मूर्ख मुनि का लक्षण
आचार्य योगीन्दु ज्ञानी और मूर्ख मुनि में ज्ञानी मुनि का यह लक्षण बताने के बाद कि ज्ञानी मुनि देह कोे आत्मा से भिन्न मानता हुआ देह के प्रति आसक्ति को छोड़ देता है, अज्ञानी मुनि का लक्षण बताते हैं कि अज्ञानी मुनि बहुत प्रकार के धर्म के बहाने से इस समस्त जगत को ही प्राप्त करने के लिए इच्छा करता है। ज्ञानी और अज्ञार्नी मुनि में यह ही भेद है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
87. लेणहँ इच्छइ मूढु पर भुवणु वि एहु असेसु।
बहु विह-धम्म-मिसेण जिय दोहि ँ वि एहु विसेसु।।
अर्थ - किन्तु अज्ञानी मुनि बहुत प्रकार के धर्म के बहाने से इस समस्त जगत को ही प्राप्त करने के लिए इच्छा करता है, हे जीव! इन दोनों (ज्ञानी और अज्ञार्नी मुनि) में यह ही भेद है।
शब्दार्थ -लेणहँ - प्राप्त करने के लिए, इच्छइ-इच्छा करता है, मूढु-अज्ञानी, पर - किन्तु, भुवणु - जगत को, वि-ही, एहु-इस, असेसु-समस्त, बहु विह-धम्म-मिसेण- बहुत प्रकार के धर्म के बहाने से, जिय- हे जीव! दोहि ँ - दोनों में, वि- ही, एहु- यह, विसेसु- भेद।
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