Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    14,347

मुुनिराज के लिए समस्त परिग्रह का त्याग आवश्यक है


Sneh Jain

160 views

आचार्य योगीन्दु एक उच्च कोटि के अध्यात्मकार तो हैं ही साथ में बहुत संवेदनशील भी हैं। वे अपने साधर्मी बन्धु मुनिराजों के प्रति बहुत संवेदनशील है। वे कहते हैं कि जिनवर भेष धारण करना और केश लोंच जैसे कठिन कार्य करके भी मात्र एक परिग्रह त्याग जैसे सरल कार्य को नहीं अंगीकार किया गया तो उसने स्वयं ने ही अपनी आत्मा को ठग लिया और फिर जिस प्रयोजन से उन्होंने जिस कठिन मार्ग को अपनाया था वह व्यर्थ हो गया। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

90.   केण वि अप्पउ वंचियउ सिरु लुंचिवि छारेण।

      सयल वि संग परिहरिय जिणवर-लिंगधरेण।।

अर्थ - जिनवर भेेष धारण करनेवाले किसी के भी द्वारा भस्म से सिर मूंडकर भी समस्त परिग्रह नहीं छोड़ा गया (तो समझ) (उसके द्वारा) (अपनी) आत्मा ठग ली गयी है।

शब्दार्थ - केण-किसी के द्वारा, वि-भी, अप्पउ-आत्मा, वंचियउ-ठग ली गयी है, सिरु-सिर को, लुंचिवि -मुंडन करके,छारेण-भस्म से, सयल-समस्त, वि -ही, संग-परिग्रह, -नहीं, परिहरिय-छोड़ा गया, -जिणवर-लिंगधरेण - जिनवर के वेश को धारण करनेवाले के द्वारा  

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...