देह से आत्मा का विशिष्ट महत्व
आचार्य योगिन्दु परमात्मप्रकाश में बताते हैं कि आत्मा और शरीर का परष्पर अटूट सम्बन्ध है। दोनों में परष्पर इतना अटूट सम्बन्ध है कि एक दूसरे के अभाव में दोनों का ही अस्तित्व नहीं है। इसके बाद वे कहते हैं कि फिर भी आत्मा का देह से विशिष्ट महत्व है। वे इस बात को स्पष्ट करने हेतु कहते हैं कि जिस आत्मा के होने तक ही सारे इन्द्रिय व विषय सुखों को जाना जाता है, अनुभव किया जाता है। जबकि मात्र इन्द्रियों के विषयों द्वारा आत्मा का अनुभव नहीं किया जाता है। इसी बात को दोहे में इस प्रकार कहा गया है -
45. जो णिय-करणहि ँ पंचहि ँ वि पंच वि विसय मुणेइ।
मुणिउ ण पंचहि ँ पंचहि ँ वि सो परमप्पु हवेइ ।।
अर्थ - जो अपनी पाँचों ही इन्द्रियों द्वारा पाँचों ही विषयों को जानता है (किन्तु) जो पाँचों (इन्द्रियों) द्वारा (और) पाँचों (ही) (विषयों) द्वारा नहीं जाना गया (है), वह परम- आत्मा होता है।
शब्दार्थ - जो-जो, णिय-करणहि ँ-अपनी इन्द्रियों द्वारा, पंचहि ँ-पाँचों, वि-ही, पंच-पाँचों, वि-ही, विसय-विषयों को, मुणेइ-जानता है, मुणिउ-जाना गया, ण-नहीं, पंचहि ँ-पाँचों द्वारा, पंचहि ँ-पाँचों द्वारा, वि-ही, सो-वह, परमप्पु-परम आत्मा, हवेइ-होता है।
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