्ञान, इंदिय-जणियउ-इन्द्रिय से उत्पन्न किया, जोइया-हे योगी!, तिं-उस कारण से, जिउ-आत्मा को जडु-जड़, वि-भी, वियाणु-जानो।
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