परम आत्मा से चन्द्रमा की समानता
परमात्मप्रकाश के अगले दोहे में कहा गया है कि जिस प्रकार अनन्त आकाश में रात्रि में मात्र एक चन्द्रमा से समस्त संसार प्रकाशित होता है उसी प्रकार समस्त लोक में जिस-जिस जीव के ज्ञान में समस्त लोक प्रतिबिम्बित होता है ही अनादि(शाश्वत) परमात्मा है। ज्ञान व शाश्वत स्वरूप से चन्द्रमा और परमआत्मा का यहाँ साम्य बताया गया है।
38. गयणि अणंति वि एक्क उडु जेहउ भुयणु विहाइ।
मुक्कहँ जसु पए बिंबियउ सो परमप्पु अणाइ।।
अर्थ -अनन्त आकाश में एक चन्द्रमा के सदृश जिस प्रत्येक मुक्त जीव में प्रतिबिम्बित किया गया (समस्त) लोक चमकता है, वह (जीव) ही शाश्वत परम- आत्मा है।
शब्दार्थ - गयणि - आकाश में, अणंति -अनन्त, वि-ही, एक्क-एक, उड-चन्द्रमा, जेहउ-सदृश, भुयणु-लोक, विहाइ-चमकता है, मुक्कहँ - प्रत्येक मुक्त में, जसु-जिस, पए-जीव में, बिंबियउ-प्रतिबिम्बित किया गया, सो - वह, परमप्पु -परम-आत्मा, अणाइ-शाश्वत।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.