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शरीर और आत्मा के दृढ़ सम्बन्ध का सीधे साधे शब्दों में कथन


Sneh Jain

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आचार्य योगिन्दु परमात्मप्रकाश के 44 वें दोहे में कहते हैं कि आत्मा वह है जिसे कोई भी जीव नकार नहीं सकता। आत्मा की अनुभूति चाहे बिना निर्मल मन के संभव नहीं किन्तु उसके अस्तित्व की बात को साधारण मनुष्य भी आचार्य योगिन्दु के इस दोहे में कथित शब्दों से आसानी से समझ सकता है।  आचार्य आत्मा के अस्तित्व के साथ शरीर के साथ आत्मा का दृढ़ सम्बन्ध बताते हुए कहते हैं कि यह इन्द्रिय रूपी गाँव अर्थात हमारा शरीर जब तक ही है तब तक इसका सम्बन्ध आत्मा से जुड़ा हुआ है। लेकिन जैसे ही इसका आत्मा से सम्बन्ध टूट जाता है, यह शरीर भी पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाता है। वैसे ही शरीर के बिना मुक्त आत्मा को छोड़कर सांसारिक आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। देखते हैं इसी से सम्बन्धित दोहा -

44      देहि वसंते जेण पर इंदिय-गामु वसेइ

        उव्वसु होइ गएण फुडु सो परमप्पु हवेइ।।

शब्दार्थ - देहि-देह में, वसंते -बसते हुए होने के कारण, जेण-जिससे, पर-परन्तु, इंदिय-गामु-इन्द्रियरूपी गााँव, वसेइ-बसता है, उव्वसु-उजाड़, होइ-हो जाता है, गएण-निकल जाने के कारण, फुडु-निश्चय ही, सो - वह, परमप्पु-परम आत्मा, हवेइ-होता है।

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