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आत्मा और परम आत्मा का सम्बन्ध (क्रमशः)


Sneh Jain

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आचार्य योगिन्दु आत्मा और परम आत्मा के दृढ सम्बन्ध को पुनः बताते हैं कि संसारी आत्मा और परम आत्मा मूल रूप में समान ही है, अर्थात् कर्म बन्धन से रहित दोनों का स्वरूप एक ही है। इनमें असमानता है तो मात्र भेद अभेद दृष्टि का। भेद दृष्टि से यह आत्मा देह में विराजमान है तथा अभेद दृष्टि से यह आत्मा सिद्धालय में विराजमान है। वे बार बार यही बात दोहराते हैं कि बस तू मात्र इस बात को अच्छी तरह से समझ ले, अन्य बातों में समय व्यर्थ मत कर। आगे के दोहे में यही बात कही गयी है -

29.   देहादेहहि जो वसइ भेयाभेय-णएण

     सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ किं अण्णे बहुएण ।।

अर्थ -   जो भेद और अभेद दृष्टि से (क्रमशः) देह में और बिना देह (सिद्धालय) में रहता है, वह (परम) आत्मा है। हे जीव! तू (इस बात को) समझ, दूसरी बहुत (बात) से क्या (लाभ है) ?

शब्दार्थ - देहादेहहि - देह में और बिना देह में, जो- जो, वसइ- रहता है, भेयाभेय-णएण- भेद और अभेद दृष्टि से, सो- वह, अप्पा- परम आत्मा, मुणि - समझ, जीव-हे जीव! तुहुं- तू, किं-क्या, अण्णें-दूसरी, बहुएण-बहुत से।

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