परम आत्मा के ज्ञान के स्थान का कथन
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि जिस प्रकार मंडप के आश्रय के अभाव में बेल मुडकर स्थित हो जाती है उसी प्रकार मुक्ति को प्राप्त हुआ जीव ज्ञान-ज्ञेय के आलंबन के अभाव में प्रतिबिम्बित हुआ लोकाकाश में स्थिर हो जाता है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
47. णेयाभावे विल्लि जिम थक्कइ णाणु वलेवि ।
मुक्कहँ जसु पय बिंबियउ परम-सहाउ भणेवि ।।
अर्थ - बेल की तरह मुक्ति को प्राप्त हुए जिस जीव का ज्ञान- ज्ञेय के (आलम्बन के) अभाव में लौटकर (तथा) परम स्वभाव का प्रतिपादन करके (इस लोकाकाश में) प्रतिबिम्बित हुआ स्थिर हो जाता है, (वह ही परम- आत्मा है।)
शब्दार्थ - णेयाभावे-ज्ञेय के अभाव में, विल्लि-बेल, जिम-की तरह, थक्कइ-स्थिर हो जाता है, णाणु-ज्ञान, वलेवि-लौटकर,मुक्कहँ -मुक्त हुओं का जसु -जिस,पय-जीव,बिंबियउ -प्रतिबिम्बित हुआ, परम-सहाउ-परम स्वभाव को, भणेवि-प्रतिपादित करके।
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