क्रमशः
पुनः आगे के दोहे में परम आत्मा का आत्मा से सम्बन्ध बताते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार परम आत्मा का ध्यान करने से पूर्व में किये गये कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार अपनी देह में स्थित शुद्ध आत्मा का ध्यान करने से भी पूर्व में किये कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। देह में स्थित शुद्धात्मा व सिद्धालय में स्थित शुद्धात्मा में कोई भेद नहीं है। शुद्धात्मा का ध्यान तभी संभव है जब देह व आत्मा के भेद को समझा जाये।
27. जे ँँ दिट्ठे ँ तुट्टंति लहु कम्मइँ पुव्व-कियाइँ ।
सो परु जाणहि जोइया देहि वसंतु ण काइँ ।।
अर्थ - जिस (आत्मा) के अनुभव किये गए होने के कारण पूर्व में किये गए कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, वह (ही) परम (आत्मा) है। हे योगी! (तू) देह में बसती हुई भी (उसको) क्यों नहीं जानता है ?
जे ँ- जिस, दिट्ठे ँ-अनुभव किये गये होने से, तुट्टन्ति-नष्ट हो जाते हैं, लहु-शीघ्र, कम्मइं-कर्म, पुव्व-कियाइँ-पूर्व में किये गये, सो-वह, परु-परम, जाणहि-जानता है, जोइया- हे योगी!, देहि-देह में, वसंतु-बसती हुई, ण-नहीं, काइं-क्यों
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