सर्वोच्च सत्य को समझनेवालों की पहचान
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि सर्वोच्च सत्य की खोज पर जो अग्रसर हुए हैं और जो अनुसंधान किया है वह है समभाव। इस समभावरूप सर्वोच्च सत्य की खोल कर लेने पर उनके लिए कोई भी छोटा और बड़ा नहीं होता है। सभी जीवों की आत्मा उनके लिए परम आत्मा होती है। सर्वोच्च सत्य के अनुभवी ही सर्वोदय का कार्य कर ते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
94. बुज्झंतहँ परमत्थु जिय गुरु लहु अत्थि ण कोइ।
जीवा सयल वि बंभु परु जेण वियाणइ सोइ।।
अर्थ - हे जीव! सर्वोच्च सत्य को समझते हुओं के (लिए) कोई भी बड़ा (और) छोटा नहीं है, क्योंकि (उसके लिए) सभी ही जीव परम आत्मा हैं। (ऐसा) वह (सर्वोच्च सत्य को समझने वाला ) ही अनुभव करता है।
शब्दार्थ - बुज्झंतहँ - समझते हुओं के, परमत्थु -परम सत्य को, जिय-हे जीव! गुरु -बड़ा, लहु-छोटा, अत्थि-है, ण-नहीं, कोइ-कोई भी, जीवा-जीव, सयल-सभी, वि-ही, बंभु-आत्मा, परु-परम, जेण-क्योंकि, वियाणइ-अनुुभव करता है, सोइ-वह ही।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.