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ध्यान, ध्येय व ध्याता की एकता ही परमआत्मा की प्राप्ति है


Sneh Jain

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परमात्मप्रकाश के अगले दोहे 39 में ध्यान, ध्येय ध्याता की समग्रता में ही परमआत्मा की प्राप्ति का कथन किया गया है। यहाँ योगियों के समूह को ध्याता, ध्यान के योग्य ज्ञानमय आत्मा तथा परमशान्ति की प्राप्ति को ध्येय बताया गया है। इन तीनों के एकता ही परमआत्मा की प्राप्ति का साधन है।

39.   जोइय-विंदहि णाणमउ जो झाइज्जइ झेउ

      मोक्खहँ कारणि अणवरउ सो परमप्पउ देउ ।।

अर्थ - योगियों के समूह द्वारा परम शान्ति के प्रयोजन से जो ज्ञानमय ध्यान के योग्य(आत्मा) निरन्तर ध्यान किया जाता है, वह ही दिव्य परम- आत्मा है।  

शब्दार्थ - जोइय-विंदहि -योगियों के समूह द्वारा, णाणमउ - ज्ञानमय, जो-जो, झाइज्जइ-ध्यान किया जाता है, झेउ- ध्येय (ध्यान के योग्य, मोक्खह -परम शान्ति के, कारणि - प्रयोजन से, अणवरउ - निरन्तर, सो -वह, परमप्पउ-परम आत्मा, देउ-दिव्य।

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