तीन प्रकार की आत्मा को जानने के बाद क्या करना है ?
आचार्य योगीन्दु तीन प्रकार की आत्मा का आगे विस्तार से कथन करने से पूर्व ही भट्टप्रभाकर के माध्यम से हम सबको यह प्रमुख बात बता देना चाहते हैं कि उन तीन प्रकार की आत्मा के विषय में जानकर हमको क्या करना है ? वे कहते हैं कि मैं जो तुम्हारे लिए तीन प्रकार की आत्मा के विषय में कथन करूँगा, उसमें से तुम आत्मा की मूच्र्छित अवस्था को छोड़ देना तथा आत्मा की जो ज्ञानमय परमात्म स्वभाव अवस्था है, उसको तुम अपनी स्वसंवेदनात्मक ज्ञानमय आत्म अवस्था से जानना। इस प्रकार तीन प्रकार के आत्मस्वभाव का कथन कर उसमें से ग्रहण करने व त्यागने योग्य स्वभाव का भी कथन मात्र एक दोहे में कर दिया है। इनका एक-एक दोहा गागर में सागर भरने की योग्यता रखता है। देखने में इनके दोहे छोटे लगते हैं परन्तु हृदय के मर्मस्थल को जाग्रत करने में तत्पर रहते हैं। परमात्मप्रकाश के प्रथम त्रिविधात्माधिकार का 12वाँ दोहा इसी से सम्बन्धित है-
12. अप्पा ति-विहु मुणेवि लहु मूढउ मेल्लहि भाउ।
मुणि सण्णाणेँ णाणमउ जो परमप्प-सहाउ।।
अर्थ - तीन प्रकार की आत्मा को जानकर (तू) शीघ्र (आत्मा की) मूच्र्छित अवस्था को छोड़, (और) जो ज्ञानमय परमात्म स्वभाव (है) (उसको) स्वबोध (स्वसंवेदनात्मक ज्ञान) के द्वारा जान ।
शब्दार्थ - अप्पा- आत्मा को, तिविहु-तीन प्रकार की, मुणेवि-जानकर, लहु-शीघ्र, मूढउ-मूच्र्छित, मेल्लहि-छोड़, भाउ-अवस्था, मुणि-जान, सण्णाणें-स्वबोध के द्वारा, णाणमउ-ज्ञानमय, जो- जो, परमप्प-सहाउ- परम आत्म स्वभाव।
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