आत्मा का स्वरूप
भट्टप्रभाकर की आत्म विषयक शंका को सुनकर आचार्य योगिन्दु उसकी शंका के अनुरूप ही क्रमशः उसकी शंका का समाधान करते है। यह समाधान भट्टप्रभाकर के समान हम सबके लिए भी अत्यन्त उपयोगी एवं आवश्यक है। आगे के 5 दोहों में आत्मा के स्वरूप को बताया गया है। इस दोहे में वे कहते हैं कि जो जो गुण तुमने आत्मा के विषय में सबकी दृष्टि के अनुसार देखे वे सभी गुण आत्मा में हैं। आगे फिर उसका खुलासा करेंगे कि वह प्रत्येक गुण आत्मा में किस प्रकार है। चलिए देखते है यह दोहा -
51. अप्पा जोइय सव्व-गउ अप्पा जडु वि वियाणि ।
अप्पा देह-पमाणु मुणि अप्पा सुण्णु वियाणि ।। 51।।
अर्थ - हे योगी ! आत्मा को सर्वव्यापक (और) जड भी जानो, आत्मा को देह की नाप (के समान) (तथा आत्मा को शून्य भी जानो।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा को, जोइय-हे यागी!, सव्व-गउ-सर्वव्यापक, अप्पा-आत्मा को, जडु - जड, वि -और भी, वियाणि - जानो, अप्पा-आत्मा को, देह-पमाणु-देह की नाप, मुणि -जानो, अप्पा-आत्मा को, सुण्ण-शून्य, वि-भी, ,वियाणि-जानो।
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