ज्ञानी व मूर्ख मुनियों में ज्ञानी मुनि का लक्षण
आचार्य योगीन्दु ज्ञानी व मूर्ख मुनियों में भेद करते हुए ज्ञानी मुनि का लक्षण बताते हैं कि ज्ञानी मुनि देह कोे आत्मा से भिन्न मानता हुआ देह के प्रति आसक्ति को छोड़ देता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
86. णाणिहि ँ मूढहँ मुणिवरहँ अंतरु होइ महंतु।
देहु वि मिल्लइ णाणियउ जीवहँ भिण्णु मुणंतु।। 86।।
अर्थ -ज्ञानी (मुनिवरों) में मूर्ख मुनिवरों से बहुत बड़ा भेद होता है। ज्ञानी देह कोे आत्मा से भिन्न मानता हुआ देह (देह के प्रति आसक्ति) को छोड़ देता है।
शब्दार्थ - णाणिहि ँ -ज्ञानी में, मूढहँ -मूर्ख, मुणिवरहँ- मुनिवर में, अंतरु - भेद, होइ - होता है, महंतु-बहुत बड़ा, देहु-देह को, वि-भी, मिल्लइ-छोड़ देता है, णाणियउ -ज्ञानी, जीवहँ - जीव से, भिण्णु - भिन्न, मुणंतु -मानता हुआ।
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