निर्मल आत्मा का अनुभव किसे होता है
आचार्य योगीन्दु स्पष्टरूप से कहते हैं कि जो अपने आपको बहुत बड़ा ज्ञानी मानते हैं, किन्तु वे विभिन्न आत्माओं में भेद करते हैं, वे सच्चे अर्थ में ज्ञानी है ही नहीं और उनको कभी भी अपनी निर्मल आत्मा का अनुभव नहीं हो सकता।। सच्चे अर्थ में वे ही ज्ञानी हैं और वे ज्ञानी ही अपनी निर्मल आत्मा का अनुभव करते हैं जो लोक में रहनेवाली आत्म में भेद नहीं करते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
99. बंभहँ भुवणि वसंताहँ जे णवि भेउ करंति।
ते परमप्प-पयासयर जोइय विमलु मुणंति।।
अर्थ - 99. जो लोक में रहती हुई आत्माओं का भेद नहीं करते हैं, वे परम आत्मा को व्यक्त करनेवाले योगी (ही) (अपनी) निर्मल आत्मा का अनुभव करते हैं।
शब्दार्थ -बंभहँ - आत्माओं का, भुवणि-लोक में, वसंताहँ -रहती हुई, जे - जो, णवि-नहीं, भेउ -भेद, करंति-करते हैं, ते - वे, परमप्प-पयासयर -परम आत्मा का प्रकाश करनेवाले, जोइय-योगी, विमलु -निर्मल का, मुणंति-अनुभव करते हैं।
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