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आत्मा संसार का कारण भी है और परम आत्मा भी हैै


Sneh Jain

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 परमात्मप्रकाश के निम्न दोहे में आचार्य ने समझाया है कि आत्मा के दोनों स्वरूप हैं। जब आत्मा कर्ममय होती है तो वह संसाररूप परिणत होती है और जब वही आत्मा कर्म रहित हो जाती है तो वही परम आत्मा बन जाती है। देखिये इस से सम्बन्धित परमात्मप्रकाश का अगला दोहा-

 

40.    जो जिउ हेउ लहेवि विहि जगु बहु-विहउ जणेइ।

       लिंगत्तय-परिमंडियउ सो परमप्पु हवेइ।।

 

अर्थजोे आत्मा (कर्मरूप) कारण को प्राप्त करके तीनों लिङ्गों से सुशोभित अनेक प्रकार के संसार को उत्पन्न करता है, वह (ही) (मूलरूप से) परम- आत्मा है।

 शब्दार्थ - जो-जो, जिउ-आत्मा, हेउ-कारण को, लहेवि-प्राप्त करके, विहि-कर्म, जगु-संसार को, बहु-विहउ- अनेक प्रकार के, जणेइ-उत्पन्न करता है, लिंगत्तय-परिमंडियउ- तीनों लिंगों से सुशोभित, सो-वह, परमप्पु-परम आत्मा, हवेइ-है।

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