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JainSamaj.World
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आत्मा क्या है


Sneh Jain

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अभी हमने आत्मा के सर्वोत्कृष्ट स्वरूप अर्थात आत्मा की परम अवस्था के स्वरूप के विषय में विस्तार से समझा। हमें परमात्मप्रकाश के अध्ययन के साथ यह भी देखना चाहिए कि आचार्य योगिन्दु मानव मन के विशेषज्ञ थे। इसी कारण उन्होंने सर्व प्रथम हमारे समक्ष आत्मा का उत्कृट स्वरूप को रक्खा ताकि हम उससे आगे बताये आत्मा से सम्बन्धित सम्पूर्ण विवेचन से भलीभाँति अवगत हो सके।परमात्मा के स्वरूप से पूर्ण अवगत होने पर भट्टप्रभाकर आचार्य योगिन्दु से प्रश्न करते हैं कि आखिर आत्मा है क्या ?  यह प्रश्न भट्टप्रभाकर द्वारा जितनी रोचकता के साथ पूछा गया है उतनी ही अद्भुतता के साथ आचार्य द्वारा उस प्रश्न का समाधान किया गया है। आज हम मात्र प्रश्न को देखते है फिर अगले ब्लाग में प्रश्न का समाधान देखेंगे। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा - 

 

50.   कि वि भणंति जिउ सव्वगउ जिउ जडु के वि भणंति।

     कि वि भणंति जिउ देह-समु सुण्णु वि के वि भणंति।।

 

अर्थ - कोई जीव को सर्वव्यापक कहते हैं, कोई जीव को अचेतन कहते हैं, कोई जीव को देह के समान कहते हैं (तथा) कोई (जीव को) शून्य भी कहते हैं।(आखिर आत्मा का सच्चा स्वरूप क्या है ?)

शब्दार्थ-  कि वि-कोई, भणंति-कहते हैं, जिउ-जीव को, सव्वगउ-सर्वव्यापक, जिउ-जीव को, जडु-अचेतन, के वि-कोई भणंति-कहते हैं, कि वि - कोई, भणंति-कहते हैं, जिउ-जीव को, देह-समु- देह के समान, सुण्णु-शून्य, वि-भी, के वि-कोई भणंति-कहते हैं।

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