हम सब अपने ही कर्मों से परेशान हैं
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि हम सब अज्ञानी जीव भोगों में फँसकर दिन रात अपने-अपने व्यापार में लगे हुए हैं । हमारे पास आत्मा के चिंतन के लिए जरा सा भी समय नहीं है, जो कि शान्ति का सबसे बड़ा साधन है। यही कारण है कि आज सारा जगत अपने इन ही कारणों से अशान्त है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
121. धंधइ पडियउ सयलु जगु कम्मइँ करइ अयाणु।
मोक्खहँ कारणु एक्कुु खणु णवि चिंतइ अप्पाणु।।
अर्थ -धंधे में फँसा हुआ समस्त अज्ञानी जगत (ज्ञानावरणादि आठों) कर्मों को करता है,(किन्त)ु मोक्ष का हेतु अपनी आत्मा का चिंतन एक क्षण भी नहीं करता है।
शब्दार्थ -धंधइ-धंधे में, पडियउ-फँसा हुआ, सयलु - समस्त, जगु-जग, कम्मइँ-कर्मों को, करइ-करता है, अयाणु-अज्ञानी, मोक्खहँ -मोक्ष का, कारणु -हेतु, एक्कुु-एक, खणु-क्षण, णवि-भी, नहीं, चिंतइ-चिंतन करता है, अप्पाणु-आत्मा का।
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