यश लाभ की इच्छा ही व्यक्ति के विकास में बाधक है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि यश लाभ की इच्छा ही व्यक्ति के विकास में बाधा है। चाहे गृहस्थ हो या मुनि यदि वह यश लाभ की इच्छा रहित होकर काम करे तो उसका काम स्व और पर दोनों के लिए हितकारी होगा। यश व लाभ की इच्छा से किये काम से अपना लक्ष्य पूरा नहीं होने पर काम के प्रति किया श्रम व समय व्यर्थ हो जाता है और यश के बदले में अपयश ही मिलता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
92 लाहहँ कित्तिहि कारणिण जे सिव-मग्गुु चयंति।
खीला-लग्गिवि ते वि मुणि देउल्लु देउ डहंति।।
अर्थ - जो मुनि यश लाभ के प्रयोजन से मोक्ष मार्ग को छोड़ देते हैं, वे ही मुनि खंभे से लगकर देव (और) देवालय को पूर्णरूप से नष्ट करते हैं।
शब्दार्थ - लाहहँ - लाभ क, ,कित्तिहि-यश के, कारणिण-प्रयोजन से, जे-जो, सिव-मग्गुु -मोक्ष मार्ग को, चयंति-छोड़ देते हैं, खीला-लग्गिवि -खंभे से लगकर, ते-वे, वि -ही, मुणि-मुनि, देउल्लु-देवालय, देउ -देव को, डहंति-पूर्णरूप से नष्ट करते हैं।
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