विषमता का निराकरण मात्र ज्ञान से ही संभव है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि यदि व्यक्ति को यह ज्ञान हो गया कि सभी जीवों का लक्षण ज्ञान और दर्शन है, इस लक्षण की अपेक्षा से सभी जीव समान है और यदि उनमें भेद हुआ है तो मात्र उसके कर्म के कारण। जिसमें यह ज्ञान हो गया वह तो फिर वह किसी भी जीव में छोटे-बड़े का भेद नहीं करेगा। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
98 जीवहँ लक्खणु जिणवरहिँ भासिउ दंसण-णाणु।
तेण ण किज्जइ भेउ तहिँ जइ मणि जाउ विहाण।।
अर्थ - जिनेन्द्रदेव के द्वारा जीवों का लक्षण (सम्यक्) दर्शन और ज्ञान कहा गया है, उस कारण से यदि मन में प्रभात (ज्ञानरूपी सूर्य का उदय) हो गया है तो उन (जीवों) में भेद नहीं किया जाता है।
शब्दार्थ - जीवहँ-जीवों का, लक्खणु-लक्षण, जिणवरहिँ -जिनवर के द्वारा, भासिउ-कहा गया है, दंसण-णाणु-दर्शन और ज्ञान, तेण -इसलिए, ण-नहीं, किज्जइ-किया जाता है, भेउ-भेद, तहिँ -उनमें, जइ-यदि, मणि-मन में, जाउ-उत्पन्न हुआ है, विहाण-प्रभात।
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