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परमशान्ति की प्राप्ति मात्र ज्ञान से ही संभव है।


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि चाहे यह लोक हो या परलोक, दुःख का कारण मात्र अपना अज्ञान ही है जिसके कारण हम पति, सन्तान स्त्रियों से मोह कर दुःख उठाते है। यदि हम अपने ज्ञान से अपना मोह समाप्त कर लेंगे तो हमारा वर्तमान जीवन तो शान्त होगा ही और यही हमारी शान्त दशा हमें परलोक में ले जायेगी। मोक्ष का अर्थ भी शान्ति ही तो है। अतः शान्ति के इच्छुक भव्य जनों को अपने ज्ञान से मोह को नष्ट करना चाहिए। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

122.    जोणिहि लक्खहि परिभमइ अप्पा दुक्खु सहंतु।

        पुत्त-कलत्तहिँ मोहियउ जाव णाणु महंतु।।

अर्थ -जब तक उत्तम ज्ञान नहीं है, पुत्र और स्त्रियों के द्वारा मोहित किया हुआ जीव, दुःख सहन करता हुआ लाखों योनियों में परिभ्रमण करता है।

शब्दार्थ - जोणिहि-योनियों में, लक्खहि-लाखों, परिभमइ-परिभ्रमण करता है, अप्पा-आत्मा, दुक्खु-दुःख सहंतु-सहन करता हुआ, पुत्त-कलत्तहिँ -पुत्र और स्त्रियों के द्वारा,मोहियउ-मोहित किया हुआ, जाव-जब तक, -नहीं, णाणु-ज्ञान, महंतु-उत्तम।

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