मुनि को मुक्ति प्राप्त करने के लिए ज्ञान होना परम आवश्यक है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि मुनि के जीवन का उद्देश्य मुक्ति प्राप्त करना होता है। यदि मुनि के जीवन का उद्देश्य मुक्ति प्राप्त करना नहीं है तो वह सच्चे अर्थ में मुनि है ही नहीं, और यह मुक्ति, मुक्ति दायक ज्ञान से ही संभव है। मात्र एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ में भ्रमण कर लेने मात्र को मुुक्ति मान लेना मुनि का मात्र एक भ्रम है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
85. तित्थइँ तित्थु भमंताहँ मूढहँ मोक्खु ण होइ।
णाण-विवज्जिउ जेण जिय मुणिवरु होइ ण सोइ।।
अर्थ - हे जीव! (एक) तीर्थ (से) दूसरे तीर्थों को भ्रमण करते हुए मूर्ख (मुनि) कीे मुक्ति नहीं होती, क्योंकि ज्ञान से रहित वह श्रेष्ठ मुनि होता ही नहीं है।
शब्दार्थ - तित्थइँ-तीर्थों को, तित्थु -तीर्थ, भमंताहँ-भ्रमण करते हुए, मूढहँ-मूर्ख की, मोक्खु -मुक्ति, ण-नहीं, होइ-होती, णाण-विवज्जिउ-ज्ञान से रहित, जेण -क्योंकि, जिय- हे जीव!, मुणिवरु -श्रेष्ठ मुनि, होइ-होता है, ण -नहीं, सोइ- वह, ही
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.