ज्ञानी व अज्ञानी मुनि की क्रिया में भेद
आचार्य योगीन्दु ज्ञानी व अज्ञानी मुनि की क्रिया में मुख्यरूप से भेद करते हैं कि अज्ञानी मुनि निःसंदेह चेला, चेली और पुस्तकों से खुश होता है, किन्तु ज्ञानी मुनि इनको बंधन का कारण जानता हुआ इनसे लज्जित होता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
88. चेल्ला-चेल्ली-पुत्थियहि ँ तूसइ मूढु णिभंतु।
एयहि ँ लज्जइ णाणियउ बंधहँ हेउ मुणंतु।।
अर्थ - अज्ञानी (मुनि) निःसंदेह चेला, चेली और पुस्तकों से खुश होता है, किन्तु ज्ञानी (इनको) बंधन का कारण जानता हुआ इनसे लज्जित होता है।
शब्दार्थ - चेल्ला-चेल्ली-पुत्थियहि ँ - चेला,चेली और पुस्तकों से, तूसइ -खुश होता है, मूढु-अज्ञानी, णिभंतु-निस्सन्देह, एयहि ँ -इनसें, लज्जइ-लज्जित होता है, णाणिय-ज्ञानी, उ-किन्तु, बंधहँ -बंधन का, हेउ-कारण, मुणंतु-जानता हुआ।
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